देश की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई में मचे घमासान पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है. सरकार की ओर से बुधवार को कोर्ट में कहा गया कि सीबीआई के दो टॉप अफसरों आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग में दखल देना जरूरी था क्योंकि इनके झगड़े की वजह से देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसी की स्थिति बेहद हास्यास्पद हो गई थी.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसफ की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने अपनी बहस जारी रखते हुए कहा कि इन अधिकारियों के झगड़े से जांच एजेंसी की छवि और प्रतिष्ठा पर असर पड़ रहा था. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि केंद्र सरकार का मुख्य मकसद यह तय करना था कि जनता में इस प्रतिष्ठित संस्थान के प्रति भरोसा कायम रहे.
बन गया था CBI का मजाक
वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा, ‘जांच ब्यूरो के निदेशक और विशेष निदेशक के बीच विवाद इस प्रतिष्ठित संस्थान की निष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचा रहा था. दोनों अधिकारी, आलोक कुमार वर्मा और राकेश अस्थाना एक-दूसरे से लड़ रहे थे और इससे जांच ब्यूरो की स्थिति हास्यास्पद हो रही थी.’
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इन दोनों अधिकारियों के बीच चल रही लड़ाई से सरकार अचम्भित थी कि ये क्या हो रहा है. वे बिल्लियों की तरह एक-दूसरे से लड़ रहे थे. वेणुगोपाल ने कहा कि दोनों के बीच चल रही इस लड़ाई ने अभूतपूर्व और असाधारण स्थिति पैदा कर दी थी. ऐसी स्थिति में सरकार का दखल देना जरूरी हो गया था.
उन्होंने कहा कि केंद्र ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए ही इस साल जुलाई और अक्टूबर में मिली शिकायतों पर कार्रवाई की थी. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने ऐसा नहीं किया होता तो पता नहीं दोनों अधिकारियों के बीच लड़ाई कहां और कैसे खत्म होती.
छुट्टी पर CBI के दोनों अफसर
अटार्नी जनरल ने केंद्र की ओर से बहस पूरी कर ली. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की ओर से बहस शुरू की जो गुरुवार को भी जारी रहेगी. केंद्र ने आलोक वर्मा के खिलाफ अस्थाना की शिकायत पर सीवीसी की रिपोर्ट का अवलोकन किया था जिसमें कुछ सिफारिशें की गई थीं. इसके बाद ही दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा गया था.
बाद में कोर्ट ने सीवीसी को वर्मा के खिलाफ शिकायत की जांच का निर्देश दिया था. सीवीसी ने सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी. शीर्ष अदालत आलोक वर्मा को जांच ब्यूरो के निदेशक के अधिकारों से वंचित करने और उन्हें अवकाश पर भेजने के सरकार के निर्णय को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर सुनवाई कर रही है.
कोर्ट ने 29 नवंबर को कहा था कि वह पहले इस सवाल पर विचार करेगा कि क्या सरकार को किसी भी परिस्थिति में सीबीआई के डायरेक्टर को उसके अधिकारों से वंचित करने का अधिकार है या उसे डायरेक्टर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में कोई कार्रवाई करने से पहले प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति के पास जाना चाहिए था. कोर्ट ने इससे पहले यह साफ कर दिया था कि वह जांच एजेंसी के दोनों शीर्ष अधिकारियों से संबंधित आरोपों और प्रत्यारोपों पर गौर नहीं करेगा.
जानकारी के लिए बता दें कि सीबीआई डायरेक्टर के तौर पर आलोक वर्मा का दो साल का कार्यकाल 31 जनवरी, 2019 को खत्म हो रहा है.
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