राष्ट्रवाद पर मोदी सरकार का लिटमस टेस्ट

भाजपा की मोदी सरकार स्पष्ट बहुमत के साथ आई है और जनता की अपेक्षाओं के बोझ के साथ आई है. कुछ मामले हैं जिनपर तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, नहीं तो जनता का विश्वास मोदी सरकार से उठ जाएगा. यह भाजपा के ही पितृ पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे, जिन्होनें जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष स्टेटस के खिलाफ एक विधान, एक प्रधान और एक संविधान का नारा दिया था. श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि 23 जून है, देखना यह होगा कि क्या उनकी पुण्यतिथि या उनकी पुण्यतिथि तक मोदी सरकार देश को धारा 370 हटाने का उपहार देती है या नहीं. देश आज मोदी सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देख रहा है कि वह धारा 35ए और 370 पर कब कोई फैसला लेती है, या इस बार का कार्यकाल भी बस बहाने बनाने में निकल जाएगा. राम मंदिर का फैसला भी अदालत में लंबित है, और उम्मीद है कि इस कार्यकाल में सरकार इस पर भी कदम उठाएगी. 


भाजपा के नेता एवं पेशे से अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का यह स्पष्ट मानना है कि आज सबसे बड़ी आवश्यकता देश की एकता, अखंडता और आपसी भाईचारा मजबूत करने की है. बाबा साहब अंबेडकर, सरदार पटेल, राममनोहर लोहिया,श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय को अपना आदर्श मानने वाले अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि जब हम एक विधान, एक प्रधान, एक संविधान की बात करते हैं, तो उसके साथ हमें एक राष्ट्रध्वज, एक राष्ट्रभाषा, और एक राष्ट्रगान के साथ ही “समान शिक्षा, समान चिकित्सा, समान नागरिक संहिता” लागू करना भी बहुत जरूरी है.


भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में कई मुद्दों को उठाया है, जो राष्ट्रवाद एवं सुशासन से सम्बन्धित हैं, और इन अधिकतर मुद्दों को आश्विनी उपाध्याय ने न्यायालय तक पहुंचाया है और अब सरकार पर निर्भर है कि वह न्यायालय के सम्मुख अपनी स्थिति स्पष्ट करें.


अब तक अश्विनी उपाध्याय कुल 55 जनहित याचिकाएं न्यायालय में प्रस्तुत कर चुके हैं, जिसके कारण पीआईएल मैन की उपाधि भी उन्हें मिल चुकी है. भाजपा ने अपने संकल्पपत्र में आतंकवाद अलगाववाद नक्सलवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस, पुलिस का आधुनिकीकरण और घुसपैठ की समस्या का समाधान करने का वादा किया है. अश्विनी उपाध्याय की आतंकवादियों अलगाववादियों नक्सलियों के लिए कठोर कानून,पुलिस सुधार और रोहिंग्या तथा बांग्लादेशी घुसपैठियों को एक साल में देश से बाहर भेजने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. उनके द्वारा दायर की गयी जन हित याचिकाओं में सबसे मुख्य है भारत में समान नागरिक संहिता लागू करना. यह बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि आज कई क़ानून एक धर्म के लिए अलग हैं और दूसरे के लिए अलग, जबकि जब संविधान की स्थापना और क्रियान्वयन हुआ था तब संविधान में हर व्यक्ति को समान अधिकार प्रदान किए गए थे, परन्तु धर्म विशेष के तुष्टिकरण हेतु कुछ मामलों को उनके लिए विशेष विधान के हवाले कर दिया, जैसे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड. यही कारण है कि तीन तलाक, हलाला आदि मुद्दे आज सबसे महत्वपूर्ण हैं, जिनका हल मुस्लिम लॉ बोर्ड में खोजने से समस्याओं की तीव्रता में वृद्धि ही हुई है.


इसी प्रकार जो दूसरा मुख्य मुद्दा है वह जनसंख्या नियंत्रण क़ानून बनाना. आज भारत के समक्ष जो समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण है जनसंख्या नियंत्रण क़ानून. भारत विश्व में जनसँख्या के मामले में दूसरे स्थान पर है तो वहीं उसके पास विश्व के भूभाग का सातवाँ हिस्सा है. आज यदि जनसंख्या की वृद्धि को नहीं रोका गया तो हमारे पास न ही स्वच्छ जल बचेगा और न ही स्वच्छ हवा. हमारे पास रहने के लिए भूमि का भी अभाव होगा. हर वर्ष इतनी बड़ी संख्या में रोजगार सृजन भी एक समस्या है. प्राकृतिक संसाधनों के नित्य क्षरण के संग किस प्रकार कोई देश प्रगति कर सकता है यह भी स्वयं में विचारणीय है. अत: बहुत आवश्यक है कि मोदी सरकार शीघ्र ही जनसंख्या नियंत्रण क़ानून को संसद में पारित करवाए. हालांकि मुस्लिम समाज के तुष्टिकरण के कारण बाकी दल इस विधेयक का हर संभव विरोध करेंगे और वह प्रयास करेंगे कि यह पारित न हो, इसलिए आवश्यक है कि इस मुद्दे पर जनता द्वारा दबाव बनाया जाए. यह जनता द्वारा किया गया आन्दोलन ही था जिसने निर्भया क़ानून बनाने में योगदान दिया. यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में विचाराधीन है.


एक और मुद्दा जिस पर अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर की है, वह है विदेशियों की घुसपैठ का मामला. उन्होंने रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने की मांग करते हुए याचिका दायर की है. इस मामले पर सरकार से उच्चतम न्यायालय ने उत्तर माँगा है जो अभी तक सरकार ने नहीं दिया है. इसी प्रकार कश्मीर को अलग दर्जा देने का विरोध करते हुए अश्विनी उपाध्याय ने धारा 35ए और 370 को समाप्त करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, जो अभी लंबित है.


पिछले दिनों तीन तलाक मुद्दा काफी सुर्ख़ियों में रहा  था, जिसे उच्चतम न्यायालय ने प्रतिबंधित कर दिया तथा सरकार को इस विषय में क़ानून बनाने के लिए कहा गया. सरकार इस संबंध में अध्यादेश लाकर लागू करवा चुकी है तथा लोक सभा में पारित होकर अब इसे राज्यसभा में पारित किए जाने की प्रतीक्षा है. मुस्लिम समाज में स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों की सूची लम्बी है. जिनमें मुख्य हैं बहुविवाह, निकाह हलाला, निकाह मुताह,निकाह मिस्यार, जिन पर रोक लगाने के लिए भी अश्विनी उपाध्याय ने न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर रखी है. यह याचिका उच्चतम न्यायालय में लंबित है. अभी इस विषय में केंद्र सरकार ने अपना उत्तर नहीं दिया है.


इसी प्रकार शरिया अदालतों पर प्रतिबन्ध के लिए भी अश्विनी उपाध्याय सक्रिय हैं क्योंकि उनका मानना है कि शरिया अदालतें किसी भी धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में उचित नहीं हैं. जब देश में न्याय देने के लिए भारतीय दंड संहिता है, जिसके दायरे में हिन्दू समाज आता है और आपराधिक मामले आते हैं, तो शरिया अदालतों का औचित्य क्या है? इस मामले में भी केंद्र सरकार ने अभी तक न्यायालय को उत्तर नहीं दिया है. उपाध्याय की जनहित याचिका के कारण केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति हो गए लेकिन केंद्र सरकार ने सिटीजन चार्टर अभी तक लागू नहीं किया.


अधिकतर हमें एक शब्द सुनाई देता है अल्पसंख्यक! परन्तु यह अभी तक निर्धारित नहीं हो पाया है कि आखिर अल्पसंख्यकों की परिभाषा क्या हो? क्या उन राज्यों में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, जहां उनकी संख्या अधिक है? अल्पसंख्यकों की परिभाषा राज्य के अनुसार हो या धर्म के अनुसार? यह निर्धारण करना अत्यंत आवश्यक है. अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर 11 फरवरी को उच्चतम न्यायालय ने अल्पसंख्यक आयोग को 90 दिन अर्थात 10 मई तक अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय करने का आदेश दिया था लेकिन अभी तक सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया. प्रश्न यह भी है कि आखिर सरकार इन सभी ज्वलंत मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट क्यों नहीं कर रही है? क्या मुसलमानों को अभी भी अल्पसंख्यकों की श्रेणी में रखना उचित है जब वह  सरकार बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में तो हैं ही, वह नीतियों को भी प्रभावित करने की स्थिति में हैं. वर्तमान में स्थिति यह है कि हिन्दू आज आठ राज्यों में अल्पसंख्यक हो चुका है, तो क्या उन्हें वहां पर अल्पसंख्यकों में रखा जाए.


अश्विनी उपाध्याय की नज़र सामाजिक मुद्दों पर ही नहीं बल्कि आर्थिक मुद्दों पर भी है. उनका मानना है कि मुद्रा के बड़े नोट ही हैं जिनके कारण भ्रष्टाचार पनपता है, इसलिए उन्होंने 100 रूपए से अधिक बड़े नोटों को बंद कराने, 10 हजार रुपये से महंगे समान का कैश लेनदेन बंद करने और 1 लाख रुपये से महंगी चल-अचल संपत्ति को आधार से लिंक करने की मांग वाली याचिका वित्त मंत्रालय ने अपना जबाब अभी तक सुप्रीम कोर्ट में दाखिल नहीं किया है. अभी जनता को भी इस संबंध में सरकार के रुख का इंतज़ार है. इन सभी मुद्दों के माध्यम से अश्विनी उपाध्याय जनता को भी जागरूक कर रहे हैं व सरकार की जनता के मुद्दों के प्रति जबावदेही भी निर्धारित कर रहे हैं. इसी के साथ उन्होंने आर्थिक मामलों में हेराफेरी करने को आपराधिक मानते हुए जबावदेही तय करने का निश्चय किया है. उन्होंने आधिकारिक दस्तावेजों जैसे आधार, पैन और पासपोर्ट को नकली बनाने के लिए भी उम्रकैद की मांग की है.


भारत में एक संस्थान है जिसमें सर्वाधिक सुधार की आवश्यकता है और वह है पुलिस विभाग. आज कई कारणों से पुलिस विभाग में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार है, और इसका कारण है पुलिस का वहीं 1861 से चला आ रहा क़ानून. अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की है कि पुलिस अधिनियम 1861 हटाया जाए तथा मॉडल पुलिस अधिनियम 2006 लागू किया जाए.


 

इस देश की कुछ सांस्कृतिक पहचानें हैं, और जिनके विषय में राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण किए जाने की आवश्यकता है, जैसे भारत में आज हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रचारित और प्रसारित करने के लिए राष्ट्रीय नीति बनाए जाने के साथ साथ योग एवं वन्देमातरम को प्रसारित किए जाने की भी आवश्यकता है. अश्विनी उपाध्याय ने इस संबंध में भी याचिका दायर की हुई है.


 

अश्विनी उपाध्याय का मानना है कि शिक्षा के अधिकार के स्थान पर एक समान शिक्षा का अधिकार होना चाहिए, इसलिए उन्होंने एक देश एक शिक्षा आयोग के क्रियान्वयन के लिए जनहित याचिका दायर की हुई है. भ्रष्टाचारियों, हवाला कारोबारियों, अलगववादियों, नक्सलियों कट्टरपंथियों, कालाबाजारियों, जमाखोरों, मिलावटखोरों, तस्करों तथा कालाधन, बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति रखने वालों को कठोर सजा की मांग वाली अश्विनी उपाध्याय की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.


अश्विनी उपाध्याय राजनीति को भी स्वच्छ बनाना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध की मांग वाली याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की. जो अभी भी उच्चतम न्यायालय में लंबित है. यह अश्विनी उपाध्याय की ही याचिका ही जिसके आधार पर पूरे देश में विधायकों सांसदों के मुकदमों को एक साल में निस्तारित करने के लिए विशेष न्यायालयों का गठन किया गया है. चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा की मांग वाली याचिका अभी दिल्ली उच्च न्यायालय में विचाराधीन है.


देश में एक राष्ट्रीय शिक्षा आयोग बनाने और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा शुरू करने वाली उपाध्याय की जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय का कहना है कि यह न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय है और सरकार को इसपर निर्णय लेना चाहिए.


अश्विनी उपाध्याय मात्र याचिका दायर करने में ही नहीं बल्कि उसे परिणाम तक पहुंचाने में विश्वास करते हैं. यही कारण है कि अब तक कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर वह विजयी हो चुके हैं, जैसे अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर हाई कोर्ट ने मथुरा जवाहर बाग कांड की सीबीआई जांच का आदेश दिया था और उनकी याचिका पर ही माफिया डॉन अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश से गुजरात की जेल भेजा गया था, लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपने आपराधिक इतिहास को 3 बार अखबार और समाचार चैनलों पर प्रकाशित करने का आदेश भी सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की याचिका पर दिया था.


अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गयी अन्य महत्वपूर्ण जनहित याचिकाएं हैं:


  •  चुनाव रविवार को ही कराए जाएं
  • एक से अधिक संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगाया जाए
  • निर्वाचन आयोग की निर्णय लेने की शक्ति पर पुनर्विचार किया जाए
  • सभी न्यायालयों को वर्ष में कम से कम 225 दिन कार्य करना चाहिए।  
  • राष्ट्रीय एकता एवं एकीकरण आयोग की स्थापना करना
  • मतदाता पंजीकरण के लिए डाकखाने को नोडल संस्था बनाया जाए
  • चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शिक्षा तथा अधिकतम उम्र सीमा नियत की जाए

  • ब्रेन मैपिंग, नारको विश्लेषण तथा पोलीग्राफ को आवश्यक बनाया जाए

अश्विनी उपाध्याय यह सभी याचिकाएं एक नागरिक होने के दायरे में दायर करते हैं. उनका यह स्पष्ट मानना  है कि एक राजनीतिक व्यक्तित्व होने से पहले वह एक आम नागरिक हैं जिसका उद्देश्य है आम जनता को न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करना. अश्विनी उपाध्याय उन सभी व्यक्तियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं जो छोटी-छोटी परेशानियों से भयभीत होकर कदम उठाने से डरते हैं. वह आज लाखों व्यक्तियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. आज अश्विनी उपाध्याय जैसे युवाओं की आवश्यकता न केवल समाज बल्कि राजनीति में भी है जिनमें समाज को क़ानून के उचित मार्ग से सुधारने का जूनून है.


अश्विनी उपाध्याय समाज में समानता का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं. वह राजनीति को स्वच्छ बनाना चाहते हैं ताकि आने वाले समय में काले धन और भ्रष्टाचार के हर रूप से स्वतंत्रता प्राप्त हो सके और भारत सच्चे अर्थों में स्वतंत्र हो सके.


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