दुख्तरे हिन्दोस्तां.. नीलाम ए दो दीनार…ले जाओ हिंदुओं की खूबसूरत लड़कियां’, मुगलकालीन काला इतिहास पढ़ रूह कांप जाएगी

वो समयकाल था ईसा के बाद की ग्यारहवीं सदी..भारत अपनी पश्चिमोत्तर सीमा पर अभी-अभी ही राजा जयपाल की पराजय हुई थी …इस पराजय के तुरंत पश्चात का अफगानिस्तान के एक शहर….. गजनी का एक बाज़ार..


ऊंचे से एक चबूतरे पर खड़ी कम उम्र की सैंकड़ों हिन्दू स्त्रियों की भीड जिनके सामने हज़ारों वहशी से दीखते बदसूरत किस्म के लोगों की भीड़ लगी हुई थी. जिनमें अधिकतर अधेड़ या उम्र के उससे अगले दौर में थे.


कम उम्र की उन स्त्रियों की स्थिति देखने से ही अत्यंत दयनीय प्रतीत हो रही थी. उनमें अधिकाँश के गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें खिंची हुई थी.. मानो आसुओं को स्याही बना कर हाल ही में उनके द्वारा झेले गए भीषण दौर की कथा प्रारब्ध ने उनके कोमल गालों पर लिखने का प्रयास किया हो.


एक बात जो उन सबमें समान थी, किसी के भी शरीर पर वस्त्र का एक छोटा सा टुकड़ा नाम को भी नहीं था. सभी सम्पूर्ण निर्वसना . सभी के पैरों में छाले थे. मानो सैंकड़ों मील की दूरी पैदल तय की हो.


सामने खड़े वहशियों की भीड़ अपनी वासनामयी आँखों से उनके अंगों की नाप-जोख कर रही थी. कुछ मनबढ़ आंखों के स्थान पर हाथों का प्रयोग भी कर रहे थे. सूनी आँखों से अजनबी शहर और अनजान लोगों की भीड़ को निहारती उन स्त्रियों के समक्ष हाथ में चाबुक लिए क्रूर चेहरे वाला घिनौने व्यक्तित्व का एक गंजा व्यक्ति खड़ा था.. मूंछ सफाचट.. बेतरतीब दाढ़ी उसकी प्रकृतिजन्य कुटिलता को चार चाँद लगा रही थी.


दो दीनार….. दो दीनार… दो दीनार…हिन्दुओं की खूबसूरत औरतें.. शाही लडकियां.. कीमत सिर्फ दो दीनार.. ले जाओ.. ले जाओ.. बंदी बनाओ… एक लौंडी… सिर्फ दो दीनार.. दुख्तरे हिन्दोस्तां.. दो दीनार.. भारत की बेटी.. मोल सिर्फ दो दीनार.


उस स्थान पर इस मतान्ध सोच वालों ने एक मीनार बना रखी है, जिस पर लिखा है- ‘दुख्तरे हिन्दोस्तान.. नीलामे दो दीनार..’ अर्थात ये वो स्थान है… जहां हिन्दू औरतें दो-दो दीनार में नीलाम हुईं. महमूद गजनवी हिन्दुओं को अपमानित करने व अपने मतान्ध विचारधारा को पूर्ण करने के लिए अपने सत्रह हमलों में लगभग चार लाख हिन्दू स्त्रियों को पकड़ कर गजनी उठा ले गया.. घोड़ों के पीछे.. रस्सी से बांध कर.


महमूद गजनवी जब इन औरतों को गजनी ले जा रहा था, तो वे अपने पिता-भाई और पतियों से बुला-बुला कर बिलख-बिलख कर रो रही थीं. अपनी रक्षा के लिए पुकार कर रही थीं, लेकिन करोडो हिन्दुओं के बीच से उनकी आँखों के सामने वो निरीह स्त्रियां मुठ्ठी भर क्रूर सैनिकों द्वारा घसीट कर भेड़ बकरियों की तरह ले जाई गईं. रोती बिलखती इन लाखों हिन्दू नारियों को बचाने न उनके पिता बढ़े, न पति उठे, न भाई और न ही इस विशाल भारत के करोड़ो समान्य लोग.


महमूद गजनी ने इन हिन्दू लड़कियों और औरतों को ले जा कर गजनवी के बाजार में समान की तरह बेच ड़ाला. विश्व के किसी धर्म के साथ ऐसा अपमान नही हुआ जैसा हिन्दुओं के साथ हुआ, और ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि ये बंटे रहे कभी क्षेत्रवाद तो कभी जातिवाद की सोच में, कुछ तो हमेशा ही खुद न लड़ कर भगवान भरोसे बैठे रहे. अधिकांश तो मुट्ठी भर लड़ रही हिन्दू सेना और ग़ज़नवी की सेना को देख कर तमाशा देख रहे थे कि इसमें से जो जीते हम उसकी गुलामी करें जैसे आज कश्मीर में खुलेआम भारत विरोधी नारे लगाते और बन्दूक उठाये आक्रांताओं से लड़ रहे हमारे कुछ सैनिक और बाकी केवल तमाशबीन हैं.सवाल ये है कि क्या ये फिर से नही दोहराया जाएगा ? कौन लेगा इसकी गारंटी ?.


(यति नरसिंहानंद, यह लेख उनका निजी विचार है)


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