पटना: राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक ऐसी चाल चली है, जिससे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 तक भाजपा की सांसें फूली रहेंगी। उन्होंने अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में उतारकर यह संकेत दे दिया कि वह अब भी पूरी तरह सक्रिय हैं और राजनीतिक बिसात पर शह और मात का खेल बखूबी जानते हैं।
नीतीश कुमार ने निशांत को ऐसे समय में आगे किया है जब जेपी आंदोलन से निकले नेता अपनी अंतिम पारी खेल रहे हैं और राज्य में युवा नेतृत्व की मांग बढ़ रही है। राजद पहले ही तेजस्वी यादव, तेजप्रताप यादव और मीसा भारती के सहारे युवा नेतृत्व को आगे कर चुका है। लोजपा ने चिराग पासवान को अपना चेहरा बनाया है, जबकि कांग्रेस कृष्णा और कन्हैया की जोड़ी के साथ मैदान में है। ऐसे में नीतीश कुमार ने अपने बेटे निशांत को राजनीति में लाकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
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नीतीश कुमार की इस रणनीति ने भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। अब तक भाजपा बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व को स्वीकार कर उनकी पालकी ढो रही थी, लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या उसे निशांत कुमार की भी पालकी ढोनी पड़ेगी? भाजपा के पास बिहार में कोई मजबूत मुख्यमंत्री चेहरा नहीं है, जबकि जदयू का दबदबा हमेशा से अधिक रहा है।
2025 का चुनाव नीतीश कुमार के लिए 2010 में जदयू को मिली ऐतिहासिक जीत का रिकॉर्ड तोड़ने का अवसर हो सकता है। उन्होंने निशांत को आगे कर अपने विकास और शांति पसंद वोट बैंक को एक नया विकल्प दे दिया है। यह एक ऐसा चेहरा है जो अब तक राजनीति से दूर रहा है और अब अपने पिता के कमजोर होते कंधों पर सिर रखने आया है।
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अगर निशांत कुमार सक्रिय राजनीति में आते हैं, तो उनके पास एक इंजीनियरिंग डिग्री और नौकरी छोड़ने का त्याग होगा, जो जनता को प्रभावित कर सकता है। खासकर, लव-कुश समाज और विकास समर्थक वोटर उनके साथ आ सकते हैं। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि आगामी चुनाव में 30 से 35 वर्ष के युवा मतदाता, जो कुल वोटर्स का लगभग 58% हैं, एक निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
निशांत कुमार का राजनीति में प्रवेश भाजपा के लिए एक नई मुसीबत बन सकता है। अब तक भाजपा ने कई प्रयोग किए, लेकिन बिहार में वह ऐसा कोई चेहरा नहीं तैयार कर पाई, जो नीतीश कुमार का मजबूत विकल्प बन सके। नीतीश कुमार की राजनीतिक मजबूती आज भी भाजपा की कमजोरी बनी हुई है।
नीतीश कुमार ने अपने बेटे को आगे कर तेजस्वी यादव के युवा नेतृत्व को सीधी चुनौती दी है। हालांकि, निशांत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि क्या वह अपने पिता की तरह मजबूत राजनीतिक कद बना पाएंगे? निशांत ने अब तक राजनीति से दूरी बनाए रखी थी, ऐसे में क्या वह लव-कुश समाज का समर्थन उसी तरह हासिल कर पाएंगे, जैसा उनके पिता को मिला था?
फिलहाल, निशांत कुमार राजनीति में नया चेहरा हैं, जिनके नेतृत्व की परीक्षा अभी बाकी है। क्या वह अपने पिता जैसी साख बना पाएंगे? क्या भाजपा इस नए समीकरण का तोड़ निकाल पाएगी? यह सब सवाल 2025 के चुनाव में ही स्पष्ट होंगे। लेकिन एक बात तय है—नीतीश कुमार की यह चाल बिहार की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर ला सकती है।
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