भड़काऊ मैसेज कर दंगा कराने की फिराक में था सोहराब अली, नफरत फैलाने के लिए 8 फर्जी ट्विटर अकाउंट करता था इस्तेमाल

राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भड़काऊ टिप्पणी करने वाले दिल्ली निवासी सोहराब अली (Sohrab Ali) की ने पुलिस पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. सोहराब ने बताया कि वह कोई पत्रकार नहीं है बल्कि दिल्ली में एक कोचिंग चलाता है. अपनी ट्विटर प्रोफाइल पर उसने एक डरा हुआ पत्रकार लोगों को गुमराह करने के लिए लिखा था. उसने कबूला कि वह कई ट्विटर अकाउंट चलाता था जिनमें मुख्य अकाउंट समेत 8 बेहद सक्रिय थे, जिसका इस्तेमाल वह वैमनस्य फैलाने में करता था. रिमांड के दौरान उसने यह जानकारी जांच अधिकारियों को दी है.


अली सोहराब ने बताया कि उसने दूरस्थ शिक्षा माध्यम से समाजशास्त्र में एमबीए किया है और वर्तमान में दिल्ली में ही कोचिंग चलाता है उससे प्रभावित कई छात्रों ने आरोपी की गिरफ्तारी के बाद ट्विटर पर रिलीज सोहराब अली नाम से मुहिम चलाई थी. उसने कबूला कि वह कोई पत्रकार नहीं है जैसा कि उसने अपनी ट्विटर बायो पर ‘डर हुआ पत्रकार’ लिखा है. सोहराब ने बताया कि ऐसा वह लोगों को गुमराह करने, अकाउंट ग्रो करने और अपनी विचारधारा अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए करता था. सोहराब ने कई ट्विटर अकाउंट इस्तेमाल करने की बात भी कबूली है.


19 नवंबर को विशेष सीजेएम कस्टम सुदेश कुमार ने सोहराब 48 घंटे की रिमांड मंजूर की थी. बुधवार सुबह हजरतगंज पुलिस आरोपी को जिला जेल से लेकर कोतवाली पहुंची. जहां उससे कई घंटे तक पूछताछ की आरोपी ने किसी भी विचारधारा से जुड़े होने की बात नकारी है. जांच अधिकारियों को उसने बताया कि वह विभिन्न मुद्दों पर अपने नजरिया रखता है इसी कारण से उसके ट्विटर अकाउंट पर 1 लाख 61 हजार से ज्यादा फॉलोवर हैं. हलांकि पुलिस उससे विभिन्न एंगल से पूछताछ कर रही है.


बता दें कि दिल्ली के सुंदर नगर निवासी अली सोहराब को 16 नवंबर को हजरतगंज पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उसने काकवाणी नाम के ट्विटर हैंडल से मंदिर के फैसले पर भड़काऊ टिप्पणी की थी. अली ने इसके पहले हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या के मामले में साम्प्रदायिक पोस्ट डाले थे. इस मामले भी साइबर क्राइम थाने में उसके खिलाफ दर्ज किया गया था. अभियोजन पक्ष की ओर से वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी अवधेश सिंह ने दलील दी कि आरोपित को सजा दिलवाने के लिए उस डिवाइस को बरामद करना है जिससे पोस्ट डाले गए थे. इस पर बचाव पक्ष के वकील ने रिमांड का विरोध किया, लेकिन मैजिस्ट्रेट ने अभियोजन पक्ष की दलील को स्वीकार करते हुए 20 से 22 नवंबर तक पुलिस कस्टडी रिमांड मंजूर कर ली है.


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