OPINION: ईवीएम का विरोध, संसद ठप, सुधरने वाला नहीं है भारत का विपक्ष

चार जून 2024 के लोकसभा चुनाव में पिछली बार की तुलना में मिली मामूली बढ़त से उत्साहित कांग्रेस को इसके तुरंत बाद हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में अपने इंडी गठबंधन के साथ भारी पराजय का मुख देखना जिसके कारण ये अब गहरी निराशा व हताशा में हैं और उन्हीं हरकतों पर उतर आए हैं जो ये लोकसभा चुनावों से पहले कर रहे थे। कुछ राजनैतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे थे कि हरियाणा तथा महाराष्ट्र में भारी पराजय के बाद विपक्षी दल संसद चलाने में सहयोग करेंगे किंतु फिलहाल ऐसा होता प्रतीत नहीं होता कि संसद के शीततकालीन सत्र में कोई महत्वपूर्ण विधायी कार्य संपन्न हो सकेगा।

संसद के शीतकालीन सत्र का प्रथम सप्ताह अडाणी व संभल हिंसा को लेकर हंगामे की भेंट चढ़ चुका है। विपक्षी दल संसद में इसलिए भी बहस नहीं होने देना चाहते हैं क्योंकि जब संसद में बहस होने पर वे पूरी तरह बेनकाब हो जाते हैं। देश की जनता कांग्रेस को अडानी, संविधान व जातिगत जनगणना के मुद्दे पर लगातार नकार रही है किंतु कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार इन्हीं मुददों को लाल किताब जिसे वे संविधान की प्रति कहते हैं हाथ में लेकर बार -बार हवा में उछालते हैं। इन्हीं मुद्दों पर सदन को बाधित करते हैं।

दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के संविधान रक्षक सम्मेलन में राहुल गाँधी ने वही किताब दिखाते हुए कहा कि इसमें कहीं सावरकर का नाम नहीं है। इसी कार्यक्रम में बोलते हुए राहुल गांधी का माइक बंद हो गया और आदतन राहुल गाँधी इसके लिए भी मोदी सरकार को दोष देते हुए उसे तानाशाह बताने लगे। हर समय संविधान संविधान करने वाले राहुल गाँधी से अब पूछा जाना चाहिए कि संविधान की किताब में झूठे मुद्दे उठाकर संसद ठप करने की बात कहाँ लिखी गई है।

कांग्रेस और इंडी गठबंधन को लगातार मिल रही पराजय पर जब इन दलों के नेताओं को आत्मचिंतन करना चाहिए था उस समय ये ईवीएम मशीनों और चुनाव आयोग पर हमलावर हैं। कांग्रेस व विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट सहित देश की विभिन्न हाईकोर्ट में 42 याचिकाएं दायर कीं किंतु हर जगह उनके वकीलो को मुंह की खानी पड़ी। हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव परिणामों के बाद विरोधी दलों का ईवीएम पर आरोप लगाने का रेडियो एक बार फिर ऑन हो गया है। लोकसभा चुनावों के पहले भी अप्रैल माह में जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने सुनवाई करते हुए विपक्ष के सभी आरेपों को खारिज करते हुए कहाकि हमें भी वह दिन याद है जब बैलेट पेपर से चुनाव होते थे औेर पूरा का पूरा बूथ लूट लिया जाता था।

हम अब देश को पुनः उस युग में नहीं ले जाना चाहते हैं। 26 नवंबर 2024 को भी सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग करने वाली एक याचिका पर न सिर्फ याचिकाकार्ता को कड़ी फटकार लगाई अपितु राजनैतिक दलों को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि आप जब चुनाव हार जाते हैं तो ईवीएम खराब हो जाती है ओैर जीत जाते हैं तो चुप्पी। हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ना ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश विक्रम नाथ और पीबी वराले की पीठ ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

कोर्ट ने याचिकार्ता से पूछा कि यह याचिका दायर करने का शानदार विचार अपको कैसे मिला? ऐसा प्रतीत हो रहा है कि विरोधी दलों ने अब अतिविश्वसनीय ईवीएम मशीनों के खिलाफ नफरत की दुकान खोल ली है और यही कारण है कि अब कांग्रेस ने ईवीएम मशीनों के खिलाफ अभियान प्रारम्भ करने की घोषणा कर दी है जिससे वह जनता में इन मशीनों के प्रति भ्रम उत्पन्न कर सके। हारे हुए दल देश में राजनैतिक अराजकता का वातावरण उत्पन्न करना चाहते हैं। 2014 से 2024 तक राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी लगभग 47 चुनाव बुरी तरह से हारी चुकी है और अब गांधी परिवार की नाकामी छुपाने के लिए ईवीएम विरोधी अभियान प्रारम्भ कर रही है। कांग्रेस की देखादेखी महाराष्ट्र की शिवसेना- उद्धव गुट व शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने भी ईवीएम के खिलाफ अभियान प्रारम्भ कर दिया है। शिवसेना उद्वव गुट ने तो अपने हारे हुए उम्मीदवारों से पांच प्रतिशत वीवीपैट से मिलान करवाने के लिए याचिकाएं दायर करवाने के लिए कह दिया है। शरद पवार के भतीजे रोहित पवार भी चुनावों को ईवीएम से हाईजैक कराने का आरोप लगा रहे हैं।

आज वही कांग्रेस ईवीएम का विरोध कर रही है जिसकी 2004 से 2014 तक ईवीएम द्वारा चुनी गई सरकार रही। यह वही कांग्रेस पार्टी है जो अभी 4 जून 2024 को 99 सीटों पर ईवीएम द्वारा विजयी होने के बाद राहुल गाँधी को शैडो पीएम बता रही थी। बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर पंजाब व दिल्ली विधानसभा में आप पार्टी की सरकार ईवीएम से ही बनी है यही नहीं जम्मू कश्मीर में भी आप पाटी का खाता ईवीएम से ही खुला है। झारखंड में हेमंत सोरेन व जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की सरकार ईवीएम से ही वापस आई है। अगर बीजेपी को ईवीएम हैक करवानी होती तो वह उन सभी राज्यों में भी हैक करवा सकती थी जहां विरोधी दलों की सरकारें हैं।

उत्तर प्रदेश के दोनों पूर्व मुख्यमंत्री क्रमशः अखिलेश यादव औैर बसपा नेत्री मायावती भी अब ईवीएम का खुलकर विरोध करने लग गये हैं। 4 जून 2024 को चुनाव परिणाम आने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बयान दिया था कि अगर बैलेट पेपर से चुनाव होते तो वह यूपी की सभी 80 सीटों पर सफलता प्राप्त करके दिखाते। उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में सपा नौ विधानसभा सीटों में से केवल दो सीटें ही जीत पाई उस पर सपा मुखिया बयान दे रहे हैं कि ईवीम मशीनों की वजह से ही भाजपा सात सीटें जीतने में कामयाब रही वहीं बसपा नेत्री मायावती का कहना है कि अब वह कोई उपचुनाव नहीं लड़ेंगी क्योंकि सभी चुनाव धांधली से हो रहे है।

स्मरणीय है कि निर्वाचन आयोग ने वर्ष 2017 में ईवीएम मशीनों को हैक करके दिखाने के लिए भरपूर अवसर दिया था किंतु कोई भी विरोधी दल उस हेकाथॉन में नहीं पहुंचा था। आप नेता सौरभ भारद्वाज ने एक बार दिल्ली विधानसभा में ईवीएम को हैक करके दिखाने का असफल प्रयास किया था। आज जो लोग संविधान रक्षक बनने का नाटक रच रहे हैं वास्तव में वही लोग संविधान के भक्षक हैं। यह सभी लोग चाहते हैं कि मतदान प्रक्रिया के दौरान कि मुस्लिम महिला का बुर्का उठाकर उसकी पहचान न की जाये क्योंकि बुर्के की आड़ में इनका फर्जी वोट पड़ता है । ये लोग एक समय में मतदाता पहचान पत्र का भी विरोध करते थे और उसमें फोटो लगाने का भी विरोध किया था, यही लोग हैं जो आधार कार्ड को मतदाता सूची से जोड़ने के भी विरोधी हैं। जनता द्वारा नकारा गया कांग्रेस का गांधी परिवार किसी न किसी तरह एक बार फिर सत्ता का नियंत्रण चाहता है औेर यही कारण है कि यह परिवार बार बार भारत की चुनाव प्रक्रिया तथा चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करने का असफल प्रयास कर रहा है।

ये देखना हास्यास्पद है कि वही राहुल गांधी और उनकी पार्टी ईवीएम विरोधी यात्रा की घोषणा कर रहे हैं जिन्होंने ईवीएम से ही वायनाड और रायबरेली का चुनाव जीता, जिनकी बहन प्रियंका गांधी ने वायनाड से उपचुनाव जीता, जिनको लोकसभा में इसी ईवीएम से 99 सीट प्राप्त हुयीं। ऐसे में राहुल एंड कंपनी से एक ही प्रश्न पूछा जाना चाहिए क्या ईवीएम विरोधी आन्दोलन से पहले राहुल, प्रियंका और उनके बाकी सांसद/ विधायक आदि अपनी अपनी सीटों से त्यागपत्र देंगे क्योंकि ईवीएम से जीते गए चुनावों में तो घोटाला हुआ है।

( मृत्युंजय दीक्षित, लेखक राजनीतिक जानकार व स्तंभकार हैं.)

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