PIL Man के बेटे की सुप्रीम कोर्ट में याचिका, आर्टिकल 370 के समर्थन में दायर याचिकाओं का किया विरोध

जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 (Article 370) के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं में हस्तक्षेप की मांग करते हुए कानून के एक छात्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पीआईएल मैन अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) के बेटे निखिल उपाध्याय (Nikhil Upadhyay) ने अपनी हस्तक्षेप याचिका में केंद्र के फैसले का समर्थन करते हुए कहा है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान था और यह स्थायी रखने के लिए नहीं था।

अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए एक विशेष प्रावधान तत्कालीन प्रचलित सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के आलोक में किया गया था और यह भारत संघ और राज्य के तत्कालीन शासक के बीच संधि दस्तावेज के मद्देनजर था। शीर्ष अदालत ने 25 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को गर्मी की छुट्टी के बाद सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी।

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प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े की इन दलीलों का संज्ञान लिया था कि राज्य में परिसीमन की कवायद को देखते हुए याचिका पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। शीर्ष अदालत गर्मी की छुट्टी के बाद याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की पीठ के पुनर्गठन पर सहमत हो गई थी।

अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा न्यायमूर्ति (अब सीजेआई) एन वी रमण की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ को भेजा गया था। केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था।

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न्यायमूर्ति रमण के अलावा, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी (सेवानिवृत्त), न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने दो मार्च, 2020 को इन याचिकाओं को सात-न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ को सौंपने से इनकार कर दिया था।

पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन और एक हस्तक्षेपकर्ता ने मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजने की मांग की थी।

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