देश के गृह मंत्री और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह (Amit Shah) आज 56 वर्ष के हो गए हैं, इस खास मौके पर देश के दिग्गज नेता उन्हें जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, नितिन गडकरी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें ट्वीट कर बधाई दी है. पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा है, ”अमित शाह जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं. देश के विकास के लिए वो जिस कर्मठता के साथ अपना योगदान दे रहे हैं, उसके सभी साक्षी हैं. बीजेपी को मजबूत बनाने में भी उनका योगदान काफी अहम है. ईश्वर उन्हें भारत की सेवा में लंबे और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद दे.’’
‘अमित’ शब्द का मतलब होता है ‘विशाल’ माने कि कुछ बड़ा, वैसे तो हर किसी का सपना होता है कि जीवन में कुछ बड़ा करने का लेकिन इन्हें साकार कम ही लोग कर पाते हैं बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उनमें से एक हैं जिन्होंने अपने नाम को चरितार्थ किया. शाह राजनीतिक बिसात के ऐसे बाजीगर बनकर उभरे हैं जिनकी चाल विपक्ष भी हारने के बाद भी समझ पाता. शाह को ये संज्ञाएं कोई उत्तराधिकार में नहीं मिली इसके पीछे उनकी वर्षों की तपस्या बताई जाती है.
बात चाहें व्यूह संरचना की हो या फिर सूझबूझ की बंसल सभी कसौटियों पर खरे उतरते हैं और इसकी तस्दीक लोकसभा चुनावों पर आये एग्जिट पोल भी कर रहें हैं. रणनीति बनाने में माहिर माने जाने वाले शाह को लोग चाणक्य की उपाधि से नवाजते हैं. आइये जानते हैं अमित कौन हैं अमित शाह..
अमित शाह का शुरुआती जीवन
22 अक्तूबर 1964 को मुंबई के एक जैन बनिया परिवार में अमित शाह का जन्म हुआ था. 14 वर्ष की छोटी आयु में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में शामिल हुए थे. गांधीनगर के एक छोटे से शहर मनसा में ‘तरुण स्वयंसेवक’ के रूप में उन्होंने शुरुआत की थी. बाद में वे कॉलेज की पढ़ाई के लिए अहमदाबाद आए, जहां वे एबीवीपी में शामिल हो गए.
1982 में बायो-केमेस्ट्री के छात्र के रूप में अमित शाह अहमदाबाद में एबीवीपी के सचिव बन गए. फिर वे बीजेपी की अहमदाबाद इकाई के सचिव बने. तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1997 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने और फिर भाजपा प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष बनाए गए.
जीवन का वह मुश्किल दौर
गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख़ और उनकी पत्नी कौसर बी के कथित फ़र्ज़ी एनकाउंटर में अमित शाह का नाम आने के बाद ऐसा लग रहा था कि अमित शाह का राजनीतिक सफर अब थम गया. अमित शाह उस समय गुजरात के गृह मंत्री थे, जब सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी को 2005 में एनकाउंटर में मार दिया गया था.
अमित शाह का नाम 2006 में तुलसीराम प्रजापति के कथित फ़र्ज़ी एनकाउंटर में भी आया था. सोहराबुद्दीन के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया तो 2005 से 2006 के बीच हुए इस मामले की विस्तार से जांच शुरू हुई. 25 जुलाई 2010 को अमित शाह गिरफ़्तार कर लिए गए. 29 अक्तूबर 2010 को उन्हें ज़मानत मिली थी. उन पर अक्तूबर 2010 से लेकर सितंबर 2012 तक गुजरात में दाख़िल होने पर रोक थी. आख़िरकार सीबीआई कोर्ट ने 30 दिसंबर 2014 को उन्हें बरी कर दिया.
संगठनात्मक कौशल
अमित शाह के बारे में कहा जाता है कि वे एक बेहतरीन मैनेजर हैं. उनका अनुशासन सेना की तरह है जो बीजेपी कार्यकर्ताओं में देखने को मिलता है. वो अपने कैडर को ख़ुद अनुशासन की सीख देते हैं. दशकों से बूथ मैनेजमेंट पर जोर दे रहे हैं. 2010 में उन्हें बीजेपी का महासचिव बनाया गया और उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई.
यह अमित शाह की ही देन है कि जिस बीजेपी ने यह मान लिया था कि वह हिंदी पट्टी की पार्टी है, उसकी अब नॉर्थ ईस्ट के अधिकांश राज्यों में सरकारें हैं. त्रिपुरा की वर्षों पुरानी वाम मोर्चा सरकार को बीजेपी ने अगर उखाड़ फेंका तो यह अमित शाह के संगठनात्मक कौशल का ही कमाल है. अब पश्चिम बंगाल में पार्टी ने ममता के गढ़ को जबर्दस्त चोट पहुंचाई है. तेलंगाना में पार्टी ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है.
खुद से खुदका करते हैं मुकाबला
पार्टी अध्यक्ष के तौर पर शाह ने पांच साल से अधिक समय तक काम किया, और इन वर्षों में ऐसे प्रसंग सैकड़ों की संख्या में होंगे. दरअसल, यही गुण हैं जो उन्हें वर्तमान राजनीति का अजेय चाणक्य बनाते हैं. यह भी जानना जरूरी है कि शाह ऐसे बिरले नेताओं में शुमार हैं जिनके ड्राइंग रूम में चाणक्य की फोटो मिलेगी. वह खुद बचपन से शतरंज के शौकीन रहे हैं और गुजरात में रहते हुए यह प्रयास भी करते रहे कि बच्चों को शतरंज जरूर सिखाया जाए ताकि वह जीवन की कला भी सीख सकें. शायद उन्होंने इसे इतना आत्मसात कर लिया है कि अब वह खुद के लिए कठिन लक्ष्य तय करते हैं और फिर उन्हें तोड़ते हैं.
अमित शाह को करीबी से जानने वाले कहते हैं कि ये उनमे से हैं जो खुद से खुदका मुकाबला करते हैं और वैसे ही लक्ष्य बनाते हैं. वैसे ये बात सच सी लगती है, नहीं तो कोई कारण नहीं था कि 2014 में 282 सीटों के भारी भरकम लक्ष्य को भेदकर वह 300 पार का लक्ष्य तय करते और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चमत्कारिक व्यक्तित्व और कौशल के जरिये उसे भी पूरा कर देते.
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