कहते हैं कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड’ माने कि देरी से मिला न्याय अन्याय की श्रेणी में आता है. देशभर से ऐसे तमाम मामले सामने आए जिनमें पीड़ित मर तक जाता लेकिन उसे न्याय नहीं मिल पाता, मिलती है तो बस तारीख. न्याय के बजाय महज तारीख देने वाले सिस्टम में बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने सुधार की मांग की है. उपाध्याय की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही 180 दिन नहीं बल्कि 250 दिन चलनी चाहिए, तभी लंबित मामलों का निपटारा हो सकता है.
अश्विनी उपाध्याय ने मंगलवार को ट्वीट कर लिखा, “हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के जज अंग्रेज होते थे. गर्मी से बचने के लिए स्वदेश जाते थे इसलिए मई जून में छुट्टी क्रिसमस – नया वर्ष मनाने स्वदेश जाते थे. इसलिए दिसंबर में भी छुट्टी वह परंपरा आजतक चल रही है जबकि 5 करोड़ लोग न्याय के लिए तड़प रहे हैं 250 दिन तो कोर्ट खोलिए माइ लार्ड”.
अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में लगभग 400 मैटर संविधान पीठ से संबधित लंबित हैं, जिन्हें 5 या उससे अधिक जजों को सुनना है. इसमें 52 मेन मामले हैं, बाकी इससे जुड़े हुए मामले हैं. उन्होंने बताया कि हाल ही में लॉ कमीशन की रिपोर्ट में वर्किंग डे व समय बढ़ाने की बात कही गई थी, लेकिन इस दिशा में अभी तक कुछ नहीं हुआ. वर्तमान समय में 10:30 से 4 बजे तक कोर्ट चलती है वहीं बीच में 1 घंटे का लंच भी होता है. इस दौरान सुनवाई के लिए रोजाना 12 से 13 बेंच बैठती हैं.
उपाध्याय ने बताया जबसे कोरोना आया है माने कि बीते करीब एक साल से सुप्रीम कोर्ट में 5 से 6 बेंच ही बैठती हैं वो भी 2-3 घंटे के लिए. जहां पहले सारी बेंच लगभग 40 से 50 मामलें सुनती थीं, वो संख्या घटकर आज महज 20-25 रह गई. इसकी वजह से लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है. उन्होंने कहा कि जब संविधान पीठ का कोई एक मैटर डिसाइड होता है तो देशभर के हाईकोर्ट, डिस्ट्रिक कोर्ट के करीब 5 से 6 हजार मामले अपने आप डिसाइड हो जाते हैं. इसीलिए लंबित मामलों के तीव्र निस्तारण के लिए 185 दिन नहीं कम से कम 250 दिन सुप्रीम कोर्ट चलना चाहिए.
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