गोरखपुर के दक्षिणांचल का एक गांव आज करीब 22 सालों बाद फिर से चर्चा में आया है. गाँव का नाम है ‘मामखोर’, यहां की मिट्टी का एक युवा, जिसने रील लाइफ से दुनिया में पहचान बनाई. तो वहीं दूसरा अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बना. दोनों ही अपने नाम में शुक्ला लगाते हैं, जी! हां हम बात कर रहे हैं रवि किशन शुक्ला और श्रीप्रकाश शुक्ला की.
गोरखपुर को 80 के दशक में अपराध की दुनिया के रूप में पहचाना जाता रहा है. ये वही दौर था, जब लोग शाम होने के बाद घरों से बाहर निकलने से भी डरते थे. राह चलते कब गोलियों की तड़तड़ाहट, कब गैंगवार हो जाए, ये किसी को नहीं पता था. मिनटों में कई-कई लाशें सड़क पर बिछ जाती थीं. इसके बाद 90 का दौर भी आया, जब इस शहर का एक युवा के अपराध की बादशाहत से बड़े-बड़े खौफ खाने लगे. इसी शहर के दक्षिणांचल के चिल्लूपार विधानसभा में बसा है ‘शुक्ल’ ब्राह्मणों का गांव ‘मामखोर.’ कहा जाता है कि मामखोर के बहुत से ‘शुक्ल ब्राह्मण’ देश के अलग-अलग शहर और अलग-अलग देशों में जाकर बसें हैं. जिनमें रवि किशन शुक्ला भी हैं.
आज अचानक मामखोर का जिक्र फिर से होने लगा जिसके पीछे हैं गोरखपुर से बीजेपी प्रत्याशी रवी किशन, इनके पूर्वज इस गाँव में रहते थे इसे साबित करने के लिए रवि किशन मामखोर गांव गए और वहां की माटी को माथे से भी लगाया. वहां के दुर्गा मंदिर में पूजा-अर्चना कर जीत का आशीर्वाद लेने के साथ वहां के लोगों से मुलाकात भी की.
रवि किशन के जन्म के पांच साल के बाद यानी साल 1973 में उन्हीं के गांव के एक और शुक्ल परिवार में बेटे ने जन्म लिया. इसका नाम रखा गया श्रीप्रकाश शुक्ला. इसी ‘मामखोर’ गांव और गोरखपुर शहर में पले-बढ़े श्रीप्रकाश शुक्ला का शौक पहलवानी करना था. लम्बी-चौड़ी कद-काठी वाला इस नौजवान ने भी उम्मीदों की उड़ान के सपने देखे थे. साल 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले राकेश तिवारी नामक एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. 20 साल के युवक श्रीप्रकाश के जीवन का यह पहला जुर्म था. इसके बाद उसने पलट कर नहीं देखा और वो जरायम की दुनिया में आगे बढ़ता चला गया.
उसके बाद बिहार के माफिया सूरजभान की मदद से वो बैंकॉक भाग गया. श्रीप्रकाश जब वहां से लौटा, तो वो उसने अपराध की दुनिया में अपने कदम बहुत तेजी से जमाए और विपक्षी पार्टी के नेताओं की हत्या की सुपारी लेने लगा. यही वजह है कि कई बड़ी राजनीतिक पार्टी के नेताओं के बीच उसकी चर्चा होने लगी. उसका संबंध कई बड़े राजनेताओं के साथ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों में भी रहा है. साल 1997 में उसके गैंग ने विरेन्द्र प्रताप शाही की लखनऊ में हत्या कर दी. उसके बाद उसने लखनऊ के व्यापारी की हत्या कर उसके बेटे का अपहरण कर लिया. फिरौती की रकम मिलने के बाद उसने व्यापारी के बेटे को छोड़ा था.
जून 1998 में श्रीप्रकाश शुक्ला बिहार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या कर सुर्खियों में आ गया. इसके कुछ दिन बाद ही उसने मोतिहारी के विधायक अजीत सरकार की हत्या कर दी. उसके बाद फर्रुखाबाद के सांसद साक्षी महाराज ने दावा किया कि श्रीप्रकाश शुक्ला यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ली है. ये सब सुनकर पुलिस के हाथ-पांव फूल गए. आनन-फानन में एसटीएफ का गठन किया गया. एसटीएफ ने उसका मोबाइल ट्रेस कर गाजियाबाद में उसे 22 सितंबर 1998 को मुठभेड़ में मार गिराया. श्रीप्रकाश पर कई फिल्में भी बनीं. हालिया वेब सीरीज में श्रीप्रकाश को शरण देने वाले बिहार के माफिया डान सूरजभान का किरदार रविकिशन ने ही निभाया है.
माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला अपने पास हर वक्त एके47 राइफल रखता था. पुलिस रिकार्ड के मुताबिक श्रीप्रकाश के खात्मे के लिए पुलिस ने जो अभियान चलाया. उस पर लगभग एक करोड़ रुपये खर्च हुए थे. यह अपने आप में इस तरह का पहला मामला था, जब पुलिस ने किसी अपराधी को पकड़ने के लिए इतनी बड़ी रकम खर्च की थी. उस वक्त सर्विलांस का इस्तेमाल किया जाना भी काफी महंगा था. इसे अभी तक का सबसे खर्चीला पुलिस मिशन कहा जा सकता है.
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