राजधानी लखनऊ (Lucknow) और नोएडा (Noida) के पुलिस कमिश्नरों (Commissioner of Poice) के अधिकारों में कुछ कटौती की जा सकती है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 133 और 145 के तहत कार्रवाई का आधिकार पुलिस कमिश्नर से लेकर फिर से जिलाधिकारी को दिए जाने पर विचार किया जा रहा है। ये दोनों धाराएं जमीन से जुड़े विवादों में कार्रवाई से संबंधित हैं। इस संबंध में शासन ने लखनऊ और नोएडा के जिलाधिकारियों से एक हफ्ते में रिपोर्ट तलब की है।
अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी की तरफ से लखनऊ व नोएडा के जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर दोनों धाराओं के तहत कार्रवाई का अधिकार फिर से जिला मजिस्ट्रेट को ही सौंप दिए जाने के संबंध में वस्तुपरक और औचित्यपूर्ण रिपोर्ट एक हफ्ते में उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है।
पत्र में कहा गया कि लखनऊ नगर और गौतमबुद्धनगर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने के संबंध में 13 जनवरी 2020 को जारी अधिसूचना में पुलिस कमिश्नर को कार्यपालक मजिस्ट्रेट, अपर जिला मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान की गई थीं।
इसी तरह लखनऊ नगर और गौतमबुद्धनगर में तैनात संयुक्त पुलिस कमिश्नर, अपर पुलिस कमिश्नर, उप पुलिस कमिश्नर, अपर उप पुलिस कमिश्नर और सहायक पुलिस कमिश्नर को भी कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान की गई थीं। इससे उन्हें सीआरपीसी की धारा 133 और 145 के तहत कार्रवाई का अधिकार भी मिला हुआ है।
धारा 133- भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 133 वहां लागू होती है, जहां विधि विरुद्ध जमाव या लोक न्यूसेंस की शिकायत होती है। इसके तहत कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह अधिकार होता है कि यदि कहीं उसे ‘न्यूसेंस’ की शिकायत प्राप्त होती है और उससे लोक शांति भंग होने का खतरा है तो वह सभी पक्षों की सुनवाई करके ‘न्यूसेंस’ को हटाने का आदेश दे सकता है। जनरेटर के धुएं, वाहन खड़े करने या आम रास्ता रोके जाने जैसे मामलों में ऐसे विवाद अक्सर होते रहते हैं।
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धारा 145- भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 145 वहां लागू होती है जहां जमीन के स्वामित्व, कब्जे या जल से संबंधित विवादों के कारण लोक शांति भंग होने की संभावना हो। गांवों में ऐसे विवाद ज्यादा होते हैं। इसमें पुलिस की रिपोर्ट पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट कार्रवाई करता है।
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