UP: उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी सत्ता का केंद्र रहा ब्राह्मण समाज लंबे समय से हाशिए पर है। नारायण दत्त तिवारी के बाद से अब तक सूबे को कोई भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं मिल सका। बीते करीब तीन दशकों में राजनीतिक दलों के लिए ब्राह्मण समाज सत्ता के साझेदार की बजाय केवल एक वोटबैंक बनकर रह गया है। ऐसे माहौल में बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों की हालिया बैठक ने सियासी हलचल तेज कर दी है।
शीतकालीन सत्र के बीच ब्राह्मण विधायकों की अहम बैठक
विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान 23 दिसंबर को लखनऊ में कुशीनगर से बीजेपी विधायक पंचानंद पाठक के सरकारी आवास पर ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक हुई। इस बैठक में 40 से अधिक ब्राह्मण समाज के विधायक शामिल हुए। बैठक की खबर सामने आते ही प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण राजनीति को लेकर चर्चाएं तेज हो गईं।
बीजेपी नेतृत्व की नसीहत और चेतावनी
ब्राह्मण विधायकों की इस बैठक पर बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी ने कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि इस तरह की जातिगत बैठकें बीजेपी के संविधान के अनुरूप नहीं हैं। पार्टी नेतृत्व की इस टिप्पणी के बाद सियासी बहस और तेज हो गई।
पंचानंद पाठक का पलटवार
जय श्री राम जय सनातन जय भाजपा
समाजवादी पार्टी का इतिहास ब्राह्मणों ही नहीं, पूरे हिंदू समाज और सनातन परंपराओं के प्रति अपमान, तुष्टीकरण और अराजकता से भरा रहा है। सपा की नीतियों ने भय और असुरक्षा का वातावरण फैला कर प्रदेश का माहौल विषाक्त करने की लगातार कोशिश किया , वे आज…
— P.N. Pathak (@PNPathakBJP) December 28, 2025
बीजेपी अध्यक्ष की टिप्पणी के बाद पंचानंद पाठक ने सोमवार देर शाम सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि ब्राह्मण समाज हमेशा से समाज और सनातन धर्म का नेतृत्व करता आया है। उनके बयान के बाद यूपी की राजनीति में जातीय समीकरणों को लेकर सवाल और गहरे हो गए।
सवाल वही पुराना, यूपी में कौन-कौन जाति के मुख्यमंत्री बने?
ब्राह्मण विधायकों की बैठक के बाद एक बार फिर यह सवाल चर्चा में है कि आखिर आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में किस-किस जाति के कितने मुख्यमंत्री बने हैं।
यूपी में अब तक 21 मुख्यमंत्री, ब्राह्मण सबसे आगे
आजादी के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश को कुल 21 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण समाज से रहे हैं। दूसरे नंबर पर ठाकुर समाज रहा है, जिससे 5 मुख्यमंत्री बने।
इसके अलावा:
- यादव समाज से 3 मुख्यमंत्री
- वैश्य समाज से 3 मुख्यमंत्री
- लोधी समाज से 1 मुख्यमंत्री
- दलित समाज से 1 मुख्यमंत्री
- जाट समाज से 1 मुख्यमंत्री
- कायस्थ समाज से 1 मुख्यमंत्री बने हैं
- ब्राह्मण काल: 1950 से 1989 तक रहा वर्चस्व
उत्तर प्रदेश की राजनीति में 1950 से 1989 तक का दौर ब्राह्मण वर्चस्व के लिए जाना जाता है। इस दौरान ब्राह्मण समाज से 6 मुख्यमंत्री बने, जिनमें शामिल हैं:

- गोविंद वल्लभ पंत
- सुचेता कृपलानी
- कमलापति त्रिपाठी

- हेमवती नंदन बहुगुणा
- श्रीपति मिश्र
- नारायण दत्त तिवारी
ये सभी नेता कांग्रेस से मुख्यमंत्री बने। नारायण दत्त तिवारी तीन बार और गोविंद वल्लभ पंत दो बार मुख्यमंत्री रहे। कुल मिलाकर लगभग 23 वर्षों तक प्रदेश की सत्ता ब्राह्मण समाज के हाथों में रही, जिसे अक्सर ‘ब्राह्मण काल’ कहा जाता है।
ठाकुर समाज का मजबूत राजनीतिक सफर
ब्राह्मणों के बाद ठाकुर समाज ने यूपी की राजनीति में सबसे ज्यादा नेतृत्व किया। इस समाज से पांच मुख्यमंत्री बने:

- त्रिभुवन नारायण सिंह
- विश्वनाथ प्रताप सिंह
- वीर बहादुर सिंह (तीनों काँग्रेस से)

- राजनाथ सिंह
- योगी आदित्यनाथ (दोनों बीजेपी से)
योगी आदित्यनाथ फिलहाल दूसरी बार मुख्यमंत्री हैं। ठाकुर समाज के मुख्यमंत्री करीब 17 साल तक सत्ता में रहे हैं।
यादव और वैश्य समाज की भी मजबूत मौजूदगी
यादव समाज से तीन मुख्यमंत्री बने

- राम नरेश यादव
- मुलायम सिंह यादव
- अखिलेश यादव (करीब 13 वर्षों तक यादव समाज के हाथों में सत्ता रही।)
वहीं वैश्य समाज से भी तीन मुख्यमंत्री बने

- चंद्र भान गुप्ता (दो बार)
- बाबू बनारसी दास
- राम प्रकाश गुप्ता
एक-एक मुख्यमंत्री: जाट, लोधी, दलित और कायस्थ
अन्य समाजों से भी मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन संख्या सीमित रही:

- कायस्थ समाज से डॉ. सम्पूर्णानंद (दो बार)
- जाट समाज से चौधरी चरण सिंह (दो बार)
- दलित समाज से मायावती (चार बार)
- लोधी समाज से कल्याण सिंह (दो बार)
मायावती अब तक की एकमात्र दलित मुख्यमंत्री हैं और उन्होंने करीब साढ़े छह साल तक प्रदेश की कमान संभाली।
यूपी के मुख्यमंत्री एवं उनके कार्यकाल


मंडल-कमंडल के दौर में ब्राह्मण समाज हाशिए पर
1989 के बाद मंडल और कमंडल की राजनीति ने यूपी की सियासत की दिशा बदल दी। ओबीसी और जातीय राजनीति के उभार के चलते ब्राह्मण समाज धीरे-धीरे सत्ता के केंद्र से दूर होता चला गया। बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और कलराज मिश्रा जैसे बड़े ब्राह्मण चेहरे जरूर रहे, लेकिन कांग्रेस दौर जैसी राजनीतिक पकड़ दोबारा नहीं बन सकी।
32 साल से ब्राह्मण मुख्यमंत्री का इंतजार
1989 के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश में कुल सात मुख्यमंत्री बने हैं, चार बीजेपी से, दो सपा से और एक बसपा से। इस दौरान बीजेपी ने ठाकुर, वैश्य और लोधी समाज के नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन ब्राह्मण समाज को यह अवसर नहीं मिला।यही वजह है कि आज ब्राह्मण समाज अपने राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर बेचैन नजर आ रहा है। हालिया बैठक को इसी असंतोष और सत्ता में हिस्सेदारी की मांग के रूप में देखा जा रहा है।



