प्रशांत पटेल के ट्वीट पर कांग्रेस ने दर्ज कराई शिकायत, क्या गहलोत राज में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ नहीं ?

किसी ने कभी कहा था कि कहो कि ‘लब आज़ाद हैं’. पर आज कहना पड़ रहा है कि कहो कि ‘लब ख़ामोश हैं’. हम ख़ामोश हैं. क्योंकि हमारे कहने पर कुछ भी हो सकता है. कुछ लिख दिया.. .कुछ कह दिया… तो कोर्ट-कचहरी तक हो सकती है. भले ही हमारा संविधान हमें लिखने, बोलने की आजादी देता हो. लेकिन कुछ सत्ता के नशे में चूर सियासतदान हमारा ये आधिकार हमसे छीनने पर आमादा हैं. इसी सत्ता के नशे का शिकार सुप्रीम कोर्ट के मशहूर वकील प्रशांत पटेल उमराव (Prashant Patel Umrao) हो गए. सरकार की नाकामियों को उजागर करता उनका एक ट्वीट कांग्रेस को इतना नागवार गुजरा कि माहौल बिगाड़ने का हवाला देकर थाने में शिकायत दर्ज करा दी.


प्रशांत पटेल ने जयपुर की शास्त्री नगर की एक घटना को लेकर एक ट्वीट किया था जिसके बाद उनके खिलाफ कांग्रेस आईटी सेल के सह संयोजक सिद्धार्थ भरद्वाज और विक्रम स्वामी ने उनके खिलाफ आईटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया दिया. प्रशांत के मुताबिक़ पुलिस बोल रही है कि सर आप पर कोई मामला नहीं बनता, लेकिन ऊपर सरकार की ओर से कार्यवाही का दबाव है.



दरअसल, 1 जुलाई को जयपुर में शास्त्री नगर के भट्‌टा बस्ती इलाके में सोमवार रात सात साल की एक बच्ची से दुष्कर्म की घटना हुई और इसी दौरान कुछ अफवाह भरे मैसेज वायरल हुए जिसमें लिखा था हिन्दू समुदाय के लोगों ने मुस्लिम बच्ची का रेप किया जिसके बाद इलाके में तनाव उत्पन्न हो गया. आक्रोशित युवकों ने शास्त्री नगर इलाके में करीब 150 गाड़ियों में तोड़फोड़ की. उपद्रवियों ने एक दर्जनों कारों के शीशे तोड़ डाले हैं. घरों पर भी जमकर पथराव किया. वहीं इन उपद्रवियों के आगे अशोक गहलोत की पुलिस एक दम असहाय देखी.


चौतरफा घिरने के बाद पुलिस जागी लेकिन तब तक मामला काफी आगे बढ़ चुका था जिसका परिणाम रहा कि इलाके में 5 दिन तक कर्फ्यू जैसे हालात बने रहे. हालांकि बाद में आरोपी सिकंदर उर्फ़ जीवाणु की गिरफ़्तारी के बाद साफ हो गया कि किसी ने जानबूझकर दो समुदायों को भिड़ाने के लिए भड़काऊ मैसेज वायरल किये थे. इस पूरे मामले में जयपुर पुलिस की एक बड़ी लापरवाही भी सामने आई अगर समय रहते मामले को संभाल लिया गया होता तो हालात इतने खराब नहीं होते.


अब ऐसे में सवाल उठता है कि किसी सरकार की नाकामी पर सवाल उठाना क्या गुनाह की श्रेणी में आता है ? किसी सूचना या विचार को बोलकर, लिखकर या किसी अन्य रूप में बिना किसी रोक-टोक के अभिव्यक्त करने की आज़ादी ही, अभिव्यक्ति की आज़ादी कहलाती है. भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और उदार समाज की गारंटी देता है. हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है. ऐसे में किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन कहाँ तक जायज है.


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