इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने साल 2009 में कांग्रेस की नेता रहीं रीता बहुगुणा जोशी (Rita Bahuguna Joshi) का घर जलाने के मामले में अभियोजन स्वीकृति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आरोपी पांचों पुलिसकर्मियों को फौरी राहत दी है। साथ ही कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए याची पुलिसकर्मियों को अनुमति दी है कि वे आरोप पत्र दाखिल होने के बाद संबंधित मजिस्ट्रेट की अदालत में यह तर्क दे सकते हैं कि उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति विधि सम्मत नहीं हैं।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि संबंधित मजिस्ट्रेट सर्वप्रथम अभियोजन स्वीकृति के मुद्दे को निर्णित करेगा और तब तक याचियों पर कोई भी उत्पीड़नात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। यह आदेश जस्टिस अनिल कुमार और जस्टिस मनीष माथुर की पीठ ने तत्कालीन सीओ हजरतगंज बीएस गर्बयाल, तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक थाना हुसैनगंज बलराम सरोज, तत्कालीन आरक्षी हजरतगंज वीरेंद्र कुमार व हुसैनगंज के तत्कालीन आरक्षियों अशोक कुमार यादव व चंद्रशेखर की ओर से दाखिल दो अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया।
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इस मामले में हुसैनगंज थाने में दर्ज एफआइआर के क्रम में अपर मुख्य सचिव, गृह के 27 अगस्त 2018 के अभियोजन स्वीकृति संबंधी आदेश को याचियों ने चुनौती दी थी। याचियों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एचजीएस परिहार व मीनाक्षी परिहार की दलील थी कि मामले में आरोपी आला पुलिस अफसरों को बचाकर नीचे के पुलिस कर्मियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति सरकार ने दी, जो कानून की मंशा के खिलाफ है। उधर सरकारी वकील एसपी सिंह ने याचिकाओं का विरोध किया।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि 27 अगस्त 2018 के आदेश के तहत केस की विवेचना की जाए और इसके बाद सक्षम अदालत या मजिस्ट्रेट कोर्ट में पुलिस रिपोर्ट दाखिल की जाएगी। पुलिस रिपोर्ट दाखिल होने की दशा में याची आरोपी अभियोजन स्वीकृति को गलत तरीके से दिए जाने समेत अपने बचाव में दलीलें रख सकेंगे, जिनका सक्षम अदालत अंतिम निपटारा करेगी। जब तक सक्षम अदालत यह निर्णय नहीं करती कि याचियों के खिलाफ दी गई अभियोजन स्वीकृति वैध है या नहीं, तब तक उनके खिलाफ कोई उत्पीड़नात्मक कदम नहीं उठाए जाएंगे।
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