विधि का शासन ही सुशासन की पहली शर्त, परसेप्शन बदलने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिकाः योगी

लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) शनिवार को लखनऊ के डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर उन्होंने मुख्य अतिथि और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूण के साथ छात्रों को उपाधि प्रदान की। कार्यक्रम में सीएम योगी ने कहा कि सुशासन की पहली शर्त है विधि का शासन। न्याय संगत व्यवस्था हर व्यक्ति को प्रिय है और न्याय समय पर हो, समयबद्ध तरीके से हो, इसके लिए उस फील्ड के विशेषज्ञ उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। विधि के इस शासन के लिए ही आज भारत जाना जा रहा है। परसेप्शन बदलने में, आमजन की धारणा बदलने के लिए, देश और दुनिया की धारणा बदलने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय एक सही राह पर आगे बढ़ चुका है। यहां के उपाधि प्राप्त करने वाले जितने भी स्नातक, परास्नातक और शोध करने वाले छात्र हैं, वे अपने कार्यों के माध्यम से न सिर्फ विश्वविद्यालय को बल्कि समाज और राष्ट्र को लाभान्वित करके अपने अभिभावकों और अपने गुरुजनों को गौरवान्वित करने का कार्य करेंगे।

मुख्य न्यायधीश की बातों की हर कोई करता है सराहना
सीएम योगी ने भारत के मुख्य न्यायधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ का स्वागत करते हुए कहा कि भारत के अंदर विधि का शासन हो, अच्छे विधि विशेषज्ञ स्नातक, परास्नातक और शोध की डिग्री लेने के उपरांत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में राष्ट्र निर्माण के अभियान का हिस्सा बन सकें, इसके प्रति यहां के छात्रों के अंतःकरण की जिजीविषा के कारण ही आज यह संयोग देखने को मिल रहा है कि विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह में भी मुख्य अतिथि के रूप में भारत के मुख्य न्यायधीश डॉ डीवाई चंद्रचूड़ का आशीर्वाद उन्हें मिल रहा है। इससे पहले भी दो दीक्षांत समारोह में उनका आशीर्वाद यहां के विद्यार्थियों को प्राप्त होता रहा है। इस अवसर पर उनकी उपस्थित हम सबको आह्लादित करती है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय में जाने से पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल उत्तर प्रदेश वासियों के लिए और न्याय जगत के लिए अविस्मरणीय पल रहा है। आज भी उत्तर प्रदेश का वासी, न्याय जगत में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति बड़े ही सकारात्मक भाव से उनकी बातों की सराहना करता है।

सकारात्मक राह पर है विश्वविद्यालय
सीएम योगी ने कहा कि जब मुख्य न्यायाधीश उपाधि प्राप्त करने वाले उपाधि धारकों से परिचय पूछने के साथ-साथ वर्तमान में उनके कार्यों के बारे में पूछ रहे थे तो ये देखकर प्रसन्नता हो रही थी कि बहुत सारे उपाधि धारक न्यायिक क्षेत्र की अलग-अलग जगहों पर जाकर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। यानी विश्वविद्यालय की राह सही है, सकारात्मक है। उस पहल के साथ हम सबको भी जुड़ना होगा। बार और बेंच का बेहतर समन्वय बहुत महत्वपूर्ण है। एक आम जनमानस आपके पास एक उम्मीद लेकर आता है। हम देखते हैं कि परिवारिक विवादों को लेकर जब लोग आते हैं तो वह किसी की नहीं सुनते, लेकिन अधिवक्ता जहां कहता है वो वहां आंख बंद करके साइन कर देते हैं, क्योंकि अधिवक्ता पर उनका विश्वास है। यह विश्वास आपकी सबसे बड़ी पूंजी है और यह विश्वास सामान्य नागरिक का बार और बेंच दोनों पर बना रहना चाहिए। इस विश्वास पर खरा उतरना हम सबके लिए सदैव सबसे बड़ी चुनौती रही है, क्योंकि बदलते हुए परिवेश में लोगों की आवश्यकताएं, तौर तरीके, टेक्नोलॉजी व्यक्ति को भी और व्यवस्था को भी बदलती है।

सकारात्मक राह जीवन ही नहीं राष्ट्र हित में भी
सीएम योगी ने कहा कि बदलाव की राह क्या होनी चाहिए, वो सकारात्मक है या नकारात्मक ये हमको तय करना है। यदि हमारी राह सकारात्मक होगी तो आपकी राह न्यायिक जगत ही नहीं, जीवन के हर एक क्षेत्र में बहुत उज्ज्वल होगी। अगर राह नकारात्मक होगी तो यह न आपके व्यक्तिगत हित में होगी, न समाज के और न ही राष्ट्र के हित में होगी। इस अवसर पर एक पुरानी कहावत याद आती है कि परिवार के हित में व्यक्ति को छोड़ना पड़े तो हमें उसमें परहेज नहीं करना चाहिए। वहीं, गांव के हित में परिवार को भी छोड़ना पड़े तो परहेज नहीं करना चाहिए। और अगर समाज के हित में गांव से परहेज करना पड़े तो भी हमें उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। यदि राष्ट्र के हित में इन सबसे अलग हटना पड़े तो राष्ट्र हमारे जीवन में सर्वोच्च होना चाहिए। जब इस ध्येय के साथ हम कार्य करते हैं तो यह छोटी बातें आपको प्रभावित नहीं कर पाएंगी।

कर्तव्यों के प्रति सजग होकर काम करना ही हमारा धर्म
सीएम योगी ने कहा कि कुलपति महोदय जब दीक्षांत उपदेश पढ़ रहे थे तो उसमें तृतीय उपनिषद की बात कर रहे थे। एक स्नातक के जीवन में अच्छा बनने के लिए क्या कुछ होना चाहिए, इसके विषय में उपनिषद विस्तार से बताता है। इसमें कहा गया है कि सत्यं वद, धर्म चरः अर्थात सत्य बोलना और धर्म का आचरण करना। धर्म सिर्फ उपासना विधि नहीं है। धर्म नैतिक मूल्यों का, सदाचार का और हमारे कर्तव्यों का एक पर्याय है जो देश, काल और परिस्थितियों से बिना प्रभावित हुए हम सबको सम और विषम परिस्थितियों में अपने कर्तव्यों के प्रति आगाह करता है। अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होकर के काम करना, यही हमारा धर्म है और वो भी यदि राष्ट्र को साक्षी मानकर हम कार्य कर रहे हैं तो सचमुच हम अपनी उस ऋषि परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हुए अपने आप को उसका उत्तराधिकारी कह सकते हैं, जिसने हजारों वर्ष पहले ये उपदेश उस काल खंड के युवाओं के लिए रचे थे। प्राचीन गुरुकुल की परंपरा में दीक्षांत समारोह एक समावर्तन समारोह के रूप में होता था, उस समय यह मान्यता थी कि जो भी यहां से स्नातक निकलेगा वह इतना परिपक्व होगा कि सारी परीक्षाओं को पास करके अपने भावी जीवन को आगे बढ़ाएगा। अगर हम भी अपने जीवन में बिना किसी चुनौती की परवाह किए खुद को ढालेंगे, उसका परिणाम हमारे हित में सुखद होगा, हमारे समाज और देश के हित में सुखद होगा। हम भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जाकर बहुत कुछ नया कर पाएंगे।

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