जन्मतिथि: मना करने के बावजूद श्यामा प्रसाद मुखर्जी को डॉ. मोहम्मद अली ने लगा दिया था इंजेक्शन, पुलिस हिरासत में मौत पर मां ने नेहरू पर लगाए थे गंभीर आरोप

भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज जन्म जयंती (Shyama Prasad Mukherjee Birth anniversary) है. 23 जून 1953 को जम्मू कश्मीर की एक जेल में उनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गयी थी. करीब डेढ़ साल पहले कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ता ने मांग की है कि डॉ मुखर्जी की मौत की जांच के लिए कमीशन बने. इससे तय हो सकेगा कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या साजिश. वैसे भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी तक ने जनसंघ के संस्थापक मुखर्जी के किसी साजिश का शिकार होने का संदेह जताया था.

कम समय में पाई प्रतिष्ठा
जुलाई 1901 को कोलकाता के एक संभ्रांत बंगाली परिवार में जन्मे मुखर्जी के पिता आशुतोष मुखर्जी राज्य में शिक्षाविद् बतौर जाने जाते थे. लिखने-पढ़ने के माहौल में बढ़ते मुखर्जी केवल 33 साल की उम्र में कोलकाता यूनिवर्सिटी के कुलपति बन गए. वहां से वो कोलकाता विधानसभा पहुंचे. यहां से उनका राजनैतिक करियर शुरू हुआ लेकिन मतभेदों के कारण वे लगातार अलग होते रहे.

कश्मीर में अलग कायदे-कानून के विरोधी थे 
मुखर्जी अनुच्छेद 370 का विरोध करते रहे. वे चाहते थे कि कश्मीर भी दूसरे राज्यों की तरह ही देश के अखंड हिस्से की तरह देखा जाए और वहां भी समान कानून रहे. यही कारण है कि जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री पद दिया तो कुछ ही समय में उन्होंने इस्तीफा दे दिया. कश्मीर मामले को लेकर मुखर्जी ने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया था. साथ ही कहा था कि एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.

कश्मीर जाते हुए गिरफ्तारी 
इस्तीफा देने के बाद वे कश्मीर के लिए निकल पड़े. वे चाहते थे कि देश के इस हिस्से में जाने के लिए किसी इजाजत की जरूरत न पड़े. नेहरू की नीतियों के विरोध के दौरान मुखर्जी कश्मीर जाकर अपनी बात कहना चाहते थे, लेकिन 11 मई 1953 को श्रीनगर में घुसते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. तब, वहां शेख अब्दुल्ला की सरकार थी. दो सहयोगियों समेत गिरफ्तार किए गए मुखर्जी को पहले श्रीनगर सेंट्रल जेल भेजा गया और फिर वहां से शहर के बाहर एक कॉटेज में ट्रांसफर ​कर दिया गया.

मना करने के बावजूद दिया गया इंजेक्शन
एक महीने से ज़्यादा कैद रखे गए मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ रही थी. उन्हें बुखार और पीठ में दर्द की शिकायतें बनी हुई थीं. 19 व 20 जून की दरम्यानी रात उन्हें प्लूराइटिस होना पाया गया, जो उन्हें 1937 और 1944 में भी हो चुका था. डॉक्टर अली मोहम्मद ने उन्हें स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन दिया था. मुखर्जी ने डॉ. अली को बताया था कि उनके फैमिली डॉक्टर का कहना रहा था कि ये दवा मुखर्जी के शरीर को सूट नहीं करती थी, फिर भी अली ने उन्हें भरोसा दिलाकर ये इंजेक्शन दिया था.

और फिर हार्ट अटैक 

22 जून को मुखर्जी को सांस लेने में तकलीफ महूसस हुई. अस्पताल में शिफ्ट करने पर हार्ट अटैक होना पाया गया. राज्य सरकार ने घोषणा की कि 23 जून की अलसुबह 3:40 बजे दिल के दौरे से मुखर्जी का निधन हो गया. अस्पताल में इलाज के दौरान एक ही नर्स मुखर्जी की देखभाल के लिए थीं राजदुलारी टिकू. टिकू ने बाद में अपने बयान में कहा कि जब मुखर्जी पीड़ा में थे तब उसने डॉ. जगन्नाथ ज़ुत्शी को बुलाया था. ज़ुत्थी ने नाज़ुक हालत देखते हुए डॉ. अली को बुलाया और कुछ देर बाद 2:25 बजे मुखर्जी चल बसे थे.

मौत पर उठे कई सवाल 

पहला सवाल तो यही था कि मुखर्जी को जेल से ट्रांसफर क्यों किया गया और उन्हें एक कॉटेज में क्यों रखा गया? दूसरा ये कि डॉ. अली ने यह जानने के बावजूद कि मुखर्जी को स्ट्रेप्टोमाइसिन सूट नहीं करती, वो दवा क्यों दी? तीसरा सवाल ये था कि एक महीने से ज़्यादा वक्त तक मुखर्जी को सही और समय पर इलाज क्यों नहीं दिया गया? चौथा ये कि उनकी देखभाल में सिर्फ एक ही नर्स क्यों थी, वह भी रात के वक्त जब मुखर्जी की हालत गंभीर थी? ये सवाल भी था कि मौत का समय अलग अलग क्यों बताया गया?

डॉ मुखर्जी को जिस जेल में रखा गया था वह उस समय एक उजाड़ स्थान पर थी. मौत से पहले डॉ. मुखर्जी को 10 मील दूर के अस्पताल में जिस गाड़ी में ले जाया गया उसमें उनके किसी और साथी को बैठने नहीं दिया गया. डॉ. मुखर्जी की व्यक्तिगत डायरी को गायब कर दी गई. इलाज के कागजात भी गायब कर दिए गए. इन्हीं समस्त साक्ष्यों को देखते हुए भारतीय जनसंघ समेत देश भर में डॉ.मुखर्जी की हत्या की जांच की मांग की. शेख अब्दुल्ला की सरकार पर मुखर्जी की हत्या में मिलीभगत होने का शक इतना गहरा रहा था कि कुछ समय बाद ही अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन मुखर्जी की हत्या की जांच के लिए कोई भी सरकार ने पहल नहीं की.

मुखर्जी की मां ने नेहरू पर लगाए थे गंभीर आरोप

डॉ. मुखर्जी की रहस्यमय मौत की सच्चाई से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है. डॉ.मुखर्जी की मृत्यु के बाद उनकी मां योगमाया ने पंडित नेहरु को एक पत्र लिखकर अपने बेटे की मृत्यु की जांच करवाने की मांग की थी. तब नेहरु ने उसे लिखा था – मैं इसी सच्चे और स्पष्ट निर्णय पर पहुंचा हूं कि इस घटना में कोई रहस्य नहीं है. इसके बाद उनकी मां ने लिखा– मैं तुम्हारी सफाई नहीं चाहती, जांच चाहती हूं. तुम्हारी दलीलें थोथी हैं और तुम सत्य का सामना करने से डरते हो. याद रखो तुम्हें जनता के और ईश्वर के सामने जवाब देना होगा. मैं अपने पुत्र की मृत्यु के लिए कश्मीर सरकार को ही जिम्मेदार समझती हूं और उस पर आरोप लगाती हूं कि उसने ही मेरे पुत्र की जान ली. मैं तुम्हारी सरकार पर यह आरोप लगाती हूं कि इस मामले को छुपाने और उसमेें सांठ-गांठ करने का प्रयत्न किया गया है.’

कांग्रेसी नेताओं ने भी की थी जांच की मांग 

यहां तक की पश्चिमी बंगाल की कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री डॉ. विधानचंद राय ने मुखर्जी की हत्या की जांच सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश से करवाने की मांग की थी. कांग्रेस के ही पुरुषोत्तम दास टण्डन ने भी डॉ. मुखर्जी हत्या की जांच की मांग की.

2004 में अटल बिहारी वाजपेई ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के मौत की वजह ‘नेहरु कॉन्सपिरेसी’ को बताया था. वैसे यह कोई पहली मौत नहीं थी जो रहस्यमय तरीके से हुई थी, उस दौर में ऐसे कई लोगों की मौत हुई जो आज भी रहस्य हैं. चाहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो या पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में मृत्यु हो या फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु, इन सभी मौतों के पीछे एक रहस्य छुपा था, जिसे आज तक नहीं खोजा जा सका.

इन सभी मौतों को अगर आप एक कड़ी में जोड़ें तो देख पाएंगे कि यह वह लोग थे जो उस समय तत्कालीन सत्ता को चुनौती दे रहे थे या फिर एक खास परिवार की सत्ता को चुनौती दे रहे थे.

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