काशी धर्म संसद में बोले शंकराचार्य- अयोध्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद नहीं राम मंदिर तोड़ा था

अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद की धर्मसभा के बाद रविवार को काशी में शुरू हुई परमधर्म 1008 संसद में अब मंदिर वहीं बनाएंगे की गूँज सुनाई दी. सोमवार को धर्म संसद में राम मंदिर निर्माण को लेकर चर्चा हुई. आज सुबह के सत्र में राम मंदिर निर्माण को लेकर साधु-संतों के बीच प्रस्ताव पेश किया गया. वहीं इस दौरान योगी सरकार द्वारा अयोध्या में विश्व की सबसे ऊंची श्री राम प्रतिमा लगाने के फैसले का विरोध किया गया. धर्म संसद में कहा गया कि खुले में भगवान राम की मूर्ति लगाना उचित नहीं है.

 

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हिंदी न्यूज चैनल न्यूज़ 18 से बातचीत के दौरान शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि यह सरकार सिर्फ पुतले बना सकती है मंदिर नहीं. शंकराचार्य ने कहा कि राम जन्मभूमि में राम मंदिर ही था. रामजन्मभूमि में कभी बाबरी मस्जिद थी ही नहीं. बाबर ने मस्जिद बनवाई थी इसके कोई प्रमाण नहीं हैं. मैंने अपने आँखों से वहां राम मंदिर देखा है. कारसेवकों ने मस्जिद नहीं मंदिर को तोड़ा. कुछ राजनीतिक कारणों की वजह से बाबरी मस्जिद का प्रचार किया गया.

 

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शंकराचार्य ने कहा, “राम मंदिर के प्रमाण को मैने अपनी आंखों से देखा है. कारसेवकों ने मंदिर ही तोड़ा. खंभे और हनुमान जी के चित्र हमने हमने खुद अयोध्या में जाकर देखे हैं. मुसलमानों ने कहा बाबरी मस्जिद थी, लेकिन वो हाईकोर्ट में साबित नहीं कर पाए. बाबर के द्वारा मस्जिद बनायी गई इसके कोई प्रमाण नहीं मिलते. कारसेवकों ने राजनीतिक कारणों से बाबरी मस्जिद का प्रचार किया और राम चबूतरा को मिटा दिया.”

 

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योगी सरकार के अयोध्या में 221 मीटर ऊँची भगवान राम की मूर्ति लगाने के फैसले का विरोध करते हुए शंकराचार्य ने कहा, “भगवान राम के पुतले का कोई अर्थ नहीं है. भगवान राम की बराबरी कोई नहीं कर सकता. इन लोगों ने पहले सरदार पटेल का पुतला बनाया. उन्होंने देश को एक किया था. लेकिन राम ने पृथ्वी को एक किया. उनकी बराबरी किसी पुतले से कैसे कोई कर सकता है. ये पुतला ही बनाएंगे मंदिर नहीं बनाएंगे.”

 

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इससे पहले रविवार को काशी के सीर गोवर्धन में धर्म संसद 1008 का शुभारंभ किया गया. पहले सत्र में देशभर में तोड़े जा रहे मंदिरों को बचाने के लिए मंदिर रक्षा विधेयक पारित किया गया. दूसरे सत्र में गंगा और गोरक्षा विधेयक पारित किया गया. धर्म संसद के पहले सत्र का शुभारंभ शारदा एवं ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के आदेश पर शुरू हुआ.

 

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