सुब्रमण्यन स्वामी की पीएम मोदी को चिट्ठी, कहा- राम मंदिर के लिए जमीन दे सकती है सरकार, कोई कानूनी रोक नहीं

नरेंद्र मोदी के दोबारा शपथ लेते ही बीजेपी और आरएसएस के कोर मुद्दों पर फिर से एक बार बहस शुरू हो गयी. यहां तक कि बीजेपी के ही वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर राम मंदिर निर्माण का काम जल्द-से-जल्द शुरू करवाने की अपील की है. स्वामी ने रविवार को ट्वीट कर इसकी जानकारी दी और राम जन्मभूमि के कानूनी पहलुओं को लेकर अपनी पुरानी राय जाहिर की.


सुप्रीम कोर्ट की अनुमति जरूरी नहीं

स्वामी ने लिखा, ‘पीएम को लिखी एक चिट्ठी में मैंने बताया कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट की अनुमति की दरकरार है. उनको यह गलत कानूनी सलाह मिली है. नरसिम्हा राव ने उस जमीन का राष्ट्रीयकरण कर दिया था और अनुच्छेद 300A के तहत सुप्रीम कोर्ट कोई सवाल नहीं उठा सकता है, सिर्फ मुआवजा तय कर सकता है. इसलिए, अभी से निर्माण शुरू करने में सरकार के सामने कोई बाधा नही है.’



सरकार को किसी सपंत्ति पर कब्जे का अधिकार

वरिष्ठ बीजेपी नेता ने चिट्ठी में कहा कि दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा राम मंदिर निर्माण का है जिसके लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से (67 एकड़ से ज्यादा) अविवादित जमीन लौटाने की मांग की है ताकि मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ हो सके. सॉलिसिटर जनरल की यह याचिका गलत है. सरकार को अपने कब्जे वाली जमीन को सुप्रीम कोर्ट से वापस मांगने की कोई दरकरार नहीं है. संविधान की धारा 300A और भूमि अधिग्रहण पर सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों के मद्देनजर केंद्र सरकार को सार्वजनिक हित में किसी की भी जमीन या संपत्ति पर कब्जा करने का अधिकार प्राप्त है.


नरसिम्हा राव सरकार का हवाला

स्वामी ने आगे कहा कि नरसिम्हा राव सरकार ने 1993 में पूरी जमीन, विवादित और अविवादित दोनों, पर कब्जा कर लिया था और 1994 में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने इसे वैध करार दिया था. उसके बाद राम जन्मभूमि न्यास समिति के सिवा सभी पक्षों ने सरकारी मुआवजे को स्वीकार कर लिया था. इसलिए उस कानून की मेरी समझ कहती है कि भारत सरकार को सुप्रीम कोर्ट समेत किसी भी अथॉरिटी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है. स्वामी ने लिखा, ‘मेरा पुरजोर सुझाव है कि अब वक्त बिताए बिना सरकार अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राम मंदिर निर्माण के लिए विवादित और अविवादित, दोनों भूखंडों का आवंटन करे.’


बता दें कि पूर्व में स्वामी कह चुके हैं कि श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने माना है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर बनने से श्रीलंका में पर्यटन बढ़ने की संभावना रहेगी. श्रीलंका की सरकार रावण के महल, अशोक वाटिका को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की संभावना पर विचार कर रही है. पिछले वर्ष स्वामी ने कहा था, “सब संपत्ति के लिए लड़ रहे हैं. मैं अपनी आस्था के लिए लड़ रहा हूं. मैं अनुच्छेद 25 के तहत अपने मूलभूत अधिकारों के लिए लड़ रहा हूं लेकिन कांग्रेस हमारी तारीख ही लगने नहीं देती है. हमारे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंदिर सदा मंदिर ही रहता है. रामजन्मभूमि पर सरकार कानून भी बना सकती है.”


आरएसएस ने भी दोहराई राम मंदिर की बात

अभी हाल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख ने राजस्थान के उदयपुर में कहा था, “राम का काम करना है, राम का काम होकर रहेगा.” उन्होंने कहा था कि राम हमारे हृदय में बसते हैं और हमें सक्रिय होने और अपने लक्ष्य को हकीकत में बदलने के लिए आगे बढ़ने की जरूरत है. भागवत के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया आई और कई मौलानाओं ने कहा कि मामला जब सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए इस पर बयान देना सही नहीं है.  


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