सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने याचिकाकर्ताओं को बताया कि इस मामले की जांच के लिए पहले ही एक इन हाउस कमेटी बनाई जा चुकी है। कोर्ट ने कहा कि जांच रिपोर्ट के बाद चीफ जस्टिस संजीव मामले में एफआईआर दर्ज करने सहित अन्य विकल्पों पर विचार करेंगे।
याचिकाकर्ताओं का आरोप
मुंबई के चार याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि जज के घर से बड़ी मात्रा में पैसे मिलना एक गंभीर आपराधिक मामला है। उन्होंने इस मामले की जांच के लिए तीन जजों की कमेटी बनाने की बजाय पुलिस और अन्य एजेंसियों से जांच करवाने की मांग की। याचिकाकर्ताओं ने 1991 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले का भी विरोध किया, जिसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले चीफ जस्टिस की सहमति जरूरी है।
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सुप्रीम कोर्ट की स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं से कहा कि इस तरह की मांग पर अभी सुनवाई का समय नहीं आया है। जस्टिस ओका ने कहा कि फिलहाल जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई है, और जब रिपोर्ट आएगी, तो चीफ जस्टिस संजीव एफआईआर दर्ज करने सहित सभी विकल्पों पर विचार करेंगे। जस्टिस ओका ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि वे आम आदमी के भरोसे की रक्षा करें, लेकिन मौजूदा व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों से बनी है, और इसका उद्देश्य आम जनता को समझ में आता है।
कानूनी व्यवस्था और संसद पर टिप्पणी
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने 2010 में ज्यूडिशियल स्टैंडर्ड्स एंड अकाउंटेबिलिटी बिल के संसद में पास न होने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि ऐसे कानूनों की आवश्यकता है, जो जजों के खिलाफ जांच की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाए। हालांकि, जजों ने स्पष्ट किया कि वे संसद को कोई निर्देश नहीं दे सकते।
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