एक जनवरी 2023 से अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष आरम्भ हो गया है इसके फलस्वरूप सभी घरों की थालियों से गायब हो चुके मोटे अनाज के दिन फिर से बहुरने वाले हैं। मोटा अनाज और इसकी कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने कमर कस ली है। भारत इस वर्ष शंघाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (एससीओ) तथा जी 20 जैसे अंतरराष्ट्रीय समूहों की अध्यक्षता कर रहा है देश के 55 शहरों में जी 20 सम्मेलन होने जा रहे हैं इसके अतिरिक्त भी इस वर्ष कई मेगा इवेंट देश में होने जा रहे हैं। मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए इन अवसरों का भरपूर लाभ लिया जायेगा। सभी सम्मेलनों में कृषि मंत्रालय व खाद्य मंत्रालय तथा राज्य सरकारों के सहयोग से मोटे अनाजों से बने उत्पादों का ही प्रदर्शन किया जायेगा व देश विदेश से आ रहे सभी अतिथियों को मोटे अनाज से बने व्यंजन परोसे जाएँगे जिससे इनका डंका विश्व भर में बजना तय हो गया है।
मोटे अनाज का प्रचलन बढ़ने से जनसामान्य सहित किसानों को लाभ मिलने की बड़ी सम्भावना है एक ओर इससे कुपोषण की समस्या से निपटने का नया और सरल मार्ग मिलेगा वहीं दूसरी ओर इससे किसानों की आय दोगुनी होने का मार्ग भी प्रशस्त होगा। यही करण है कि मोटा अनाज वर्ष में एक ओर किसानों को इन अनाजों की खेती करने के लिए जागरूक किया जाएगा और दूसरी ओर लोगों को मोटे अनाज के महत्व से अवगत कराया जाएगा जिससे इनकी खपत बढ़े और किसान इनकी खेती में रूचि दिखाएं। इसके अतिरिक्त मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इस वर्ष मोटे अनाज के समर्थन मूल्यों में भी वृद्धि कर दी है।
एक समय था जब भारत की हर थाली में केवल ज्वार, बाजरा, रागी, चीना, कोदो, सांवा, कुटकी, कुटटू और चौलाई से बने हुए व्यंजन ही हुआ करते थे लेकिन फिर समय बदलता गया और आज स्थिति यह हो गयी है कि लोग इन अनाजों का महत्व तो दूर नाम भी भूल गए हैं। आज के वातावरण में जब घरों में बड़े बुजुर्ग इन अनाजों का नाम लेते हैं या नई पीढ़ी को इनका महत्व बताते हैं तो या तो वो अचरज से सुनती है या नाम सुनते ही मुंह बनाने लगती है। मोटा अनाज वर्ष के माध्यम से नई पीढ़ी के लोग भी इन अनाजों का वैज्ञानिक आधार पर महत्व समझेंगे और स्वीकार करेंगें और जब स्वीकार करेंगे तब वह भी इस इनकी खेती और इनसे बने नये व्यंजनों को बनाकर स्टार्टअप्स व नवाचार भी कर सकेंगे। पिछले कुछ दिनों की चर्चा से ही देश के कई युवा उद्यमियों ने ज्वार, बाजरा सहित अन्य मोटे अनाज से बनने वाले कई तरह के व्यंजनों पर नवाचार आरम्भ भी कर दिया है। ज्वार, बाजरा के आटेसे दोसा बन रहा है, लड्डू बन रहा है और पापड़ भी बन रहे हैं।
दिसंबर 2022 में न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दुनियाभर के राजदूतों को मोटे अनाज से बने व्यंजनों की दावत दी, राजधानी दिल्ली में संसद सत्र के दौरान सभी सांसदों को मोटे अनाज से बने व्यंजन परोसे गये और उन्हें मोटा अनाज वर्ष के विषय में अहम जानकारी दी गई।अब मोटे अनाज की दावतों का सिलसिला सम्पूर्ण भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व में चल रहा है।
2018 में भारत सरकार ने मोटे अनाजों को पोषक अनाज की श्रेणी में रखते हुए इन्हें बढ़ावा देने की शुरूआत की थी तब से सरकार की ओर से उठाये गये कदमों का सकारात्मक प्रभाव अब सामने आने लगा है। वर्तमान समय में 175 स्टार्टअप इस दिशा में काम कर रहे हैं। मार्च 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा भारत की ओर से प्रस्तुत एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया जिसके अंतर्गत वर्ष 2023 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया। मोटा अनाज वर्ष का उद्देश्य बदलती जलवायु परिस्थितियों में मोटे अनाज के पोषण और स्वास्थ्य लाभ और इसकी खेती के लिए उपयुक्तता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, कुटकी, कोदो, सांवा आदि शामिल है। हम सभी को यह भी पता होना चाहिए कि अप्रैल 2016 में संयुक्तराष्ट्र महासभा ने भूख को मिटाने और दुनियाभर में कुपोषण के सभी प्रकारों की रोकथाम की आवश्यकता को मान्यता देते हुए 2016 से 2025 तक पोषण पर संयुक्त राष्ट्र कार्रवाई दशक की भी घोषणा की थी।
मोटा अनाज उपभोक्ता, उत्पादक व जलवायु तीनों के लिए अच्छा माना गया है। ये पौष्टिक होने के साथ कम पानी वाली सिंचाई से भी उगाए जा सकते हैं। विषेषज्ञों का मत है कि कुपोषण मुक्त और टिकाऊ भविष्य बनाने के लिये मोटे अनाज की अहम भूमिका होगी और इसके लिए देशों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। मोटे अनाज को प्रोत्साहन वर्तमान समय की मांग भी है क्योंकि यह अनाज आधुनिक जीवन शैली में बदलाव के कारण सामने आ रही कई बीमारियों व कुपोषण को रोकने में सक्षम है।
केंद्र सरकार ने मोटा अनाज वर्ष को सफल बनाने के लिए काफी समय पूर्व से ही तैयारियां प्रारंभ कर दी थीं और अब यह सफलतापूर्वक धरातल पर उतरने को तत्पर हैं। मोटा अनाज वर्ष को सफल बनाने के लिए केंद्र सरकार कई योजनाएं लेकर आई है। राशन प्रणाली के तहत मोटे अनाजों के वितरण पर जोर दिया जा रहा है। आंगनबाड़ी और मध्यान्ह भोजन योजना में भी मोटे अनाजों को शामिल कर लिया गया है। प्रधानमंत्री मन की बात कार्यक्रमों में मोटे अनाजों से बने व्यंजनों का उल्लेख करते रहते हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि अब ”मोटा अनाज, खाओ और प्रभु के गुण गाओ” का नारा खूब चलने वाला है। मोटा आनाज पोषण का सर्वश्रेष्ठ आहार कहा जाता है। मोटे अनाज में 7 से12 प्रतिशत प्रोटीन, 65 से 75 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 15 से 20 प्रतिशत डायटरी फाइबर तथा 5 प्रतिशत तक वसा उपलब्ध रहता है जिसके कारण यह कुपोषण से लड़ने में सक्षम पाया जाता है। मोटे अनाज का आयुर्वेद में भी बहुत महत्व है।
भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही मोटे अनाज की खेती के प्रमाण मिलते हैं तथा विश्व 131 देशों में इनकी खेती होती है। मोटे अनाज के वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत और एशिया में 80 प्रतिशत है। ज्वार के उत्पादन में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है।भारत में ज्वार का सर्वाधिक उत्पादन महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में होता है।बाजरे के उत्पादन में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक आगे है।
मोटा अनाज वर्ष में हम सभी को बढ़ चढ़कर भाग लेना चाहिए और अपने भोजन में इसको नियमित रूप से स्थान देना चाहिए क्योंकि इसमें कई विषेषतएं होती हैं। पोषण के मामले में यह अनाज अन्य अनाजों गेहूं व धान की तुलना में बहुत आगे हैं। इनकी खेती सस्ती और कम पानी वाली होती है। मोटे अनाज का भंडारण आसान होता है। भोजन में इन अनाजों को शामिल करने से स्वास्थ्य संबंधी कई बड़ी परेशानियों से बचना संभव हो सकता है। यही कारण है कि आज मोटा अनाज के प्रति सरकार किसानों को जागरूक करने के लिए देशभर में विशेष जागरूकता अभियान चलाने जा रही है ताकि देश के किसान अधिक से अधिक मात्रा में इन अनाजों की खेती करे और अपनी कमाई दोगुनी करें। किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से पहल शुरू की जा रही है तथा भविष्य में देश के अन्य कई कृषि विश्वविद्यालय इस अभियान में जुड़ेंगे।
आज जब विश्व का बड़ा हिस्सा कुपोषण से लड़ रहा है सनातन भारत की मोटे अनाज वाली थाली समाधान के रूप में देखी जा रही है। उदार चरित और वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत वाले भारत के मोटा अनाज वर्ष के प्रस्ताव की महत्ता को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने इसे स्वीकार किया और अब हम सभी भारतीयों का उत्तरदायित्व है कि हम अपने अपने स्तर पर इसे सफल बनाने के लिए प्रयास करें।
भारत सरकार मोटे अनाज की खेती का दायरा बढ़ाने पर बल दे रही है। मोटा अनाज वर्ष के माध्यम से एक साथ कई लक्ष्यों को साधा जा सकता है। मोटा आनाज के प्रति जागरूकता बढ़ने से जहां ज्वार, बाजरा आदि की खेती का रकबा बढ़ेगा वहीं कुपोषण की समस्या का भी समाधन कुछ सीमा तक संभव हो पायेगा।
( मृत्युंजय दीक्षित, लेखक राजनीतिक जानकार व स्तंभकार हैं.)
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