लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारियों का शंखनाद बीते दिनों देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से हुआ,जिसके बाद से सभी पार्टियों ने चुनाव को लेकर अपनी कमर कस ली है. सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के सामने भी अपना सियासी गढ़ बचाने की सबसे बड़ी चुनौती है.
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सभी 17 सीटें जीत ली थी लेकिन इस बार सपा-बसपा गठबंधन के चलते कठिन चुनौती है बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने जन्मदिन पर गठबंधन को और मजबूत बनाने का संदेश दिया है इससे पार पाने के लिए भाजपा ने दलितों को अपना बनाने की मुहिम तेज कर दी है.
भाजपा ने सबका साथ सबका विकास नारे के साथ हर वर्ग को प्रभावित करने की कोशिश की है. लेकिन इस महायुद्ध में गैर जाटवों को तरजीह देने की तैयारी है. दलितों के होने वाले सम्मेलनों में भी भाजपा इस वर्ग को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. पिछली बार भी टिकट बंटवारे में भाजपा ने गैर जाटव फार्मूले के तहत ही सभी सीटें हासिल की. भाजपा ने खटिक बिरादरी से लालगंज से नीलम सोनकर, कौशांबी से विनोद सोनकर और बुलंदशहर से डॉ भोला सिंह, पासी बिरादरी से शाहजहांपुर से कृष्णा राज, मिश्रिख से अंजू बाला, हरदोई से अंशुल वर्मा, मोहनलालगंज से कौशल किशोर, बांसगांव से कमलेश पासवान बाराबंकी से प्रियंका रावत और बहराइच से सावित्रीबाई फुले, धोबी समाज से हाथरस से राजेश कुमार दिवाकर, कोरी समाज से जालौन से भानु प्रसाद प्रताप वर्मा, खरवार बिरादरी में रॉबर्टगंज से छोटे लाल खरवार, कठेरिया समाज से आगरा में प्रोफेसर राम शंकर कठेरिया और जाटव समाज से नगीना में डॉ यशवंत सिंह, इटावा में अशोक दोहरे को मैदान में उतारा और यह सभी चुनाव जीत गए. दलित बिरादरी का प्रमाण पत्र लगाकर मछली नगर सीट से रामचरित्र निषाद भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे. देखा जाए तो इटावा और नगीना दो ही सीटें जाट बिरादरी के हिस्से में आईं. सर्वाधिक 7 सीटें पासी बिरादरी को मिली, जिनमें सावित्रीबाई फुले पदोन्नति में आरक्षण जैसे मुद्दे उठाकर भाजपा का साथ छोड़ दिया. भाजपा अजा मोर्चा की कमान कौशल किशोर को सौंपी गई है.
कोरी समाज को दी जायेगी तरजीह
भाजपा को 2014 और 2017 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में कोरी जाति की ताकत का एहसास हुआ संसद में तो सिर्फ जालौन में उनका प्रतिनिधित्व है, लेकिन विधानसभा में कई विधायक जीते. भाजपा ने राष्ट्रपति के लिए कोरी समाज के रामनाथ कोविंद को चुना तो पूर्व डीजीपी बृजलाल को अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाया. लिहाजा इस बार कोरी और वाल्मीकि समाज को मौका मिल सकता है.
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