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UP: धर्मांतरण नेटवर्क का भंडाफोड़, 100 करोड़ का मालिक निकला मास्टरमाइंड ‘छांगुर बाबा’

उत्तर प्रदेश एटीएस (UP ATS)  ने अवैध धर्मांतरण (Religious Conversion) से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल मामले में बड़ी कामयाबी हासिल की है। लखनऊ ( Lucknow ) के गोमती नगर थाना क्षेत्र में दर्ज केस में फरार चल रहे 50,000 रुपये के इनामी आरोपी जलालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा  और उसकी पत्नी नीतू उर्फ नसरीन को गिरफ्तार कर लिया गया है। अधिकारियों ने बताया कि यह दंपती मूल रूप से बलरामपुर का रहने वाला है, लेकिन इन्होंने नवंबर 2015 में दुबई जाकर इस्लाम कबूल कर लिया था और अपने नाम बदलकर क्रमशः जलालुद्दीन और नसरीन रख लिया।

गरीबों, महिलाओं और बच्चों को बनाया निशाना

जांच में खुलासा हुआ है कि यह गिरोह सुनियोजित तरीके से हिंदू और गैर-मुस्लिम समुदाय के कमजोर वर्गों, विधवाओं और मजदूरों को आर्थिक सहायता, विवाह का झांसा, डर और धमकी के जरिये इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर करता था। पुलिस का कहना है कि यह कोई मामूली धर्मांतरण मामला नहीं, बल्कि संगठित रूप से चलाया जा रहा मिशन था, जिसका उद्देश्य संख्या बढ़ाना और प्रभाव फैलाना था।

पहले भी हो चुकी हैं गिरफ्तारियां

इस मामले में जलालुद्दीन के बेटे महबूब और एक अन्य आरोपी नवीन को पहले ही 8 अप्रैल को गिरफ्तार किया जा चुका है। ये दोनों भी बलरामपुर से ही ताल्लुक रखते हैं और फिलहाल लखनऊ जेल में बंद हैं। जलालुद्दीन खुद को सूफी संत ‘हजरत बाबा जमालुद्दीन पीर बाबा’ बताकर लोगों को बहकाता था। दरगाह के पास अपना अड्डा बनाकर उसने ‘शिजरा-ए-तैयबा’ नामक किताब भी लिखी, जिसे प्रचार के तौर पर इस्तेमाल किया गया।

100 करोड़ की संपत्ति और विदेशी फंडिंग का खुलासा

पुलिस की जांच में सामने आया है कि जलालुद्दीन और उसके नेटवर्क ने धर्मांतरण के इस धंधे से करीब 100 करोड़ रुपये की संपत्ति बना ली है। एसटीएफ के मुताबिक 40 अलग-अलग बैंक खातों में विदेशी स्रोतों से मोटी रकम जमा की गई थी। यह नेटवर्क सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी फैला था, जिसकी वजह से अब एनआईए और ईडी को भी इस जांच में शामिल करने की सिफारिश की गई है।

राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरे का संकेत

एटीएस द्वारा बरामद की गई एक डायरी में 100 से अधिक लोगों के नाम मिले हैं, जिन्हें धर्म परिवर्तन के लिए निशाना बनाया जा सकता था। धर्मांतरण के बाद भी जलालुद्दीन और उसके परिवार के पास हिंदू नामों वाले सरकारी दस्तावेज बने हुए थे, जिससे उनकी पहचान छुपाई जा सके। इस केस ने देशभर में सुरक्षा और सामाजिक संतुलन से जुड़े गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिस पर अब केंद्रीय एजेंसियों की नजरें टिक गई हैं।

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