अठारवी लोकसभा के गठन के लिए हुए चुनावों के प्रचार के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व वाला इंडी गठबंधन, संविधान बचाओ-बचाओ का नारा लगाकर अफवाह फैलाता रहा कि अगर भाजपा लोकसभा में 400 पार चली जाती है तो संविधान बदल दिया जायेगा और आरक्षण समाप्त कर दिया जायेगा। चुनावों के बाद इन दलों का रवैया बदला नहीं है और एक बार फिर हारने के बाद अब वह नये तरीके से मैदान पर उतर आये हैं। अब यह लोग संवैधानिक संस्त्थाओं से लेकर न्यायपालिका, मीडिया और सोशल मीडिया तक में स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाले लोगों पर भी हमला बोल रहे हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का नारा लगाने वाली कांग्रेस व इंडी गठबंधन ने चुनावों से पूर्व भी देश के मीडिया संस्थानों व कुछ एंकरों का बहिष्कार किया था। यही सब मिलकर प्रधानमन्त्री मोदी जी को तानाशाह कहकर बुलाते हैं और कुछ अधिक सीट लेकर विपक्ष में बैठने पर कहते हैं – हमने तानाशाह की बोलती बंद कर दी, अब तानाशाही नहीं चलेगी।
सत्य तो यह है कि कांग्रेस की तानाशाही बहुत पुरानी और सर्वविदित है । यह ऐतिहासिक तथ्य है कि मीडिया का सबसे अधिक दमन करने वाली कांग्रेस ही है। नेहरू काल से लेकर अभी तक कांग्रेस तानाशाही व्यवहार से बाहर नहीं आ पा रही है। 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश पर आपताकाल थोपा और सैकड़ों नेताओं के साथ साथ हजारों निरीह नागरिकों को भी जेल में डाल दिया था फिर अनेकानेक मीडिया संस्थानों पर ताले डाल दिये गये और सैकड़ो पत्रकारों को भी जेल में बंद कर दिया गया। पत्रकारों पर भी उसी प्रकार अत्याचार किये गए जिस प्रकार अंग्रेज सरकार जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों के साथ किया करती थी। फिल्मों और गीतों तथा गायकों पर भी इंदिरा-संजय का कहर बरपा। अब कांग्रेस विपक्ष में रहकर भी तानाशाही रवैया अपना रही है, कांग्रेस की प्रेस वार्ता में सवाल पूछने पर पत्रकार बेइज्जत करके बाहर निकाल दिए जाते हैं।
कांग्रेस अपने गिरेबान में झांके बिना किसी को भी तानाशाह कह सकती है और तो और चुनावो के समय वह चुनाव आयेग पर भी तानाशाही का आरोप लगाती रही। अभी नयी संसद का सत्र भी आरम्भ नहीं हुआ है और विपक्ष की ओर से तानाशाह और तानाशाही शब्द की माला का जप आरम्भ हो गया है। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह जो दिल्ली शराब घोटाले के एक आरोपी हैं ने बयान दिया है कि अगर भाजपा का लोकसभा अध्यक्ष बनता है तो सरकार तानाशाह हो जायेगी। एक कांग्रेसी तानाशाह प्रधानमंत्री द्वारा लिखी गई आपातकाल की क्रूर गाथा के बाद भी कांग्रेस का तानाशाही रूप समय-समय पर उजागर होता रहा है। तेलंगना राज्य के गठन के समय दिखाई गयी कांग्रेस की तानाशाही भी कम भयावह नहीं थी।
अब कांग्रेस व इंडी गठबंधन ने अब राष्ट्रवादी विचारधारा के लेखकों पत्रकारों व सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों पर हमले बोलना प्रारम्भ कर दिया है। राहुल गांधी कहते हे मोदी जी डरे हुए तानाशाह हैं जबकि वास्तविकता यह है कि असली तानाशाह तो स्वयं राहुल गांधी ,कांग्रेस पार्टी व इंडी गठबंधन है। अभी कुछ समय पूर्व एक यूटयूबर पत्रकार अजीत भारती के एक वीडियो से कांग्रेस पार्टी व राहुल गांधी इतना डर गये कि कर्नाटक की पुलिस अजीत भारती को गिरफ्तार करने के लिए उनके घर पहुंच गयी किंतु यह अच्छा रहा कि अजीत भारती यूपी में रहते हैं और यूपी ने अजीत भारती को पूरी सुरक्षा प्रदान कर दी है।
कांग्रेस व इंडी गठबंधन की तानाशाही की कहानियां भरी पड़ी हैं फिर भी ये प्रधानमंत्री मोदी को तानाशाह कहते है। कांग्रेस की आक्रामक तानाशाही का शिकार न जाने कितने लोग हुए हैं और लगातार हो रहे हैं।फिल्म अभिनेत्री पायल रोहतगी को नेहरू और एडविना की फोटो पोस्ट करने पर ही राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने रात नौ बजे उनके घर पर पुलिस भेजकर हिरासत में ले लिया था। फेसबुक पर टिप्पणी करने वाले युवक सुमित ठक्कर को उद्धव सरकार पर व्यंग्य करने पर महाराष्ट्र में उसके ऊपर 40 जिलों में केस दर्ज कर लिये गये और उसे हथकड़ी और बेड़ियों में किसी आतंकवादी की तरह पकड़ कर पूरे महाराष्ट्र में घुमाया गया था। सुमित ने तत्कालीन मुख्यमंत्री की तुलना एक पेग्विंन से की थी। इसी तरह केतकी चेताली ने फेसबुक पर लिखा कि जो झूठ बोलता है उसका मुंह टेढ़ा हो जाता है। उन्होंने कहीं शरद पवार का नाम नहीं लिखा था पर उनको सुबह सात बजे घर से उठा लिया गया जब उसे 104 डिग्री बुखार था और उसके ऊपर पूरे महाराष्ट्र में 80 से ज्याद जगह एफआईआर दर्ज करवायी गयी, बाद में मुंबई हाईकोर्ट के एक जज उसे जमानत देने का आदेश दिया गया।
महाराष्ट्र में ही विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए नौकरी से इस्तीफा दे चुके पुलिस अधिकारी सचिन वाजे को पुलिस विभग मे वापस बुलाया जाता है और रिपब्लिक भारत के अर्नब गोस्वामी को सबके सामने से उठाकर लाया जाता है क्योकि अर्नब गोस्वामी और उनकी टीम तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सरकार की लगातार पोल खोल रही थी जिसमें पालघर में दो साधुओं की नृशंस हत्या व फिल्म स्टार सुशांत सिंह की मौत के कारणों की असलियत का भी पता लगाया जा रहा था। उद्धव ठाकरे की सरकार ने अर्नब को दबाने के लिए सारे उपक्रम किए । मुंबई में फिल्म अभिनेत्री व वर्तमान सांसद कंगना रनौत का घर इसलिए तोड़ा गया क्योंकि उन्होंने उद्धव ठाकरे पर टिप्पणी कर दी थी। अभी जब कंगना सांसद बनीं और चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर उन्हें थप्पड़ मारा गया तब सारे कांग्रेसी नेता व इंडी गठबंधन के नेताओं ने परोक्ष रूप से उसका समर्थन किया, ऐसा व्यवहार तानाशाही नहीं तो और क्या है अपितु यह कांग्रेसी तानाशाही का और भी घिनौना रूप है।
हम लेकर रहेंगे आजादी जैसे नारों के समर्थक व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लंबरदार आम आदमी पार्टी की तानाशाही भी कम नहीं है। टाइम्सनाउ नवभरत की पत्रकार भावना द्वारा अरविंद केजरीवाल के शीशमहल के भ्रष्टाचार को उजागर करने पर उसकी गाड़ी से एक दलित ई रिक्शा चालक से दुर्घटना दिखाकर पंजाब पुलिस उसे दलित एक्ट में उठा ले गई जबकि वह गाड़ी चला भी नहीं रही थी अपितु वह बगल में बैठी थी। पंजाब हाईकोर्ट ने भवना को न्याय दिया और पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि तुम तानाशाह बन चुके हो। कोर्ट में वह ई- रिक्शा चालक भी मुकर गया और उसने कहा कि मुझे पैसे का लालच दिया गया था। केजरीवाल के शीशमहल का वीडियो बनाने वाले पत्रकार रचित कौशिक का भी उत्पीडन किया गया। केजरीवाल के भ्रष्टाचार पर ट्वीट करने वाले तेजिंदर बग्गा का भी पंजाब पुलिस अपहरण करके ले गई। कुमार विश्वास ने जब बिना किसी का नाम लिए लिखा कि अब खालिस्तानी सर उठाएंगे तो उनके घर पर पंजाब पुलिस भेज दी गई। छत्तीसगढ़ में जब भूपेष बघेल की सरकार थी तब उन्होंने नोएडा में आठ बार छत्तीसगढ़ पुलिस भेजकर उन्हाने तमाम चैनल के पत्रकारों का उठाने की कोशिश की।
उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा व कांग्रेस सहित सभी दलों ने अलग अलग तरह की तानाशाही दिखाई है।सपा व बसपा की सरकारों में सभी समाचार पत्रों के लिए विज्ञापन लेने के लिए परोक्ष रूप से कई शर्तें होती थीं, सपा व बसपा के खिलाफ कोई भी पत्रकार व लेखक एक शब्द तक नहीं लिख सकता था। लोकसभा चुनावों के दौरान ही सपा मुखिया अखिलेश यादव अपनी तानाशाही का परिचय दे चुके हैं, एक पत्रकार के सवाल करने पर उन्होंने स्पष्ट रूप से धमकी देते हुए कहा कि, “तुम्हारा दूसरा इलाज किया जाये क्या ?” सपा बसपा की सरकारों में पत्रकारो व संपादकों को बराबर डर सताया रहता था। आज लोग डर का वह पुराना समय भूल चुके हैं। चुनावों के बाद ही एक प्रेस वार्ता में राहुल गांधी ने एक आज तक टीवी चैनल की महिला पत्रकार पर बहुत ही अभद्र टिप्पणी करते हुए कहा था कि आपने बीजेपी की टी शर्ट पहन रखी है।
यह प्रश्न विचारणीय है कि वास्तव में तानाशाह है कौन? कांग्रेस बार- बार प्रधानमंत्री मोदी व बीजेपी पर तानाशाही का आरोप लगाती रहती है किंतु स्मरण करने योग्य बात है कि 22 जनवरी 2024 के दिन अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह को हिंदू जनता देख न सके उसके लिए मीडिया पर किस किस तरह के प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया था? बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने हरसंभव प्रयास किया कि आम जनमानस येन केन प्रकारेण रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह टीवी पर न देख सके। तो असली तानाशाह कौन हुआ ? विडंबना है कि इस तरह के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तानाशाह बता रहे हैं जिनका भूत और वर्तमान दोनों ही तानाशाही में रसे पगे हैं।
( मृत्युंजय दीक्षित, लेखक राजनीतिक जानकार व स्तंभकार हैं.)
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