आखिर क्यों आईआरसीटीसी जैसी सरकारी संस्थाएं होती हैं ट्रोल्स के निशाने पर?

सोशल मीडिया पर खड़ा हुआ हंगामा कभी-कभी कितना बड़ा रूप ले लेता है, इसके उदाहरण हम आए दिन देखते रहते हैं। सोशल मीडिया ने एक तरफ लोगों को गलत के खिलाफ आवाज़ उठाने की ताकत दी है तो दूसरी तरफ कई बार तथ्यों को गलत ढंग से प्रस्तुत करने की आज़ादी भी दे दी है। गलत-सही के बीच की लड़ाई में कई बार गलत के रौद्र रूप के सामने सही भी बौना नज़र आने लगता है।

हाल ही में 26 मार्च, 2024 को एक ट्वीट करके एक सैन्य अधिकारी ने यह आरोप लगाकर विवाद खड़ा कर दिया कि आईआरसीटीसी (IRCTC) कर्मचारियों द्वारा उन्हें रिश्वत की पेशकश की गई, उन्होंने अपनी पोस्ट में लोगों से वीडियो को वायरल करने को कहा और कुछ ही घंटों में वीडियो वायरल हो गया। लेकिन दो घंटे के अंदर ही उक्त अधिकारी ने एक अन्य वीडियो जारी करते हुए पूरी घटना को एक गलतफहमी बाताया और कहा कि सब कुछ ठीक है। लेकिन तीर कमान से निकल चुका था था। सरकार विरोधी सोशल मीडिया हैंडल्स ने स्पष्टीकरण के वीडियो को नज़रअंदाज़ करते हुए आरोप वाले वीडियो को शेयर करना जारी रखा। यह स्थिति संदर्भ के महत्व और गलत सूचना को हथियार बनाए जाने की संभावना को रेखांकित करती है।

आरोप लगाने वाले अधिकारी ने साफ किया कि ट्रेन की समय में देरी की वजह से यह भ्रम पैदा हुआ, जिसके कारण नाश्ता तय समय से पहले परोसा गया और स्टेशन पर दोपहर का भोजन उस समय परोसा गया, जब नाश्ते की योजना बनाई गई थी। दोपहर के भोजन के मेनू को स्वयं अधिकारी ने अंतिम रूप दिया गया था, फिर भी बदलाव की वजह से गलतफहमी पैदा हुई जो बाद में निराधार आरोप में बदल गई। शुरुआती ट्वीट को निराधार बताते हुए यह भी साफ कर दिया गया कि आईआरसीटीसी कर्मचारियों द्वारा रिश्वत देने का कोई प्रयास नहीं किया गया था।

महज दो घंटे में गलतफहमी तो दूर हो गई और ट्वीट भी डिलीट कर दिया गया। लेकिन पूरी घटना के साफ होने का बावजूद यह सोशल मीडिया ट्रोल्स के चंगुल से नहीं बच पाई। पूरी घटना को एक राजनैतिक रंग देते हुए उन सोशल मीडिया हैंडल्स ने इसे भुनाने की कोशिश की जो सरकारी विभागों को जमकर ट्रोल करते हैं। ऐसी घटनाओं के वास्तविक समाधान पर ध्यान देने के बजाय राजनीतिक लाभ के लिए उनमें हेरफेर करने की मानसिकता इन ट्रोल्स में साफ नज़र आती है।

पूरी तस्वीर को समझने के लिए इस घटना का व्यापक संदर्भ महत्वपूर्ण है। राजनीतिक संस्थाएं और ट्रोल अक्सर रचनात्मक चर्चा में शामिल होने के बजाय, अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग घटनाओं का सहारा लेते हैं। सोशल मीडिया का यह दुरुपयोग उन वास्तविक मुद्दों और समाधानों से भटक सकता है जो सार्वजनिक हित में हैं।

आईआरसीटीसी से जुड़ी हालिया गलतफहमी को कुशलतापूर्वक और सौहार्दपूर्ण ढंग से हल कर लिया गया। आईआरसीटीसी द्वारा उठाए गए सकारात्मक कदम पर ध्यान देने की जरूरत है जबकि पूरी घटना को गलत तरीके से दिखाकर आम जनता में इस संस्था के बारे में नकारात्मक धारणा बनाने की कोशिश को पहचानना चाहिए। क्योंकि आईआरसीटीसी निरंतर ऐसी घटनाओं का समाधान करता है, लोगों के लिए जरूरी है कि इसे सनसनीखेज तरीके से पेश करने वालों से आगाह रहें।

एक संगठन के रूप में आईआरसीटीसी ने लगातार उत्कृष्ट सेवा और पारदर्शिता प्रदर्शित की है। रोज़ाना लाखों लोगों को भोजन मुहैया कराना एक चुनौतीपूर्ण काम है जिसे आईआरसीटीसी बरसों से कर रहा है। ऐसा नहीं है कि यह पूरी व्यवस्था एकदम परफेक्ट है, कई खामियां हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए, लेकिन कुछ कमियों को आधार बनाकर पूरी व्यवस्था पर ही सवालिया निशान लगाना भी गलत है।

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