देश के पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के इस्तीफे के बाद से उनका सार्वजनिक जीवन में कहीं कोई अता-पता नहीं है। न तो उन्होंने कोई बयान दिया है, न ही सार्वजनिक रूप से उन्हें देखा गया है। इस रहस्यमय चुप्पी को लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है। शिवसेना नेता संजय राउत ने तो इस मुद्दे पर गृहमंत्री अमित शाह (Amit shah) को पत्र लिखकर हेबियस कॉर्पस याचिका लगाने तक की बात कही है, लेकिन अब तक कोई जवाब या प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
संसद में राहुल गांधी ने उठाया मुद्दा
20 अगस्त को संसद में INDIA गठबंधन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने इस मुद्दे को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जिस दिन जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दिया, उन्हें केसी वेणुगोपाल ने फोन कर इसकी जानकारी दी थी। राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि जो उपराष्ट्रपति रहते हुए राज्यसभा में बेबाकी से बोलते थे, आज वे पूरी तरह खामोश क्यों हैं? उन्होंने यह भी कहा कि उनके इस्तीफे के पीछे कोई बड़ी कहानी छिपी हो सकती है।
‘चुप्पी में छिपा राज’ – राहुल गांधी
राहुल ने सवाल किया कि क्या भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति एक शब्द भी नहीं बोल सकते? उन्होंने कहा कि देश के उच्च संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति अगर अचानक सार्वजनिक जीवन से गायब हो जाए और चुप्पी साध ले, तो यह लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि जिस दौर में हम रह रहे हैं, उसमें सत्ता से असहमति रखने वालों की आवाज को दबाया जा रहा है।
‘मध्यकाल की ओर लौटता भारत’ – राहुल गांधी
संसद में पेश गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार लोगों को हटाने संबंधी बिल पर प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि देश को धीरे-धीरे मध्ययुगीन व्यवस्था की ओर ले जाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जैसे कभी राजा किसी को भी अपनी मर्जी से हटा देता था, वैसा ही अब हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि यदि सरकार को कोई चेहरा पसंद नहीं आता, तो ईडी का इस्तेमाल कर 30 दिनों में किसी भी जनप्रतिनिधि को सत्ता से बाहर कर दिया जाता है।
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लोकतंत्र पर मंडराता खतरा
राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा कि यह सिर्फ एक व्यक्ति की चुप्पी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की चुप्पी है। यदि देश का पूर्व उपराष्ट्रपति, जो कभी सशक्त आवाज़ हुआ करता था, आज खुद को छिपाने को मजबूर हो जाए, तो यह पूरे तंत्र पर सवाल उठाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस माहौल पर अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो भारत एक बार फिर उस दौर में पहुंच सकता है, जहां सत्ता की मर्जी से ही सब कुछ तय होता है।


















































