यूपी के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने राष्ट्र की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रखने के लिए राष्ट्र जागरण का आह्वान किया है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि एक हजार वर्ष पूर्व महापराक्रमी महाराजा सुहेलदेव (Maharaja Suheldev) ने जिस साहस और शौर्य के साथ महमूद गजनवी के भांजे सालार गाजी के खिलाफ देश को एकजुट कर विदेशी आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया था, उसी तरह की एकजुटता की आज फिर जरूरत है. सुहेलदेव के योगदान को भुलाने के लिए इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का बहुत प्रयास किया गया, लेकिन लोकगाथा और लोक परंपरा में महाराजा सुहेलदेव हमेशा अमर रहे. इतिहास के इस गौरवगाथा से नई पीढ़ी प्रेरणा ले सके, इसी भावना के साथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से चित्तौरा झील के समीप महाराजा सुहेलदेव स्मारक और संग्रहालय का निर्माण कराया जा रहा है.
मुख्यमंत्री योगी गुरुवार को महाराजा सुहेलदेव विजयोत्सव की वर्षगांठ पर एक कार्यक्रम में अपने विचार रख रहे थे. ज्येष्ठ पूर्णिमा के विशेष अवसर पर ऐतिहासिक कालखंड की चर्चा करते हुए सीएम ने कहा कि यह दिन सैयद सालार गाजी पर महाराजा सुहेलदेव के विजय की वर्षगांठ भर नहीं है, बल्कि भारत का विजयोत्सव है. इतिहास साक्षी है कि तीन लाख सैनिकों के साथ सालार गाजी भारतीय आस्था के केंद्रों को रौंदता हुआ, राजे-रजवाड़ों को तहस-नहस करता हुआ चित्तौरा पहुंचा था. लेकिन राष्ट्रनायक महाराजा सुहलदेव के साथ भीषण युद्ध में अंततः वह मारा गया. इस विजय के उपरांत अगले डेढ़ सौ साल तक किसी विदेशी आक्रांता की कुदृष्टि भारत पर नहीं पड़ सकी.
महाराजा सुहेलदेव को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सीएम ने कहा कि सुहेलदेव ने यह सिद्ध किया कि जब भारत का शौर्य गरजता है तो बड़ी से बड़ी शक्तियां भी नतमस्तक हो जाती हैं. यदि, हमने बालार्क ऋषि के वीर शिष्य सुहेलदेव के पराक्रम को ध्यान में रखकर एकता बनाये रखी होती तो बाद में जो हमले भारत पर हुए वह शायद न होते.
वर्चुअली आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि स्वातंत्र्य वीर सावरकर को एक ही जन्म में दो आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन इन यातनाओं से भी राष्ट्र सेवा के लिए उनके कदम नहीं डिगे. ऐसा ही भाव सभी के मन में होने की जरूरत है. सीएम ने राष्ट्रीय नायकों के बारे में नई पीढ़ी को अधिकाधिक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए विशेष प्रयास की जरूरत भी बताई.
कौन थे महाराजा सुहेलदेव ?
यूपी की धरती आदिकाल से ही अध्यात्म, संकृति और शौर्य से संपन्न रही है. यहां अवतारों के साथ साथ ऋषियों, योगियों और तपषियों ने देश दुनिया को भारत के गौरव से परिचित कराया. तो इसी भूमि के रणबाकुरों ने तुर्क मुगल आक्रांताओं से लेकर साम्राज्यवादियों को मूकी खाने को विवश किया. इन्ही वीरों में एक नाम महाराजा सुहेलदेव का है. महान संत बालार्क ऋषि के शिष्य और श्रावस्ती के राजा महाराज सुहेलदेव ने अपने शौर्य और पराक्रम के साथ थारु बंजारा सहित अनेक जाति समूहों और राजाओं का समूह बनाकर कौडियाला नदी के तट पर चित्तौरा के युद्ध में 15 जून 1033 को विदेशी आक्रान्ता महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद गाजी का उसकी सेना सहित संहार किया.
भले ही इतिहासकारों ने सुहेलदेव के पराक्रम और उनकी अन्य खूबियों की अनदेखी की हो, पर स्थानीय लोकगीतों की परंपरा में महाराज सुहेलदेव की वीरगाथा लोगों को रोमांचित करती रही है. यूपी की पावन भूमि पर लिखे जाने वाले गौरवशाली इतिहास में महाराजा सुहेलदेव के पराक्रम और शौर्य की गाथा दिग्दिगंतर तक भारतीय जनमानस को प्रेरित करती रही है. एक पराक्रमी राजा होने के साथ सुहेलदेव संतों को बेहद सम्मान देते थे. वह गोरक्षक और हिंदुत्व के भी रक्षक थे.
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