‘रामराज्य’ शब्द सुनते ही अमन, शान्ति अपराधमुक्त राज्य की तस्वीर हमारे मन-मष्तिस्क में उभर कर आती है. रामराज्य की हमारी यह कल्पना साकार होना आज की तारीख में कम ही मालूम पड़ता है. लेकिन ये सम्भव हुआ वो भी उस दिन जो दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से जुड़ा हुआ था. करीब 500 साल पुराना इतिहास को सबसे विवादित और संवेदनशील मामला 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट को फैसला आने वाला था, जब फैसले की तारीख की घोषणा हुई उस समय सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) विदेशी मेहमानो के साथ भोजन के कार्यक्रम की तैयारी में व्यस्त थे तो वहीं यूपी डीजीपी ओपी सिंह (UP DGP OP Singh) आगरा गए हुए थे.
खबर की जानकारी मिलते ही सीएम योगी आदित्यनाथ मेहमानो को भोजन के लिए आमंत्रित कर बिना भोजन किए अपने मीटिंग रूम में चले गए. उधर डीजीपी ने मामले की संजीदगी को समझते हुए बिना कोई देरी किए वहीं से अधिकारियों को फोन पर निर्देश देने शुरू कर दिए. रात में ही पुलिस की गश्त बढ़ा दी गई. सोशल मीडिया पर रात से ही निगरानी शुरू हो गई. यूपी पुलिस ने सोशल मीडिया पर बाज जैसी नजर रखने के लिए ‘ऑपरेशन ईगल’ को शुरू किया.
प्रदेश के एकीकृत नियंत्रण कक्ष यूपी 112 पर रात में ही ‘इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर’ स्थापित कर दिए गए थे. एडीजी यूपी 112 असीम अरुण खुद इसकी निगरानी कर रहे थे. जोनवार स्थिति पर नियंत्रण के लिए डेस्क तैयार की गई और जिला स्तर पर रातों-रात इस तरह के नियंत्रण कक्ष स्थापित कर नजर रखी जाने लगी. फैसले वाले दिन सीएम योगी आदित्यनाथ खुद इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर की कार्य प्रणाली जानने यूपी 112 पहुंचे थे. इस विशेष निगरानी के चलते अफवाह फैलाने के मामले में कई लोगों पर मुकदमे दर्ज किए गए, जबकि 37 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इसके अलावा जिलों में भी नजर रखी गई. आईजी कानून व्यवस्था प्रवीण कुमार और सोशल मीडिया सेल के एसपी मो. इमरान पूरी रात डीजीपी मुख्यालय पर मौजूद रहे. उनके साथ सोशल मीडिया सेल में काम करने वाले तमाम पुलिस कर्मियों ने ‘साइबर पेट्रोलिंग’ शुरू कर दी.
डीजीपी ओम प्रकाश सिंह ने बताया कि बीते 24 घंटे में लगभग 3,712 सोशल मीडिया पोस्टों के खिलाफ कार्रवाई की गई. इनमें से कई को रिपोर्ट कर हटवाया गया. पहली की गई ‘साइबर पेट्रोलिंग’ के तहत ट्विटर, फेसबुक और यू-ट्यूब पर निगरानी रखी गई. सबसे अधिक ट्विटर पर 2426 पोस्ट, फेसबुक 865 पोस्ट और यू-ट्यूब के 69 वीडियो व प्रोफाइल के खिलाफ रिपोर्ट की गई. डीजीपी ओपी सिंह की अगुवाई वाली की मुस्तैदी का परिणाम रहा कि अयोध्या फैसले वाले दिन पूरे प्रदेश में एक भी हत्या, लूट, अपहरण, बलात्कार या डकैती की वारदात की घटना नहीं हुई. डीजीपी मुख्यालय के अधिकारियों को भी यकीन नहीं हो रहा था कि प्रदेश के 75 जिलों में एक भी घटना नहीं हुई. हालांकि पुलिस को अपराध कम होने की उम्मीद थी लेकिन ऐसे परिणाम हर किसी को हैरान कर गए.
दरअसल, प्रदेश में अपराध पर नियंत्रण और नजर रखने के लिए डीजीपी मुख्यालय में कंट्रोल रूम है. यहां हर दिन अपराध की स्थिति, घटनाओं में क्या कार्रवाई हुई और बीते 24 घंटे में कौन-कौन सी वारदात हुई, इसपर नजर रखी जाती है. 9 नवंबर की घटनाओं के लिए जब जोन स्तर से डीजीपी मुख्यालय ने आंकड़े जुटाने शुरू किए तो हर जोन से गंभीर अपराध के सभी मामले शून्य-शून्य आने लगे. डीजीपी मुख्यालय को एक बार तो इन आंकड़ों पर विश्वास नहीं हुआ और जिलों से चेक कराने के बाद दोबारा आंकड़े मांगे गए तो भी यही आंकड़ा आया. इससे सभी हैरत में थे.
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