21 दिसंबर को आसमान में 400 साल बाद महासंयोग, ज्योतिष के नजरिए से बड़ी घटना, जानें क्या पड़ेगा आप पर प्रभाव

अंतरिक्ष में करीब 400 साल बाद 21 दिसंबर को अनोखा नजारा दिखेगा जब बृहस्पति और शनि (Jupiter and Saturn) के बहुत करीब आएगा. एक चमकदार तारे की तरह दिखने का यह दुर्लभ नजारा आसमान में देखा जा सकेगा. एम पी बिड़ला तारामंडल के निदेशक देबी प्रसाद दुआरी ने रविवार को कहा कि दोनों ग्रहों को सन 1623 के बाद से यानी पिछले 397 साल में कभी इतने करीब नहीं देखा गया है. बृहस्पति और शनि के बीच अगला ऐसा संयोग 60 साल बाद ही दिखेगा.


हर 20 साल में करीब आते हैं बृहस्पति और शनि ग्रह

वैसे तो बृहस्पति और शनि ग्रह हर 20 साल में एक दूसरे के करीब आते हैं लेकिन करीब 400 साल बाद ऐसा हो रहा है कि जब इन दोनों ग्रहों के बीच की दूरी सिर्फ 0.1 डिग्री रहेगी. इनके बीच की दूरी मात्र 73.5 किलोमीटर होगी. इसके पहले सन 1623 में ये दोनों ग्रह इतने करीब आए थे. इस साल 21 दिसंबर 2020 के बाद ये दोनों ग्रह 15 मार्च सन 2080 को इतने पास दिखाई देंगे.दूसरे ग्रहों की तरह ही बृहस्पति और शनि भी लगातार सूर्य का चक्कर लगाते हैं. जहां पृथ्वी 365 दिनों में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है. वहीं इस काम में बृहस्पति को 11.86 वर्ष और शनि को 29.5 वर्ष लगते हैं. 


ज्योतिष के नजरिए से भी अहम घटना

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति को ग्रहों का राजा माना जाता है. यह सौरमंडल का सबसे  बड़ा ग्रह है. इसे देवताओं के गुरु की उपाधि दी गई है. बृहस्पति का प्रभाव शुभ फल प्रदान करता है. यह व्यक्ति को न्याय की तरफ अग्रसर करता है.  वहीं शनि की गिनती क्रूर ग्रहों में होती है. यह दंड देकर व्यक्ति को सुधारते हैं. लेकिन दोनों ही ग्रह न्यायप्रिय हैं. यह मनुष्य को न्यायोचित जीवन देने की प्रेरणा देते हैं. लेकिन दोनों का तरीका अलग अलग है. लेकिन न्याय की भावना प्रधान होने के कारण दोनों में नैसर्गिक संबंध होता है.


वैदिक ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक शनि एक राशि में लगभग 2.5 साल जबकि बृहस्पति एक राशि नें 12 से 13 माह तक रहते हैं. इस बार की युति के दौरान दोनों ही ग्रह मकर राशि में उपस्थित हैं. जो कि शनि की स्वराशि है. 


20 नवंबर से शुरु है महासंयोग

शनि और बृहस्पति के नजदीक आने की प्रक्रिया 20 नवंबर से चल रही है. जब बृहस्पति धनु राशि से निकल कर मकर राशि में आए. वहां शनिदेव पहले से मौजूद थे. दोनों के संयुग्मन की यह प्रक्रिया 21 दिसंबर को अपने चरम पर होगी. दोनों ग्रह एक दूसरे के प्रति सम भाव रखते हैं. अर्थात् इनमें ना तो शत्रुता है और ना ही मित्रता. लेकिन न्याय के प्रति दोनों की दृष्टि समान है.  दोनों न्यायप्रिय ग्रहों का एक साथ एक ही राशि में आना ज्योतिष की दृष्टि से अद्भुत घटना है. इसका असर पूरी दुनिया पर देखा जा सकता है.


शनि और बृहस्पति के लक्षण

फलित शास्त्र के अनुसार बृहस्पति का रंग पीला, विशाल पेट और भूरी आंखों और केशों से सुसज्जित होते हैं. यह अध्यात्म और ब्रह्म विद्या पर प्रभाव रखते हैं. भगवान शिव के आदेश से बृहस्पति समस्त सात्विक शक्तियों को धारण और उनका संरक्षण करते हैं. वहीं शनिदेव का रंग गहरा नीला होता है. उनके नेत्र तीक्ष्ण होते हैं. वह दुष्टों को दंड देने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. शनि और बृहस्पति में समानता यह होती है कि जहां बृहस्पति शुभत्व को जागृत करके लोगों को बुरे कर्मों से दूर रखते हैं, वहीं शनिदेव दंड का भय दिखाकर लोगों को बुरे कर्मों से बचाते हैं. 


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