अब डिपोर्ट होंगे रोहिंग्या!, किरकिरी के बाद कर्नाटक सरकार ने लिया यू टर्न, पहले वापस भेजने की मांग का किया था विरोध

कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) ने शरणार्थियों (Rohingyas Refugees) के मामले पर यू टर्न ले लिया है. सोशल मीडिया पर भारी किरकिरी के बाद भाजपा सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बदला हुआ हलफनामा दाखिल किया है. नए हलफनामे में कहा गया है कि कोर्ट इस मसले पर जो भी आदेश देगा उसका पालन किया जाएगा. इससे पहले कर्नाटक सरकार ने रोहिंग्या को वापस भेजने की मांग वाली याचिका का विरोध किया था. यह भी कहा था कि उन्हें वापस भेजने की फिलहाल कोई योजना नहीं है.

बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपील की थी, कि भारत में अवैध तरीके से रह रहे बांग्लादेशियों और रोहिंग्या लोगों की पहचान की जाए और उन्हें 1 साल के भीतर वापस भेजा जाए. केंद्र और अधिकतर राज्य सरकार अभी तक इस याचिका पर जवाब नहीं दिया है. 25 अक्टूबर को कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था कि याचिका कानूनी और तथ्यात्मक, दोनों आधारों पर गलत है. इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए. इस स्टैंड पर हुई खिंचाई के बाद अब बदला हुआ हलफनामा दाखिल किया गया है.

नए हलफनामे में कहा गया है कि कर्नाटक में रह रहे 126 रोहिंग्या लोगों की पहचान की गई है. पुलिस ने उन्हें न तो किसी कैंप या आश्रय स्थल में रखा है, न ही किसी डिटेंशन सेंटर में. इन्हें वापस भेजने की मांग पर कोर्ट का जो भी आदेश होगा, राज्य सरकार उसका पूरी तरह पालन करेगी. पिछले हलफनामे में बंगलुरु में 72 रोहिंग्याओं की मौजूदगी की बात कह गई थी. अब यह संख्या भी बढ़ गई है. दाखिल करने वाले अधिकारी भी बदल गए हैं. पिछला हलफनामा डीजीपी कार्यालय में नियुक्त एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी का था. नया हलफनामा राज्य के गृह विभाग के एक अंडर सेक्रेट्री का है.

दरअसल, सितंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें बांग्लादेश से आए सभी अवैध प्रवासियों को एक साल के भीतर तत्काल निर्वासित करने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि देश में रोहिंग्याओं का होना सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होगा. याचिका में यह भी कहा गया है कि बांग्लादेशी से अवैध घुसपैठ की गई है. याचिका में अवैध प्रवास और घुसपैठ को संज्ञेय गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध बनाने के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन की भी मांग की गई है.

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