हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी कहा गया है. इस ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है. इसी त्यौहार के साथ ही ऋतुराज बसंत का आगमन शुरू हो जाएगा. अबकी बार रविवार (10 फरवरी) को बसंत पंचमी मनाई जाएगी. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन से सर्दी के महीने का अंत हो जाता है. इस दिन विभिन्न स्थानों पर विद्या की देवी वीणावादिनी मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है. विद्यार्थियों के साथ आम लोग भी मां सरस्वती की पूजा करते हैं और विद्या, बुद्धि और ज्ञान अर्जित करने की प्रार्थना करते हैं.
ऋतुराज है बसंत
इस दिन लोग पीले रंग के कपड़े पहनते है. पीले रंग को बसंत की प्रतीक माना जाता है. बसंत पंचमी के दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जिसकी पीली किरणें इस बात का प्रतीक है कि सूर्य की तरह गंभीर और प्रखर बनना चाहिए. बंसत ऋतु को सभी मौसमों में बड़ा माना जाता है, इसलिए इसे ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है.
बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था इसलिए इसे देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन कामदेव और इनकी पत्नी रति धरती पर आते हैं और प्रकृति में प्रेम रस का संचार करते हैं इसलिए बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती के साथ कामदेव और रति की पूजा का भी विधान है.
शास्त्रों में पूर्वाह्न से पूर्व सरस्वती पूजन करने का नियम बताया गया है इसलिए 10 तारीख को सुबह 6 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक सरस्वती पूजन करना शुभ मंगलकारी होगा.
इसलिए होती है मां सरस्वती की पूजा
हिंदु पौराणिक कथाओं में प्रचलित एक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने संसार की रचना की. उन्होंने पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और मनुष्य बनाए. लेकिन उन्हें लगा कि उनकी रचना में कुछ कमी रह गई. इसीलिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई. उस स्त्री के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था. ब्रह्मा जी ने इस सुंदर देवी से वीणा बजाने को कहा. जैसे वीणा बजी ब्रह्मा जी की बनाई हर चीज़ में स्वर आ गया. बहते पानी की धारा में आवाज़ आई, हवा सरसराहट करने लगा, जीव-जन्तु में स्वर आने लगा, पक्षी चहचहाने लगे. तभी ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया. वह दिन बसंत पंचमी का था. इसी वजह से हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाने लगा और उनकी पूजा की जाने लगी.
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