Janmashtami 2023: भगवान श्री कृष्णा का पवन पर्व जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) आज देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह त्यौहार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. कान्हा जी के भक्त यह पर्व बहुत ही हर्ष और उमंग से मनाते है. इस दिन भक्तों द्वारा श्री कृष्ण के भजन-कीर्तन आयोजित किए जातें है. श्री कृष्ण को बचपन से ही माखन , दूध एवं दही बहुत पसंद था जिसके लिए वह अन्य घरों में भी छुपकर माखन खाया करते थे. इसी दृश्य का प्रतिनिधित्व करते हुए नन्हे एवं युवा बालकों द्वारा दही- हांड़ी का आयोजन भी होता है.
भगवान कृष्ण के श्री मुख से बोली गई श्रीमद्भगवद्गीता ऐसी रहस्मई पुस्तक है जिसमें जीवन के हर उन प्रश्नों के उत्तर छुपे हैं जो मनुष्य के जीवन में घटित होते हैं. इसमें जितने भी उपदेश दिए गए हैं वो सब कुरुक्षेत्र की रणभूमि में भगवान् श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को महाभारत के युद्ध से पूर्व दिए गए उपदेश हैं. तो चलिए जानते हैं इस पुस्तक की कुछ रोचक बातें.
- गीता के ज्ञान को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कुरुक्षेत्र में खड़े होकर दिया था. यह श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद नाम से विख्यात है.
- वैसे तो गीता श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ एक संवाद है, लेकिन कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के माध्यम से उस कालरूप परम परमेश्वर ने गीता का ज्ञान विश्व को दिया. श्रीकृष्ण उस समय योगारूढ़ थे.
- गीता के चौथे अध्याय में कृष्णजी कहते हैं कि पूर्व काल में यह योग मैंने विवस्वान को बताया था. विवस्वान ने मनु से कहा. मनु ने इक्ष्वाकु को बताया. यूं पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा से प्राप्त इस ज्ञान को राजर्षियों ने जाना पर कालान्तर में यह योग लुप्त हो गया. और अब उस पुराने योग को ही तुम्हें पुन: बता रहा हूं. परंपरा से यह ज्ञान सबसे पहले विवस्वान् (सूर्य) को मिला था. जिसके पुत्र वैवस्वत मनु थे.
- श्रीकृष्ण के गुरु घोर अंगिरस थे। घोर अंगिरस ने देवकी पुत्र कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को देते हैं. छांदोग्य उपनिषद में उल्लेख मिलता है कि देवकी पुत्र कृष्ण घोर अंगिरस के शिष्य हैं, और वे गुरु से ऐसा ज्ञान अर्जित करते हैं जिससे फिर कुछ भी ज्ञातव्य नहीं रह जाता है. यद्यपि गीता द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के समय रणभूमि में किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन को समझाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा कही गई थी, किंतु इस वचनामृत की प्रासंगिकता आज तक बनी हुई है.
- गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म मार्ग की चर्चा की गई है. उसमें यम-नियम और धर्म-कर्म के बारे में भी बताया गया है. गीता ही कहती है कि ब्रह्म (ईश्वर) एक ही है. गीता को बार-बार पढ़ेंगे तो आपके समक्ष इसके ज्ञान का रहस्य खुलता जाएगा. गीता के प्रत्येक शब्द पर एक अलग ग्रंथ लिखा जा सकता है. गीता में सृष्टि उत्पत्ति, जीव विकासक्रम, हिन्दू संदेवाहक क्रम, मानव उत्पत्ति, योग, धर्म, कर्म, ईश्वर, भगवान, देवी, देवता, उपासना, प्रार्थना, यम, नियम, राजनीति, युद्ध, मोक्ष, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, वंश, कुल, नीति, अर्थ, पूर्वजन्म, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्मसिद्धांत, त्रिगुण की संकल्पना, सभी प्राणियों में मैत्रीभाव आदि सभी की जानकारी है.
- 3112 ईसा पूर्व हुए भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. कलियुग का आरंभ शक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) को हुआ था. वर्तमान में 1939 शक संवत है. आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईपू में हुआ. इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है. उनकी मृत्यु एक बहेलिए का तीर लगने से हुई थी. तब उनकी तब उनकी उम्र 119 वर्ष थी. इसका मतलब की आर्यभट्ट के गणना अनुसार गीता का ज्ञान 5154 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था.
- हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जब यह ज्ञान दिया गया तब तिथि एकादशी थी. संभवत: उस दिन रविवार था. उन्होंने यह ज्ञान लगभग 45 मिनट तक दिया था. गीता में श्रीकृष्ण ने- 574, अर्जुन ने- 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने- 1 श्लोक कहा है.
- गीता की गणना उपनिषदों में की जाती है. इसीलिये इसे गीतोपनिषद् भी कहा जाता है. दरअसल, यह महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है. महाभारत में ही कुछ स्थानों पर उसका हरिगीता नाम से उल्लेख हुआ है. (शान्ति पर्व अ. 10, अ. 348.8 व 53).
- श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को इसलिये दिया क्योंकि वह कर्त्तव्य पथ से भटकर संन्यासी और वैरागी जैसा आचरण करके युद्ध छोड़ने को आतुर हो गया था वह भी ऐसे समय जब की सेना मैदान में डटी थी. ऐसे में श्रीकृष्ण को उन्हें उनका कर्तव्य निभाने के लिए यह ज्ञान दिया. गीता को अर्जुन के अलावा और संजय ने सुना और उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया.
- गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिस पर दुनियाभर की भाषा में सबसे ज्यादा भाष्य, टीका, व्याख्या, टिप्पणी, निबंध, शोधग्रंथ आदि लिखे गए हैं. आदि शंकराचार्य, रामानुज, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्क, भास्कर, वल्लभ, श्रीधर स्वामी, आनन्द गिरि, मधुसूदन सरस्वती, संत ज्ञानेश्वर, बालगंगाधर तिलक, परमहंस योगानंद, महात्मा गांधी, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन, महर्षि अरविन्द घोष, एनी बेसेन्ट, गुरुदत्त, विनोबा भावे, स्वामी चिन्मयानन्द, चैतन्य महाप्रभु, स्वामी नारायण, जयदयाल गोयन्दका, ओशो रजनीश, स्वामी क्रियानन्द, स्वामी रामसुखदास, श्रीराम शर्मा आचार्य आदि सैंकड़ों विद्वानों ने गीता पर भाष्य लिखे या प्रवचन दिए हैं. लेकिन कहते हैं कि ओशो रजनीश ने जो गीता पर प्रवचन दिए हैं वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रवचन हैं.
- किस समय, किसने गीता को महाभारत से अलग कर एक स्वतंत्र ग्रंथ का रूप दिया इसका कोई प्रमाण कहीं नहीं मिलता. आदि शंकराचार्य द्वारा भाष्य रचे जाने पर गीता जिस तरह प्रमाण ग्रंथ के रूप में पूजित हुई है, क्या वही स्थिति उसे इसके पूर्व भी प्राप्त थी, इसका निर्णय कर पाना कठिन है.
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