डेयरी का काम किया, पहले पार्षद बने फिर लोकसभा पहुंचे ,सज्जन कुमार अपने आरंभिक दिनों में डेयरी व्यवसाय से जुड़े थे। उनकी राजनीतिक किस्मत तब बदली जब वे पहले निगम पार्षद बने और फिर लोकसभा तक पहुंचे। संजय गांधी की नजदीकी के चलते सज्जन कुमार कांग्रेस में प्रभावशाली नेता बन गए। पार्षद बनने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कांग्रेस नेता हीरा सिंह और एच.के.एल. भगत की मदद से उन्हें राजनीति में ऊंचाई मिली।
दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री को हराकर बने सांसद
1977 के चुनावों में कांग्रेस की स्थिति कमजोर थी, लेकिन सज्जन कुमार को बाहरी दिल्ली से टिकट मिला। उन्होंने दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री ब्रह्म प्रकाश को हराकर अपनी राजनीति में मजबूती बना ली।1984 के सिख दंगों के बाद बदली राजनीतिक स्थिति
1984 के सिख विरोधी दंगों में नाम आने के बाद सज्जन कुमार की राजनीतिक प्रतिष्ठा गिरने लगी। कांग्रेस ने कई मौकों पर उनका टिकट काटा, जिससे उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर होती गई। 1991 के चुनावों में सज्जन कुमार को फिर से कांग्रेस का टिकट मिला और उन्होंने भाजपा नेता साहिब सिंह वर्मा को हराया। इसके बाद वे 2004 में भी सांसद बने।
कांग्रेस ने काटा टिकट 2009 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया था, लेकिन एक सिख पत्रकार द्वारा तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंकने की घटना के बाद उनका टिकट काट दिया गया। हालांकि, उन्होंने अपने भाई रमेश कुमार को टिकट दिलवाया और उसे जितवा भी दिया।
1984 के दंगों के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद 2018 में सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा हुई। इसके बाद उनकी राजनीतिक स्थिति पूरी तरह से खत्म हो गई। वर्तमान में वे जेल में दो मामलों में सजा काट रहे हैं, और कभी राजनीति में दबदबा रखने वाले सज्जन कुमार अब पूरी तरह हाशिए पर चले गए हैं।
INPUT SANJAY CHAUHAN
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