उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh ) के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Cm Yogi Adityanath) ने राज्य के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रच दिया है। उन्होंने 8 साल और 132 दिन तक लगातार मुख्यमंत्री पद संभालकर पंडित गोविंद बल्लभ पंत का 8 साल 127 दिन का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। यह उपलब्धि उन्हें उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक इतिहास में एक नई ऊंचाई पर ले जाती है।
पुराने कद्दावर नेताओं को छोड़ा पीछे
अपने कार्यकाल के दौरान योगी आदित्यनाथ ने न सिर्फ कार्यकाल की लंबाई में इतिहास रचा, बल्कि मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव जैसे कद्दावर नेताओं को भी पीछे छोड़ दिया है। उनकी नेतृत्व शैली और राजनीतिक पकड़ ने उन्हें प्रदेश की जनता के बीच एक सशक्त और प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित किया है।
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एक और रिकॉर्ड के करीब सीएम योगी
इतना ही नहीं, योगी आदित्यनाथ ने 37 साल पुराने नारायण दत्त तिवारी के रिकॉर्ड को भी पार किया, जो 1985 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे। वही अब योगी आदित्यनाथ लगातार आठवीं बार स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर एक और ऐतिहासिक उपलब्धि के बेहद करीब हैं, जो उन्हें प्रदेश के सबसे स्थिर और प्रभावी मुख्यमंत्रियों में शुमार करता है।
अन्य मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल
- गोविन्द वल्ल्भ पंत 8 वर्ष 127 दिन
- मायावती 7 वर्ष 127 दिन
- मुलायम सिंह यादव 6 वर्ष 274 दिन
- संपूर्णानंद 5 वर्ष 345 दिन
- अखिलेश यादव 5 वर्ष 4 दिन
- नारायण दत्त तिवारी 3 वर्ष 314 दिन
योगी आदित्यनाथ का सुशासन और विकास मॉडल
एक समय उत्तर प्रदेश अस्थिरता और अव्यवस्था के लिए जाना जाता था, लेकिन योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश ने एक नई पहचान बनाई है। निवेश, कानून-व्यवस्था और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। उनकी शासन शैली में जनभागीदारी, पारदर्शिता और निष्पक्षता को प्राथमिकता दी गई है। “नया उत्तर प्रदेश” अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक वास्तविकता बन चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कार्यकाल राष्ट्र निर्माण में प्रदेश की अग्रणी भूमिका का प्रतीक बन गया है।
युवा सांसद से लेकर गोरखनाथ मठ के महंत तक सफर
योगी आदित्यनाथ ने 1998 में मात्र 26 वर्ष की आयु में गोरखपुर से लोकसभा चुनाव जीतकर राजनीति में कदम रखा और देश के सबसे युवा सांसदों में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने लगातार पांच बार गोरखपुर का प्रतिनिधित्व किया। 2014 में उन्होंने अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद गोरखनाथ मठ के महंत का पदभार संभाला और तब से आध्यात्मिक और सामाजिक नेतृत्व में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।