पश्चिम बंगाल (West Bengal) में चुनाव आयोग (Election Commission) द्वारा 27 अक्टूबर को विशेष गहन मतदाता सूची संशोधन (SIR) की घोषणा के बाद कम से कम तीन लोगों ने आत्महत्या कर ली और एक ने आत्महत्या का प्रयास किया। परिवारों का कहना है कि यह कदम नागरिकता सत्यापन (NRC) जैसा प्रतीत होने के कारण इन घटनाओं का कारण बना। इस बीच, राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने भाजपा पर इसे ‘बैकडोर NRC’ के रूप में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का आरोप लगाया, जबकि भाजपा का कहना है कि TMC केवल राजनीतिक लाभ के लिए अफ़वाह फैला रही है।
मतदाता सूची सुधार का उद्देश्य और प्रक्रिया
चुनाव आयोग ने 27 अक्टूबर से SIR की शुरुआत की, जिसमें निवासियों को 11 दस्तावेज़ों के माध्यम से अपनी जानकारी सत्यापित करनी थी, जिनमें आधार, पासपोर्ट और राशन कार्ड शामिल हैं। यह कदम डुप्लिकेट और मृतक नामों को हटाने के लिए किया जा रहा है। आयोग ने स्पष्ट किया कि यह NRC नहीं है, बल्कि केवल वोटरों की सूची को सही करने के लिए सामान्य प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया 25 नवंबर तक चलने वाली है और बूथ स्तर के अधिकारियों द्वारा घर-घर जाकर सत्यापन किया जा रहा है।
आत्महत्याओं और आत्महत्या प्रयास का विवरण
पहली आत्महत्या 28 अक्टूबर को नॉर्थ 24 परगना में हुई, जहां 45 वर्षीय व्यक्ति ने फाँसी लगाई। परिवार का कहना था कि उन्हें डर था कि उन्हें अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ेगी। दूसरी घटना 29 अक्टूबर को मुर्शिदाबाद में 32 वर्षीय महिला की थी, जबकि 30 अक्टूबर को कूचबिहार में 50 वर्षीय प्रवासी मजदूर ने आत्महत्या का प्रयास किया और बच गया। इसी दिन साउथ 24 परगना में 60 वर्षीय किसान ने जहर खा लिया। पुलिस ने सभी मामलों में अजीब मौत का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
TMC ने BJP पर लगाया NRC जैसा आरोप
TMC ने आरोप लगाया कि SIR के माध्यम से भाजपा अल्पसंख्यकों और गरीबों को डराने की कोशिश कर रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रैली में कहा कि लोग घबराएँ नहीं और धैर्यपूर्वक दस्तावेज़ जमा करें। TMC के सांसदों ने संसद में सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा। वहीं भाजपा का कहना है कि यह केवल सामान्य सूची सुधार है और TMC डर फैलाकर वोट बैंक बनाने की कोशिश कर रही है।
आधिकारिक स्पष्टीकरण और आगे की कार्रवाई
चुनाव आयोग ने बार-बार कहा कि यह प्रक्रिया केवल मतदाता सूची सुधार की है, नागरिकता सत्यापन नहीं। पश्चिम बंगाल के मुख्य चुनाव अधिकारी आरिज आफ़ताब ने भी कहा कि आधार जैसे दस्तावेज़ पर्याप्त हैं। मानवाधिकार संगठन और मनोवैज्ञानिक अब मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की सलाह दे रहे हैं। चुनाव आयोग ने शहरों में टाउन हॉल आयोजित करने की योजना बनाई है ताकि अफ़वाहों को दूर किया जा सके। यह घटनाएँ चुनावी राजनीति में मानवीय लागत को उजागर करती हैं।


















































