UP BJP President Election: उत्तर प्रदेश में अब प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने की तैयारी की जा रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, अगले कुछ दिनों में यूपी बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है। प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से सांसद हैं और उन्हें पहले राष्ट्रीय परिषद का सदस्य चुना जाना जरूरी है।
चुनाव प्रक्रिया के लिए केंद्र से मंजूरी का इंतजार
बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, केंद्र से हरी झंडी मिलने के बाद ही प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी, जो तीन दिन से अधिक नहीं लेगी। पार्टी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद भूपेंद्र सिंह द्वारा इस्तीफे की पेशकश के बावजूद चुनाव को टाल दिया था।
संभावित चेहरे
यूपी बीजेपी अध्यक्ष बनने के लिए कई नाम चर्चा में हैं। सूत्रों के अनुसार छह नाम प्रमुख हैं:
- दिनेश शर्मा: पूर्व उपमुख्यमंत्री और वर्तमान राज्यसभा सांसद, संगठन और सरकार दोनों में अनुभव।

- हरीश द्विवेदी: ब्राह्मण प्रतिनिधित्व, सांसद रह चुके और संगठन का अनुभव।

- धर्मपाल सिंह: ओबीसी (खासकर लोध) वोट बैंक को साधने में सक्षम।

- बी.एल. वर्मा: लोध ओबीसी, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर अनुभव।

- रामशंकर कठेरिया: दलित नेता, आगरा-बुंदेलखंड क्षेत्र में प्रभावी।

- विद्या सागर सोनकर: दलित नेता ,संगठन कार्यकर्ता, पूर्वांचल क्षेत्र में पहचान।

- सूत्रों के अनुसार यदि ब्राह्मण-ओबीसी संतुलन पर सहमति न बनी तो दलित अध्यक्ष के विकल्प पर भी विचार किया जा सकता है।
यूपी बीजेपी अध्यक्ष चुनाव के अहम फैक्टर
- इस बार यूपी बीजेपी अध्यक्ष चुनाव में पारंपरिक सामाजिक समीकरणों का ध्यान खास तौर पर रखा जा रहा है। पश्चिम, अवध और पूर्वांचल के शहरी-अर्धशहरी इलाकों में ब्राह्मण, वैश्य और कायस्थ जैसे पारंपरिक बीजेपी वोटरों को ‘सम्मानजनक साझेदारी’ का संदेश देना बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है।
- सपा के PDA और बसपा के दलित-मुस्लिम-ओबीसी वोट बैंक को टक्कर देने के लिए पार्टी यूपी में दलित अध्यक्ष पर भी गंभीरता से विचार कर रही है। यदि कठेरिया या सोनकर जैसे नेता अध्यक्ष बनते हैं, तो यह बसपा की पारंपरिक जमीन (जाटव + अन्य दलित) में सेंध लगाने और एससी आरक्षित सीटों पर पकड़ मजबूत करने का संकेत होगा।
- इस तरह, यह चुनाव सामाजिक समीकरणों के संतुलन का बड़ा संदेश भी देगा। वर्तमान में मुख्यमंत्री राजपूत, एक उपमुख्यमंत्री ब्राह्मण, दूसरा उपमुख्यमंत्री ओबीसी और संगठन अध्यक्ष दलित हैं, यानी तीन बड़े सामाजिक स्तंभों का संतुलित और मजबूत समीकरण कायम किया जा रहा है।
चुनाव में सामाजिक समीकरणों का अहम रोल
प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव पार्टी के सामाजिक समीकरणों पर भी असर डालेगा। मौजूदा सत्ता में मुख्यमंत्री योगी (राजपूत), डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक (ब्राह्मण) और केशव प्रसाद मौर्य (ओबीसी) हैं। इसमें ओबीसी या दलित अध्यक्ष जोड़ने से पार्टी यह संदेश दे सकती है कि संगठन का नेतृत्व पिछड़े वर्ग के हाथ में है। वहीं, ब्राह्मण अध्यक्ष चुनने से पारंपरिक सवर्ण वोटरों को सम्मान का संकेत मिलेगा।
संगठन और सरकार में बदलाव के संकेत
प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद संगठन और सरकार दोनों में बदलाव की संभावना है। चुनाव के दौरान जातीय और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए सरकार में नए चेहरों को जगह दी जा सकती है। पिछली बार लोकसभा चुनाव में पासी और कुर्मी वोट बीजेपी से छिटक गए थे, जबकि जाटव वोट का बड़ा हिस्सा सपा के पक्ष में गया।
चुनावी रणनीति और सोशल इंजीनियरिंग
बीजेपी अब सपा की सोशल इंजीनियरिंग का जवाब देने के लिए रणनीति तैयार कर रही है। विधानसभा चुनाव में गैर यादव ओबीसी वोट और दलित वोट बैंक को साधने के लिए ओबीसी या दलित प्रदेश अध्यक्ष को नियुक्त करने पर जोर हो सकता है। साथ ही, योगी कैबिनेट विस्तार में पासी-कुर्मी वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर चुनाव से पहले सभी वर्गों और क्षेत्रों को शामिल करने का प्रयास किया जाएगा।

















































