दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्नाव रेप मामले में चार बार के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा सस्पेंड कर दी। अदालत ने कहा कि, ‘सेंगर 7 साल 5 महीने से जेल में है। तय सजा से ज्यादा वक्त जेल में काट चुका है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
पीड़िता ने जताई आपत्ति
पीड़िता ने फैसले पर आपत्ति जताई और कहा जब बहस तीन महीने पहले पूरी हो चुकी थी, तो फैसला इतनी देर से क्यों आया? पीड़िता ने कहा कि जज केवल खड़े होकर फैसला सुनाकर चले गए और उन्हें कुछ बोलने का मौका नहीं मिला। आखिर में अब यह सवाल उठता है कि कुलदीप की सजा सस्पेंड करने के पीछे क्या-क्या वजहें हो सकती हैं।
क्या था पूरा मामला?
उन्नाव के माखी गांव में 2017 में सेंगर चौथी बार विधायक बने। 4 जून 2017 को पीड़िता नौकरी के लिए उनके घर गई थी, जहां उसके साथ रेप हुआ और उसे जान से मारने की धमकी मिली। पीड़िता ने तुरंत शिकायत नहीं की, बाद में जब घरवालों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की, तो सेंगर और उसके भाईयों ने विरोध किया।
पीड़िता के पिता को गिरफ्तार कर थाने में पीटा गया। जिसके बाद जेल में ही पीड़िता के पिता की मौत हो गई। पीड़िता ने लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के बाहर आत्मदाह करने का प्रयास किया। इसके बाद प्रशासन ने केस सीबीआई को सौंपा। इसी महीने एक हादसे में पीड़िता की चाची और मौसी की मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने केस दिल्ली ट्रांसफर किया। 21 दिसंबर 2019 को तीस हजारी कोर्ट ने सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई।
कोर्ट ने क्या कहा?
पहली शिकायत में मुख्य आरोपी का नाम क्यों नहीं था?
- घटना की तारीख: 4 जून 2017
- पहली शिकायत पुलिस को मिली: अगस्त 2017
- उस शिकायत में पीड़िता ने कुलदीप सिंह सेंगर का नाम नहीं लिखा।
- शिकायत में कुछ अन्य लोग थे जैसे शुभम सिंह और नीरज तिवारी। ये लोग कुलदीप के खास साथी माने जाते थे और उनके साथ रहते थे।
- हाईकोर्ट ने कहा: जब इतनी बड़ी घटना होती है, तब मुख्य आरोपी का नाम पहली शिकायत में होना चाहिए था। अगर बाद में नाम जोड़ा गया, तो यह संदेह पैदा करता है कि कहीं यह राजनीतिक दबाव या किसी अन्य वजह से तो नहीं किया गया।
मोबाइल और CDR (कॉल डिटेल रिकॉर्ड) से जुड़ी अनसंगतियाँ
- पीड़िता ने पुलिस को बताया कि उसका मोबाइल कुलदीप के घर पर छीना गया था।
- लेकिन कोर्ट में जमा किए गए CDR के अनुसार, जिस सिम को छीना गया बताया गया, वह घटना के बाद भी सक्रिय था और उस नंबर से कॉल किए जा रहे थे।
- हाईकोर्ट ने कहा: अगर फोन छीन लिया गया था, तो यह कैसे सक्रिय रह सकता है? अगर फोन पीड़िता को मिला भी, तो उसने पुलिस को क्यों नहीं सूचित किया?
बयान में बदलाव और अगवा करने की बात
- शुरू में पीड़िता ने कहा कि उसे अगवा किया गया और बेच दिया गया।
- प्रारंभिक बयानों में उसने रेप शब्द का इस्तेमाल नहीं किया।
- बाद के बयानों में पीड़िता ने रेप का आरोप जोड़ा।
- पहले मेडिकल जांच में भी पीड़िता ने कुलदीप सेंगर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।
हाईकोर्ट की टिप्पणी:
- निचली अदालत ने पीड़िता के बदलते हुए बयानों को नजरअंदाज किया।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बयानों और सबूतों में असंगतियाँ हैं, जिनकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए।
पॉक्सो अधिनियम और सजा का आधार
तीस हजारी कोर्ट ने सेंगर को पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत सजा दी, जो गंभीर चोट के साथ नाबालिग पर यौन हमला करने पर लागू होती है। हाईकोर्ट ने कहा कि सेंगर सरकारी कर्मचारी नहीं थे, इसलिए धारा 5(c) लागू नहीं होती।हाईकोर्ट के अनुसार, अगर पॉक्सो की धारा 4 लागू होती, तो अधिकतम सजा 7 साल थी और सेंगर यह सजा पूरी कर चुके हैं। यही कारण है कि सजा सस्पेंड की गई।
पीड़िता की प्रतिक्रिया
पीड़िता ने कहा कि फैसला देर से सुनाया गया और जज केवल खड़े होकर चले गए। उन्होंने सरकार पर राजनीतिक दखल और ‘सेटिंग’ का आरोप लगाया। 23 दिसंबर को उन्होंने इंडिया गेट पर धरना दिया और अगले दिन राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मुलाकात की, जिन्होंने न्याय दिलाने का आश्वासन दिया।
सजा सस्पेंड, लेकिन फिर भी जेल में ही रहना होगा
हालांकि सेंगर की उम्रकैद सजा सस्पेंड हुई है, लेकिन पीड़िता के पिता की मौत के मामले में उसे अभी भी जेल में रहना होगा। 2019 में सेंगर को 10 साल की सजा सुनाई गई थी, जिसमें 3 साल बाकी हैं। सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है।
















































