अदाणी-हिंडनबर्ग केस (Adani-Hindenburg Case) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्तमान में सेबी की ओर से मिले आंकड़ों और स्पष्टीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि मूल्यों में हेरफेर या किसी तरह की नियामकीय विफलता हुई है।
विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक ऐसा कुछ नहीं मिला है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि अडाणी ग्रुप ने शेयरों के मूल्यों में कोई गड़बड़ी नहीं की थी। ना ही आर्टिफिशियल ट्रेडिंग या एक ही पार्टी द्वारा बार-बार ट्रेडिंग के भी सबूत नहीं मिले हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी तक की जांच में मिनिमम पब्लिक शेयर होल्डिंग का उल्लंघन भी नहीं मिला है। विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सेबी ने 13 विशिष्ट लेनदेन की पहचान की है, जिसकी उसके द्वारा जांच की जा रही है कि क्या वह कानूनी तौर पर मान्य लेनदेन थे या फिर उनमें कोई गड़बड़ी थी। ऐसे में समिति इन लेनदेन पर अभी कोई टिप्पणी नहीं कर सकती।
गौरतलब है कि 6 जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की इस विशेषज्ञ समिति की अध्यक्षता पूर्व जज एएम सप्रे कर रहे हैं। समिति ने सेबी को तय समय सीमा में जांच पूरी करने के निर्देश दिए हैं। सेबी ने जांच पूरी करने के लिए छह महीने का अतिरिक्त समय मांगा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त तक अपनी जांच पूरी करने का निर्देश दिया है।
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समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय सिक्योरिटी मार्केट में डिस्क्लोजर आधारित काम होता है और डिस्क्लोजर कैपिटल जारी करने या लिस्टिंग के लिए जरूरी बनाए गए हैं। समिति ने कहा कि यह देखने की जरूरत है कि क्या डिस्क्लोजर में निवेशकों के सामने इतनी सारी जानकारी पहुंच जाती है, जिसके चलते बेहद आवश्यक जानकारी पर निवेशकों की नजर ही नहीं पड़ पाती।
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