उत्तर प्रदेश के आगरा (Agra) जनपद में सिपाहियों ने ट्रेनी दारोगाओं को दूर-दराज के पुलिस स्टेशनों में भेजने के नाम पर 5000-5000 रुपए की वसूली की थी। इस मामले की शिकायत के बाद डीसीपी पश्चिम की पेशी में तैनात 2 सिपाहियों के खिलाफ गोपनीय जांच के बाद मुकदमा भी दर्ज कराया गया, लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी कार्रवाई नहीं हुई। वहीं, पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर (Amitabh Thakur) के डीजीपी को पत्र (Letter) लिखकर कार्रवाई की मांग की है। यह पत्र वायरल होने के बाद मामला सामने आया है।
रुपए ट्रांसफर करने के मिले थे स्क्रीनशॉट
दरअसल, इस मामले में निरीक्षक शाहगंज अमित मान ने बीते 16 अप्रैल को सिपाही सहगल तेवतिया और अभिषेक काकरान के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद दोनों सिपाही लाइन हाजिर कर दिए गए थे। वहीं, इससे पहले एएसपी मयंक पाठक ने जांच के दौरान दोनों सिपाहियों को दोषी पाया था। मुकदमे में लिखाया गया कि कमिश्नरेट में 733 प्रशिक्षु दरोगा आए। दरोगाओं को थानों में तैनाती दी गई।
न्यू आगरा थाने में तैनात प्रशिक्षु दरोगा सूरज चहल और अरविंद पिलानिया ने रुपये देकर तैनाती ली है, इसकी शिकायत हुई थी। आरोप लगाया गया कि प्रशिक्षु दरोगाओं को धमकाया गया था, दरोगाओं को रुपये न देने पर दूरस्थ थानों में तैनाती की धमकी दी गई थी। एएसपी ने जांच में पाया कि फोन पे के माध्यम से दोनों दरोगाओं ने पांच-पांच हजार रुपये आरक्षियों को दिए थे। यह रकम आरक्षी सहगल तेवरिया को भेजी गई थी। रुपये ट्रांसफर करने के स्क्रीन शॉट मिले थे। जांच में स्पष्ट हो गया था कि दोनों सिपाहियों ने प्रशिक्षु दरोगाओं को धमकाया था। मुकदमा रंगदारी, जान से मारने, धमकी देने और आईटी एक्ट में लिखा गया था।
अमिताभ ठाकुर के पत्र ने मचाई खलबली
पुलिस अफसरों ने इस मामले को दबा दिया, लेकिन आजाद अधिकार सेना के नेशनल प्रेसीडेंट पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने डीजीपी को पत्र लिखा। उनका पत्र और बयान सोशल मीडिया पर वायरल होने पर पुलिस महकमे में खलबली मच गई। अपने पत्र में उन्होंने लिखा है कि दोनों आरक्षियों की राजनैतिक पकड़ होने के कारण ही आज तक उनकी गिरफ्तार नहीं की गई। पुलिस आयुक्त ने सिपाहियों को निलंबित तक नहीं किया है।
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सबूतों के आधार पर की जाएगी कार्रवाई
डीसीपी सिटी सूरज कुमार राय ने बताया कि छानबीन में पुलिस को पता चला कि प्रशिक्षु दरोगा और आरोपी सिपाहियों की पहले से जान पहचान है। जिले में तैनाती से पहले भी दोनों के बीच रुपयों का आदान-प्रदान हुआ है। आचार संहिता लगी है। निलंबन के लिए चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होगी। यदि किसी को बचना होता तो मुकदमा ही नहीं लिखाया जाता। साक्ष्य आधारित विवेचना प्रणाली लागू है। पहले पुख्ता साक्ष्य जुटाए जाएंगे उसके बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
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