इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के जज रंगनाथ पांडेय (Ranganath Pandey) ने पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को पत्र लिखकर न्यायपालिका में व्याप्त विसंगतियों से अवगत कराया है. उन्होंने कोलेजियम व्यवस्था (Collegium System) पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया है कि ‘हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट (High Court and Supreme Court) में न्यायाधीशों (Judges) की नियुक्ति में परिवारवाद और जातिवाद का बोलबाला है. यहां न्यायाधीश के परिवार का सदस्य होना ही अगला न्यायाधीश होना सुनिश्चित करता है’. इस पत्र के बाद से ऐसा लगने लगा है कि न्यायपालिका के अंदर से ही अब जवाबदेही और पारदर्शिता की आवाज उठने लगी है. बता दें कि कोलेजियम व्यवस्था में बदलाव को लेकर एक समय पर सरकार की ओर से कवायद भी हुई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से साफ इंकार कर दिया था.
रंगनाथ पांडेय (Ranganath Pandey) ने बीते 1 जुलाई को भेजे अपने पत्र में लिखा है कि ‘राजनीतिक कार्यकर्ता के काम का मूल्यांकन चुनाव में जनता करती है, प्रशासनिक सेवा में आने के लिए प्रतियोगी परीक्षा पास करनी पड़ती है यहां तक कि अधीनस्थ न्यायालय में न्यायाधीशों को नियुक्ति के लिए परीक्षा पास कर योग्यता साबित करनी पड़ती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में नियुक्ति का कोई मापदंड नहीं है. यहां प्रचलित कसौटी है तो परिवारवाद और जातिवाद’.
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रंगनाथ पांडेय ने लिखा है कि ‘उन्हें 34 वर्ष के सेवाकाल में बड़ी संख्या में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को देखने का अवसर मिला है. जिनमें कई न्यायाधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान तक नहीं था. कई अधिवक्ताओं के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं है. कोलेजियम सदस्यों का पसंदीदा होने के आधार पर न्यायाधीश नियुक्त कर दिए जाते हैं, यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. अयोग्य न्यायाधीश होने के कारण किस प्रकार निष्पक्ष न्यायिक कार्य का निष्पादन होता होगा, यह स्वयं में विचारणीय प्रश्न है.
कोलेजियम पर गंभीर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि ‘भावी न्यायाधीशों का नाम नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ही सार्वजनिक किए जाने की परंपरा रही है. अर्थात कौन किस आधार पर चयनित हुआ है, इसका निश्चित मापदंड ज्ञात नहीं है. साथ ही प्रक्रिया को गुप्त रखने की परंपरा पारदर्शिता के सिद्धांत को झूठा सिद्ध करने जैसी है’.
रंगनाथ पांडेय ने पत्र के जरिये पीएम मोदी से कहा है कि ‘जब आपकी सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग स्थापित करने का प्रयास किया था तब पूरे देश को न्यायपालिका में पारदर्शिता की आशा जगी थी, परंतु दुर्भाग्यवश माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था. न्यायिक चयन आयोग के गठन से न्यायाधीशों में अपने पारिवारिक सदस्यों की नियुक्ति में बाधा आने की संभावना बलवती होती जा रही थी. पिछले दिनों माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का विवाद बंद कमरों से सार्वजनिक होने का प्रकरण हो, हितों के टकराव का विषय हो अथवा सुनने के बजाय चुनने के अधिकार का विषय हो, न्यायपालिका की गुणवत्ता एवं अक्षुण्णता लगातार संकट में पड़ने की स्थिति रहती है’.
खुद के बारे में उन्होंने कहा कि ‘मैं बेहद साधारण पृष्ठभूमि से अपने परिश्रम और निष्ठा के आधार पर प्रतियोगी परीक्षा में चयनित होकर पहले न्यायाधीश और अब हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त हुआ हूं. अत: आपसे अनुरोध करता हूं कि उपरोक्त विषय पर विचार करते हुए आवश्यकतानुसार न्यायसंगत और कठोर निर्णय लेकर न्यायपालिका की गरिमा पुन:स्थापित करने का प्रयास करेंगे. जिससे किसी दिन हम यह सुनकर संतुष्ट हो सकें कि एक साधारण पृष्ठभूमि से आया हुआ व्यक्ति अपनी योग्यता, परिश्रम और निष्ठा के कारण भारत का प्रधान न्यायाधीश बन पाया’.
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