बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Chunav 2025) भले ही 243 सीटों पर होने हैं, लेकिन इस बार सारी निगाहें एक ही सीट पर टिक गई हैं, मोकामा (Mokama)। यह वही सीट है, जो हमेशा सुर्खियों में रहती है, कभी बाहुबल के लिए, कभी वफादारी बदलते नेताओं के लिए और कभी जातीय समीकरणों के लिए।
लेकिन इस बार मोकामा की सियासत में जो कहानी लिखी जा रही है, वह सत्ता की नहीं, आत्मसम्मान और मूंछों की जंग की कहानी है। कहानी दो चेहरों की है,अनंत सिंह (Anant Singh) और सूरजभान सिंह (Surajbhaan Singh)। दोनों एक ही जाति के, दोनों बाहुबली छवि वाले, और दोनों की राजनीति का दायरा मोकामा की मिट्टी से जुड़ा हुआ। लेकिन अब वक्त ऐसा आया है कि यह मिट्टी इन दोनों के बीच की पुरानी दुश्मनी का सियासी अखाड़ा बन चुकी है।
पटना जिले की यह सीट हमेशा बिहार की राजनीति की नब्ज़ समझी जाती रही है। और इस बार तो मोकामा ‘हॉट सीट’ बनने जा रही है, क्योंकि यहां जो टक्कर बन रही है, वह सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि इज़्ज़त और इतिहास का हिसाब है। एक तरफ जेडीयू के टिकट पर ‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर अनंत सिंह, तो दूसरी ओर उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी और एलजेपी (रामविलास) के पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, जिनकी पत्नी वीणा देवी अब मैदान में उतरने को तैयार हैं, और वो भी आरजेडी के सिंबल पर!
यह फैसला जितना चौंकाने वाला है, उतना ही सस्पेंस से भरा हुआ। क्योंकि कुछ समय पहले तक सूरजभान सिंह लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान के खिलाफ मोर्चा खोल रहे थे। पशुपति पारस गुट के करीबी सूरजभान ने खुले मंच से कहा था कि वे चिराग को हराने के लिए अपना सब कुछ लगा देंगे। लेकिन अचानक सूरजभान सिंह ने रुख मोड़ दिया। अब वही सूरजभान, जो लालू यादव की आरजेडी के कट्टर विरोधी रहे, उसी पार्टी के सिंबल पर अपनी पत्नी को मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। सवाल उठता है, क्यों?
सियासी गलियारों में चर्चा है कि सूरजभान सिंह का यह फैसला किसी राजनीतिक डील का नतीजा नहीं, बल्कि व्यक्तिगत अपमान का जवाब है। दरअसल, कुछ समय पहले अनंत सिंह ने एक सार्वजनिक मंच पर सूरजभान सिंह पर निशाना साधते हुए उनके राजनीतिक कद और अतीत पर कड़ी टिप्पणियां की थीं। कैमरे के सामने उन्होंने जो कहा, वो न सिर्फ मोकामा बल्कि पूरे बिहार में वायरल हो गया। सूरजभान सिंह के करीबी बताते हैं, वो वीडियो उनके दिल में चुभ गया। बात राजनीति की नहीं थी, मूंछों की थी… और मूंछों की लड़ाई में सूरजभान पीछे नहीं हटते।
यही कारण है कि अब सूरजभान सिंह ने ‘छोटे सरकार’ को सीधी चुनौती देने का मन बना लिया है। कहा जा रहा है कि जैसे ही तेजस्वी यादव पटना लौटेंगे, सूरजभान सिंह बड़ा ऐलान कर सकते हैं, यानी उनकी पत्नी वीणा देवी का मोकामा से आरजेडी उम्मीदवार बनना लगभग तय है। यह टकराव आज का नहीं है। इसकी शुरुआत साल 2000 में हुई थी, जब अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह आरजेडी के टिकट पर मोकामा से चुनाव लड़ रहे थे।
तब सूरजभान सिंह ने पहली बार राजनीति में कदम रखा और दिलीप सिंह को शिकस्त देकर विधायक बने। इसके बाद 2005 में अनंत सिंह ने जेडीयू के टिकट पर जीत हासिल की और तब से मोकामा में उनका दबदबा बना हुआ है। इतना कि एक बार तो उन्होंने जेल में रहते हुए भी चुनाव जीता, और ‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर हो गए। अब 25 साल बाद वही कहानी दोबारा दोहराने की तैयारी है। फर्क बस इतना है कि इस बार सूरजभान खुद नहीं, उनकी पत्नी वीणा देवी मैदान में होंगी, लेकिन लड़ाई वही पुरानी होगी, सूरजभान बनाम अनंत।
मोकामा की सियासत में भूमिहार वोटर हमेशा निर्णायक रहे हैं। करीब 35 से 40 प्रतिशत वोटर भूमिहार समुदाय से आते हैं, जो इस सीट का सबसे बड़ा समीकरण बनाते हैं। अनंत सिंह और वीणा देवी दोनों ही इसी समुदाय से हैं, यानी वोटों का बंटवारा तय है। इस बंटवारे का सीधा फायदा तीसरे मोर्चे, यानी जन सुराज के उम्मीदवार को हो सकता है। वहीं 18-20% यादव वोटर, 20-25% कुर्मी-कोइरी-ईबीसी वोटर और 10-12% दलित-महादलित वोटर भी यहां के सत्ता समीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आरजेडी का सिंबल मिलने से वीणा देवी को यादव वोटों का मजबूत ट्रांसफर मिलने की उम्मीद है, जबकि अनंत सिंह का जातीय नेटवर्क अभी भी जेडीयू के कोर वोटर्स में गहराई तक पैठ बनाए हुए है। मोकामा की राजनीति हमेशा ‘रुतबे’ पर चलती है कौन ज्यादा दबंग, किसका जलवा ज़्यादा। यहां विकास के वादों से ज्यादा असर डालते हैं नाम, प्रभाव और पुराने रिश्ते। सूरजभान सिंह और अनंत सिंह, दोनों के पास यही तीनों चीजें हैं, और यही इस सीट को बिहार की सबसे दिलचस्प टक्कर बना देता है।
क्या सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी 25 साल पुरानी कहानी को दोहराकर छोटे सरकार को मात देंगी? या फिर अनंत सिंह अपने पुराने दुश्मन को एक बार फिर मात देकर मोकामा पर अपना दबदबा कायम रखेंगे? एक बात तय है, मोकामा 2025 की लड़ाई सिर्फ वोटों की नहीं होगी, यह दो बाहुबली भूमिहार नेताओं के ‘आत्मसम्मान’ और ‘मूंछ’ की जंग होगी।



















































