हाल ही में आई एक किताब में दावा किया गया है पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम 2012 में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के समर्थन से राष्ट्रपति पद की रेस में दोबारा शामिल होना चाह रहे थे, लेकिन जब उन्होंने देखा कि यूपीए उनका समर्थन नहीं कर रहीं तो उन्होंने खुद को इस रेस से अलग कर लिया. वहीं इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से प्रणब मुखर्जी को देश के राष्ट्रपति बने थे.
Also Read: जब जातिवाद के खात्में के लिए महंत अवैद्यनाथ ने एक दलित को बनाया था मंदिर का पुजारी
हिस्टोरियन राजमोहन गांधी ने अपनी किताब ‘मॉडर्न साउथ इंडिया: ए हिस्ट्री फ्रॉम दि सेवेन्टीन्थ सेंचुरी टु आवर टाइम्स’ में लिखा है, ‘2007 में राष्ट्रपति के तौर पर कार्यकाल खत्म होने के बाद भारत की पुरातन संस्कृति के प्रति कलाम का उत्साह, कुछ हिंदू धार्मिक संगठनों के नेताओं की खुले दिल से की गई तारीफ और भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए किए गए उनके पहले के काम ने उन्हें ‘हिंदू भारत’ का पसंदीदा मुस्लिम बना दिया.’
राजमोहन ने अपनी किताब में दावा किया कि, ‘बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक पार्टियों ने 2012 में कलाम के सामने राष्ट्रपति के तौर पर दूसरे कार्यकाल का प्रस्ताव रखा और वह तैयार भी थे, लेकिन कांग्रेस एवं उसकी सहयोगी पार्टियों को यह विचार पसंद नहीं आया. संख्याबल की कमी से वाकिफ कलाम चुनाव में खड़े नहीं हुए.’’
( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )