OPINION: मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति पर करारा प्रहार

लोकसभा चुनावों में कतिपय सीटों का लाभ होने के कारण विपक्ष ने तुष्टिकरण को अपनी प्रमुख रणनीति बना लिया है और पहले की अपेक्षा अधिक विष वमन कर रहा है। स्थिति ऐसी है कि अब ये लोग मुस्लिम अपराधियों का भी खुल कर समर्थन कर रहे हैं फिर चाहे बलात्कार का आरोपी मोइद खान हो या थाने पर हमला करने वाला शहजाद। मजहब का वोट पाने के लिए उसके अपराधों को बढ़ावा देने वाली इस अपराधिक राजनीति के बीच कुछ प्रान्तों के मुख्यमंत्री साहस दिखाते हुए, “कानून के समक्ष प्रत्येक नागरिक एक समान है” की भावना वाले निर्णय लेकर तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों को उचित उत्तर देने का प्रयास कर रहे हैं।

इसमें सर्वाधिक अग्रणी भूमिका असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा निभा रहे हैं। भारत का सीमावर्ती राज्य असम, बांग्लादेश के साथ एक लंबी खुली सीमा से जुड़ा हुआ है और बांग्लादेशी घुसपैठ व रोहिंग्या आदि के कारण विकराल समस्यायों से जूझ रहा है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने घोषणा की है कि उनकी सरकार द्वारा अगले वर्ष राज्य में जनसाख्यिंकी में बदलाव पर एक श्वेत पत्र लाया जायेगा। असम में लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से कम से कम 12 सीटों पर विजय प्राप्त करने की आशा थी किंतु उसे केवल 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था और 5 सीटें इंडी गठबंधन को मिली थीं। भाजपा द्वारा चुनाव परिणाम की समीक्षा में पता चला कि 5 जिलों की जनसांख्यिकी बदल चुकी है जहां पर मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं।

असम के मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि हमने पांच जिलों को खो दिया है और अब हम अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उसी कड़ी में मुख्यमंत्री एक के बाद एक निर्णय कर रहे हैं। असम विधानसभा के सत्र के दौरान एक विधेयक प्रस्तुत किया गया है जिसके अनुसार अब असम में मुस्लिमों की शादी और तलाक का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है। असम विधानसभा ने मुस्लिम शादी और तलाक बिल- 2024 पारित किया है जिसके साथ ही लगभग 90 साल पुराना अब असम मुस्लिम निकाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 निष्प्रभावी हो गया है। हालांकि मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि काजियों द्वारा किये गये पहले के विवाह वैध रहेंगे और नये विवाह ही इस कानून के दायरे में आयंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम मुस्लिम पर्सनल ला के तहत इस्लामी रिवाजों से होने वाली शादियों में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं।

इस विषय पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा उद्देश्य न केवल बाल विवाह को समाप्त करना अपितु समानान्तर व्यवस्था से छुटकारा पाना भी है। हम मुसलमानों के विवाह और तलाक के पंजीकरण को सरकारी प्रणाली के अंतर्गत लाना चाहते हैं। नये कानून से बाल विवाह पर भी रोक लगेगी और वैसे भी बाल विवाह पूरी तरह से गैरकानूनी है। ज्ञातव्य है कि असम में आज भी बाल विवाह की कुप्रथा जारी है। पूर्व के कानून की आड़ में बांग्लादेशी घुसपैठिये व स्थानीय मुसलमान असम की बच्चियों का जबरन व धोखे से निकाह करवा रहे हैं।अब नये कानून से इसकी कुछ रोकथाम अवश्य होगी।

असम की सरकार व विधानसभा ने हर शुक्रवार जुमे की नमाज के लिए राज्य में मुसलमानों को मिलने वाले ब्रेक को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है।असम के मुख्यमंत्री ने इस कदम की घोषणा करते हुए कहा कि इस तरह का नियम बनाना मुस्लिम लीग की सोच थी, हमने 90 साल बाद गुलामी की मानसिकता के प्रतीक उपनिवेशवाद के बोझ को अब समाप्त कर दिया ह। मुख्यमंत्री का कहना है कि हमने असम विधानसभा में उत्पादकता को प्राथमिकता दी है। असम विधानसभा में नमाज के लिए अवकाश की प्रथा मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला ने 1937 में प्रारम्भ की थी। मुख्यमंत्री ने इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए विधानसभा अध्यक्ष बिस्वजीत दैमारी और विधायकों के प्रति आभार व्यक्त किया।

असम सरकार के निर्णय पर मुस्लिम संगठन व इंडी गठबंधन के नेता असम सरकार व भाजपा पर हमलावर हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी हो या फिर बहुजन समाजवादी पार्टी सभी बौखला गए हैं, बिहार के विपक्षी दलों के नेता भी पीछे नहीं है क्योंकि मुस्लिम तुष्टिकरण का कार्ड तो सभी खेलते हैं। सबसे चर्चित व खतरनाक बयान बिहार के राजद नेता तेजस्वी यादव का रहा। तेजस्वी यादव ने असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा को उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चाइनीज वर्जन करार दिया। तेजस्वी यादव ने इस नस्लवादी टिप्प्पणी से पूर्वोत्तर राज्यों के प्रति अपनी व इंडी गठबंधन के दूसरे नेताओं मानसिकता का ही प्रदर्शन किया है। तेजस्वी का असम के मुख्यमंत्री को लेकर दिया गया बयान राहुल गांधी के तथाकथित गुरु सैम पित्रोदा के बयान को ही आगे बढ़ा रहा है। विपक्ष का कहना है कि भाजपा सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए मुसलमानों पर निशाना साध रही है और उन्हें जानबूझकर परेशान किया जा रहा है। विपक्ष यह भी आरोप लगा रहा है कि चूँकि असम के मुख्यमंत्री कांग्रेस से आए हैं इसलिए वो संघ के निकट आने के लिए यह सब नाटक कर रहे हैं।

जबकि वास्तविकता ये है कि सभी पूर्वोत्तर बांग्लादेशी रोहिंग्याओं की घुसपैठ व चर्च द्वारा प्रेरित मतांतरण के प्रयास से बुरी तरह से त्रस्त हैं और रही सही कसर कांग्रेस व मुस्लिम लीग आदि की मुस्लिम तुष्टिकरण की विकृत राजनीति पूरी करती रही है। असम का जनसांख्यिकीय संतुलन तीव्रता से बिगड़ रहा है और राज्य को पहली बार ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जो असम की संस्कृति का अस्तित्व बचाने के लिए साहस दिखा रहा है।

विरोधियों को बताना चाहिए कि जुमे की नमाज पर अवकाश रद्द होना संविधान का उल्लंघन कैसे हो गया ? भारत का संविधान तो स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात लागू हुआ है जबकि 1937 में तो भारत पर अंग्रेजों की ही मानसिकता चल रही थी। संविधान का उल्लंघन तो विपक्ष कर रहा है।अब जब भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं तो देश में गुलामी की मानसिकता वाले कानून आखिर क्यों जीवित रहें? कांग्रेस व इंडी गठबंधन के नेताओं ने जिस प्रकार से असम सरकार के फैसलों का विरोध किया वह उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की मानसिकता ही है इससे यह भी साबित होता है कि हिंदुओं की जनसंख्या में तीव्रता से जो कमी आ रही है उसके पीछे भी कांग्रेस व इंडी गठबंधन की ही नीतियां हैं।

( मृत्युंजय दीक्षित, लेखक राजनीतिक जानकार व स्तंभकार हैं.)

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