उत्तर प्रदेश के एक और बाहुबली हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) पर शिकंजा कसता नजर आ रहा है. उनके बेटे और बसपा विधायक विनय शंकर तिवारी (BSP MLA Vinay Tiwari) की कंपनी से जुड़े मामले में सीबीआई ने ताबड़तोड़ छापेमारी की है. यह छापे लखनऊ, गोरखपुर, नोएडा समेत कई ठिकानों पर हुए हैं. सीबीआई ने चिल्लूपार से बसपा विधायक विधायक विनय शंकर तिवारी और उनकी पत्नी रीता तिवारी के खिलाफ केस दर्ज किया है. सीबीआई ने नई दिल्ली के बैंकों के करीब 1500 करोड़ रुपये हड़पने के मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है. बता दें कि इस मामले में आईटी डिपार्टमेंट ने भी कुछ समय पहले समन दिया था.
विधायक के कई ठिकानों पर छोपमारी
चिल्लूपार से बसपा विधायक विनय शंकर तिवारी से जुड़ी फर्म गंगोत्री इंटरप्राइजेज, मैसर्स रॉयल एंपायर मार्केटिंग लिमिटेड, मैसर्स कंदर्प होटल प्राइवेट लिमिटेड के ठिकानों पर छापेमारी की गई है. हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी के कई फर्मों पर कई बैंकों के करीब 1500 करोड़ रुपये हड़पने का आरोप है.
बता दें कि इस मामले में आईटी डिपार्टमेंट ने भी कुछ समय पहले समन दिया था. सीबीआई की टीम ने सोमवार को 1500 करोड़ के बैंक लोन घोटाले के मामले में लखनऊ, गोरखपुर और नोएडा में स्थित गंगोत्री इंटरप्राइजेज समेत अन्य फर्मों के ठिकानों पर छापेमारी की. कंपनी के ऑफिस पहुंची सीबीआई टीम ने घंटों दस्तावेज खंगाले और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की.
बताया जा रहा है कि हरिशंकर तिवारी की कई कंपनियों ने राष्ट्रीय बैंकों से लोन लिया था. इसके बाद गंगोत्री इंटरप्राइजेज ने लोन की रकम को समय से वापस नहीं किया. बैंकों का आरोप है कि लोन की रकम को दूसरी जगह निवेश किया गया. जिसके बाद बैंक ने इसकी शिकायत की. इस पर सीबीआई ने सोमवार को कंपनी के कई ठिकानों पर छापेमारी की.
कौन हैं हरिशंकर तिवारी?
आठवें दशक की बात है, पूर्वी यूपी में बाहुबल सियासत के रास्ते खोल रहा था. कई बड़े माफिया गिरोह यहां पैर पसार चुके थे. इसी गिरोहबंद राजनीति के बीच हरिशंकर ने राजनीति का रास्ता पकड़ा. शुरुआती पराजय का स्वाद चखने के बाद 1985 में हरिशंकर चिल्लूपार से विधायक बने। इसके बाद यह सीट तिवारी के नाम से जानी जाने लगी. तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह के तमाम प्रयास के बावजूद चिल्लूपार से तिवारी की जड़ें नहीं उखड़ीं. वह 1989,91,93,96 और 2002 में यहीं से जीते. इसी सीट के दम पर हरिशंकर राज्य के मंत्री बने, लेकिन लोकतंत्र पिछले आंकड़ों से नहीं चलता.
विनय तिवारी का राजनतिक सफर
2007 में राजेश त्रिपाठी को बीएसपी ने टिकट दिया. पहले इस सीट पर श्यामलाल यादव बीएसपी से लड़ते थे. यादव टक्कर तो देते लेकिन जीत नहीं पाते. स्थानीय पत्रकार से नेता बने राजेश त्रिपाठी को भी बहुत गंभीरता से नहीं लिया गया, लेकिन जब मतपेटियां खुलीं तो परिणाम बदल चुका था. हरिशंकर अपनी सीट गंवा चुके थे. पहली बार जीते राजेश को इसका इनाम भी मिला और मायावती ने उन्हें मंत्री बनाया. 2012 में राजेश फिर जीते. 2017 में जब बीएसपी का टिकट राजेश ने अपने विरोधी हरिशंकर तिवारी परिवार में जाते देखा तो उन्होंने बगावत कर दी और बीजेपी में शामिल हो गए. बीएसपी ने हरिशंकर के बेटे विनय तिवारी को चिल्लूपार से टिकट दिया और वह चुनाव जीत गए.
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