गोकुल में ऐतिहासिक और पारंपरिक छड़ीमार होली का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु पहुंचे। ब्रज की इस अनूठी होली को देखने और इसमें भाग लेने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। पूरे गोकुल में रंगों की फुहार और श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा।
क्या है छड़ीमार होली की परंपरा?
गोकुल में खेली जाने वाली छड़ीमार होली का संबंध भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल से है। मान्यता है कि जब कान्हा अपनी सखाओं के साथ नंदगांव और गोकुल में होली खेलने जाते थे, तो गोपियां उनसे छेड़छाड़ करती थीं। जब श्रीकृष्ण और उनके साथी अधिक शरारत करने लगते, तो गोपियां उन्हें बांस की छड़ियों (छड़ी) से हल्के-फुल्के प्रहार कर उन्हें भगातीं। इसी परंपरा को आज भी छड़ीमार होली के रूप में जीवंत किया जाता है।
इस वर्ष छड़ीमार होली का आयोजन रमणरेती क्षेत्र में हुआ, जहां श्रद्धालुओं ने अबीर-गुलाल उड़ाते हुए “राधे-राधे” और “श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी” के जयकारों से पूरा माहौल भक्तिमय बना दिया। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना के बाद होली का रंगारंग उत्सव शुरू हुआ। गोपियों के स्वरूप में सजी महिलाएं हाथों में बांस की छड़ियां लिए खड़ी रहीं, जबकि श्रद्धालु और कृष्ण-भक्त हंसी-ठिठोली के बीच इस अनूठी होली में शामिल हुए।
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देशभर से श्रद्धालु इस अद्भुत परंपरा का हिस्सा बनने पहुंचे। कई विदेशी भक्त भी ब्रज की इस विशेष होली को देखने आए। छड़ीमार होली का उत्सव देखते ही बनता था—हर कोई रंगों में सराबोर, भक्ति में डूबा नजर आया। सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस प्रशासन ने भी विशेष इंतजाम किए थे, जिससे श्रद्धालु बिना किसी परेशानी के इस आयोजन का आनंद ले सकें।
गोकुल की छड़ीमार होली के अलावा ब्रज क्षेत्र में बरसाना की लट्ठमार होली, वृंदावन की फूलों की होली और मथुरा की रंगभरी होली भी प्रसिद्ध हैं। हर स्थान की होली का अलग रंग और महत्व है, जिसे देखने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु ब्रजभूमि की ओर खिंचे चले आते हैं।इस पावन अवसर पर ब्रजवासियों और श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की भक्ति में डूबकर रंगों के इस अद्भुत पर्व का आनंद लिया।
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