पुलिस दूरसंचार विभाग के हेड कांस्टेबल व सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) सरकार की गलती का खामियाजा भुगत रहे हैं. प्रदेश भर में दूरसंचार विभाग के करीब 200 हेड कांस्टेबल व एएसआई को अपने ही समकक्ष राजस्थान पुलिस के सामान्य पुलिस विभाग के हेड कांस्टेबल व एएसआई से 8 हजार से 12 हजार रूपये प्रतिमाह वेतन कम मिल रहा है. यानी कि समान पद होने के बावजूद अलग-अलग वेतन मिल रहा है. गौर करने वाली बात यह है कि सरकार द्वारा गठित वेतन विसंगति निवारण समिति भी इस ओर ध्यान देने के बजाय सिर्फ टाइम पास कर रही है और सरकार उसका बार-बार कार्यकाल बढ़ा रही है.
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सामान वेतन की विसंगति आज भी नहीं सुधरी
गौरतलब है कि राजस्थान में जारी हुए छठे वेतन आयोग की अधिसूचना के अनुसार पुलिस विभाग में सामान्य पुलिस सेवा एवं पुलिस दूरसंचार सेवा के कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल व एएसआई का पद के हिसाब से वेतन भी समान था. लेकिन 30 अक्टूबर 2017 को जारी सातवें वेतन आयोग की अधिसूचना में सामान्य पुलिस के हेड कांस्टेबल का पे मैट्रिक्स लेवल-8 करते हुए ग्रेड-पे 2800 कर दिए. दूरसंचार विभाग के हेड कांस्टेबल का पे मैट्रिक्स लेवल-6 करके ग्रेड-पे 2400 ही रखा. जबकि कांस्टेबल का ग्रेड-पे भी 2400 रखा. इसी प्रकार सामान्य पुलिस के एएसआई का लेवल-10 करके ग्रेड-पे 3600 कर दिया. जबकि दूरसंचार विभाग के एएसआई का लेवल-8 करके ग्रेड-पे 2800 ही किया. यहीं से विसंगति पैदा हो गई जो आज तक नहीं सुधर पाई है.
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15 माह बाद भी नहीं मिला लाभ
पुलिस दूरसंचार विभाग के हेड कांस्टेबल व एएसआई को सातवां वेतन आयोग लागू होने के 15 माह बाद भी छठे वेतन आयोग का वेतन मिल रहा है. मतलब कि दोनों पदों के कार्मिकों को हर माह 8 से 12 हजार तक नुकसान झेलना पड़ रहा है.
समिति का छठी बार बढ़ाया कार्यकाल
सातवें वेतन आयोग को लागू करने में रही विसंगतियों को दूर करने के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित वेतन विसंगति निवारण समिति का कार्यकाल बार-बार बढ़ाया जा रहा है. डीसी सामंत की अध्यक्षता वाली कमेटी का कार्यकाल बार-बार बढ़ाने से पीड़ित कर्मचारियों में रोष व्याप्त हो रहा है. सरकार ने जनवरी 2019 में कमेटी का कार्यकाल 30 जून 2019 तक बढ़ा दिया है. गौरतलब है कि 31 दिसंबर 2018 को कमेटी का कार्यकाल पूरा हो गया था. 6 बार कार्यकाल बढ़ाने के बावजूद कमेटी ने कोई निर्णय नहीं लिया है.
अधिकारी भी लिख चुके हैं कई पत्र
समकक्ष पदों के बावजूद अलग-अलग वेतन मिलने पर पीड़ित पुलिसकर्मियों ने जब विभागीय अधिकारियों के समक्ष अपनी पीड़ा रखी तो सबसे पहले 15 नवंबर 2017 को पुलिस मुख्यालय राजस्थान जयपुर के वित्तीय सलाहकार आलोक माथुर ने गृह विभाग के संयुक्त शासन सचिव को पत्र लिखकर पूरी जानकारी दी तथा वेतन विसंगति दूर करने को कहा. इसके बाद गृह विभाग के तत्कालीन संयुक्त शासन सचिव कालूराम ने वेतन विसंगति निवारण समिति के सदस्य सचिव को पत्र लिखकर वेतन विसंगति दूर करने को कहा था. फिर भी समस्या का निस्तारण नहीं हुआ तो 12 मार्च 2018 को तत्कालीन डीजीपी ओपी मल्होत्रा ने अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक उप्रेती को पत्र लिखकर बताया कि इस वेतन विसंगति से पुलिस दूरसंचार के प्रभावित कार्मिकों के मनोबल पर विपरीत असर पड़ रहा है, इसलिए इसे प्राथमिक से परीक्षण करवा कर आवश्यक कार्रवाई करें. इसके बाद 31 अगस्त 2018 को राजस्थान पुलिस के दूरसंचार एवं तकनीकी अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस सुनील दत्त ने गृह विभाग के शासन सचिव को पत्र लिखकर पूरी प्रक्रिया समझाते हुए वेतन विसंगति दूर करवाने के लिए कहा. इसके बावजूद भी स्थिति जस की तश बनी हुई है.
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तो क्या आंदोलन करने वालों की ही सुनेगी सरकार?
सामान्य तौर पर वेतन विसंगति सहित अन्य मांगों को लेकर बहुसंख्यक कर्मचारी आंदोलन करते हैं और मांग पूरी न होने पर ज्ञापन से लेकर हड़ताल और धरने प्रदर्शन किए जाते हैं. इसके बाद सरकार झट से उनकी मांग पूरी कर देती है. यहां मामला पुलिस विभाग से जुड़ा होने के कारण पुलिसकर्मी ना तो धरना प्रदर्शन कर सकते हैं और ना ही हड़ताल या आंदोलन कर सकते हैं. इसी का परिणाम है कि 15 महीने बीतने के बावजूद हेड कांस्टेबल व एएसआई की सुनवाई नहीं हो रही है. जबकि सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों में तुरंत समाधान कर पीड़ित कार्मिकों को पूरा वेतन दिया जाए. ताकि वह अपनी ड्यूटी पूरी मुस्तैदी से कर सके.
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