आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) 10 जुलाई को है. इस दिन चातुर्मास शुरु होता है. भगवान विष्णु योग निद्रा में चार माह रहते हैं. इस वजह से कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होता है. हालांकि इन चार माह में आप भगवान विष्णु की पूजा और व्रत कर सकते हैं. इस पर कोई पाबंदी नहीं होती है. चातुर्मास (Chaturmas) प्रारंभ होने से विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि जैसे कार्य बंद हो जाएंगे. इस माह में भगवान शिव की आराधना होगी. वे चातुर्मास में पालक और संहारक दोनों ही भूमिकाओं में रहेंगे.
देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त (Devshayani Ekadashi 2022 shubh muhurat)
देवशयनी एकादशी रविवार, जुलाई 10, 2022 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ – जुलाई 09, 2022 को शाम 04 बजकर 39 मिनट पर शुरू
एकादशी तिथि समाप्त – जुलाई 10, 2022 को शाम 02 बजकर 13 मिनट पर खत्म
पारण तिथि- 11 जुलाई, सुबह 05 बजकर 56 मिनट से 08 बजकर 36 मिनट तक
देवशयनी एकादशी पर करें ये महाउपाय (Devshayani Ekadashi Mahaupay)
आप देवशयनी एकादशी और चतुर्मास के दौरान घर में सुख समृद्धि लाने के लिए कुछ उपाय कर सकते हैं. आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में-
आर्थिक तंगी दूर करने का महाउपाय- आर्थिक तंगी दूर करने के लिए देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का केसर मिले हुए दूध से अभिषेक करें. इसके साथ ही भगवान विष्णु से प्रार्थना करें कि आपके जीवन से सभी आर्थिक समस्याएं दूर हो जाएं.
स्वास्थ्य के लिए- एकदाशी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें. ऐसा करने से आपका स्वास्थ्य बेहतर होता है साथ ही अगर आपके घर में कोई बीमार रहता है तो इस महाउपाय को करने से आपको काफी फायदा मिलेगा.
पापों से मुक्ति पाने के लिए- इसके लिए देवशयनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें. नहाने के पानी में थोड़ा सा आंवले का रस मिलाएं और इस पानी से स्नान करें. इससे आपको पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
सौभाग्य प्राप्ति के लिए- इसके लिए देवशयनी एकादशी के दिन व्रत जरूर रखें और भगवान विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. साथ ही इस दिन ब्राह्मणों को दान जरूर दें.
देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा विधि
1. व्रत के दिन सुबह स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा का संकल्प करें. इसके लिए आप हाथ में जल, अक्षत् और फूल लेकर संकल्प करें.
2. प्रात: से ही रवि योग है. ऐसे में आप प्रात: स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा कर सकते हैं. इसके लिए भगवान विष्णु की शयन मुद्रा वाली तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें क्योंकि यह उनके शयन की एकादशी है.
3. अब आप भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, चंदन, अक्षत्, पान का पत्ता, सुपारी, तुलसी के पत्ते, पंचामृत आदि अर्पित करें. इस दौरान ओम भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते रहें.
4. फिर माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें. उसके पश्चात विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और देवशयनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें. पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती से करें.
5. दिनभर फलाहार पर रहें. भगवत वंदना और भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करें. संध्या आरती के बाद रात्रि जागरण करें.
6. अगली सुबह स्नान के बाद पूजन करें. किसी ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र और दक्षिण देकर संतुष्ट करें.
7. इसे पश्चात पारण समय में पारण करके व्रत को पूरा करें. इस प्रकार से देवशयनी एकादशी को करना चाहिए.
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण जी से आषाढ़ शुक्ल एकादशी व्रत के महत्व को बताने को कहा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इसे देवशयनी एकादशी के नाम से जानते हैं. एक बार नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से आषाढ़ शुक्ल एकादशी के महत्व और विधि के बारे में पूछा था. वह कथा तुम्हें बताते हैं.
नारद जी के पूछने पर ब्रह्मा जी ने कहा कि नारद, तुमने मनुष्यों के उद्धार के लिए अच्छा प्रश्न किया है. इस व्रत को पद्मा एकादशी भी कहते हैं. इस व्रत को करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं. इसकी कथा इस प्रकार से है—
सूर्यवंश में एक महान प्रतापी राजा मांधाता हुए, जो एक चक्रवती राजा थे. वह अपनी प्रजा का पूरा देखभाल करते थे. उनका राज्य धन धान्य से परिपूर्ण था. उनके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा था. एक समय की बात है. लगातार तीन साल तक बारिश नहीं हुई और अकाल पड़ गया. अकाल के कारण उनकी प्रजा काफी कष्ट में रह रही थी, वे सभी दुखी थे. अन्न और धान्य की कमी के कारण यज्ञ जैसे धार्मिक कार्य भी बंद हो गए.
प्रजा परेशान होकर राजा के दरबार में पहुंची और कहा कि हे राजन! इस अकाल से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है. बारिश के अभाव में अकाल पड़ गई है. इस वजह से मनुष्य भी मर रहे हैं. इसका कुछ उपाय खोजना होगा. राजा ने कहा कि ठीक है. वे एक दिन अपने कुछ सैनिकों के साथ जंगल में गए और अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और ऋषि को प्रणाम किया. ऋषि ने आने का कारण पूछा, तो राजा ने सबकुछ बताया.
तब अंगिरा ऋषि ने राजा मांधाता को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत करने को कहा. इसे व्रत को करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. तुम अपने सभी मंत्रियों और प्रजा के साथ इस व्रत को करो. समस्या का समाधान हो जाएगा. ऋषि अंगीरा के सुझाव के अनुसार ही राजा मांधाता ने पूरी प्रजा के साथ देवशयनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया. उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई. अकाल से मुक्ति मिली और फिर से राज्य धन-धान्य से संपन्न हो गया. देवशयनी एकादशी व्रत के कथा को सुनने से समस्त पापों का नाश होता है. इस व्रत को करने से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है
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