मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। दिशा छात्र संगठन द्वारा आज ‘अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पर गोरखपुर विश्व विद्यालय के विवेकानन्द लॉन में ‘अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस और स्त्री मुक्ति आन्दोलन की दिशा’ पर परिचर्चा रखी गयी। दिशा छात्र संगठन के अंबरीश ने बताया कि 8 मार्च को याद करने का मतलब स्त्री मुक्ति आन्दोलन को नए सिरे से संगठित करने से है।
Also Read IND Vs NZ Final: ‘रोहित शर्मा टॉस न जीते तो बेहतर…’, अश्विन ने क्यों दी ये दिलचस्प सलाह?
दिशा छात्र संगठन के प्रसेन ने बताया कि –“वर्तमान समय में स्त्रियों के दोयम दर्जे की स्थिति और उत्पीड़न का कारण मुट्ठीभर धनपशुओं के मुनाफ़े की हवस पर टिकी मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था है। इस व्यवस्था ने न केवल स्त्रियों के श्रम को सस्ते बिकाऊ माल में तब्दील कर दिया है बल्कि स्त्री के पूरे वजूद को उपभोग की सामग्री में बदल डाला है। इस व्यवस्था ने न केवल पुरातन स्त्री विरोधी मूल्यों-मान्यताओं को अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपना लिया है बल्कि स्त्रियों की मुक्ति के सपनों को बाज़ार की चकाचौंध में गुमराह कर दिया है। 1990-91 से जारी नयी आर्थिक नीतियों के परिणामस्वरूप ‘खाओ-पियो, ऐश करो’ की संस्कृति में लिप्त एक बर्बर किस्म का नव धनाढ्य वर्ग पैदा हुआ है, जिसे लगता है कि वह पैसे के बल पर सबकुछ ख़रीद सकता है। पूँजीवादी लोभ लालच और भोगवाद की संस्कृति ने स्त्रियों को एक ‘कमोडिटी’ बना दिया है और पैसे के नशे में चूर इस वर्ग के भीतर उस ‘माल’ के उपभोग की उन्मादी हवस भर दी है। इन्हीं लुटेरी नीतियों ने एक आवारा, लम्पट पतित वर्ग भी पैदा किया है जो पूँजीवादी अमानवीकरण की सभी हदों को पार कर गया है। फ़ासीवादी भाजपा के सत्तारोहण के बाद बीमार व रुग्ण पितृसत्तात्मक सोच को और खुराक़ मिल रही है।
दूसरे, पूँजीपोषित स्त्री-विरोधी मूल्य-मान्यतायें पूँजीवादी मशीनरी के हर खम्भे में जड़ जमाये पैठी हुई हैं। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक़ मौजूदा विधायकों-सांसदों में से 151 पर स्त्री-उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज है। जिसमें सबसे ज़्यादा भाजपा के हैं। अभी केरल में यौन उत्पीड़न के एक मुकदमे में जज का बयान था-“कि यौन उत्पीड़न का आरोप टिक नहीं पाएगा क्योंकि शिकायतकर्ता ने यौन उत्तेजक तरीके से कपड़े पहने थे।” थानों में मेहनतकश स्त्रियों के एफआईआर तक दर्ज नहीं होते उल्टे थानों में यौन उत्पीड़न के बहुत से मामले सामने आ चुके हैं। कुल मिलाकर, इस मशीनरी के अलग-अलग हिस्सों से स्त्रियाँ किसी न्याय की उम्मीद कैसे कर सकती हैं?
Also Read औरंगजेब की कब्र विवाद: मुख्यमंत्री फडणवीस बोले – कानून के दायरे में होगा निर्णय
तीसरा, हमारे देश में पूँजीवादी लोकतन्त्र पुनर्जागरण, प्रबोधन और क्रान्ति के रास्ते स्थापित नहीं हुआ। इस कारण हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने में जनवादी मूल्यों का बहुत गहरा अभाव है। पूँजीवाद के वर्तमान पतनशील दौर में न केवल नयी विकृतियों को जन्म दिया है बल्कि बहुत से पुराने मूल्यों-संस्थाओं को पूँजीवादी राजनीति ने अपना लिया है। फ़ासीवादी ताकतों ने पुरातनपंथी स्त्री-विरोधी सोच और संस्थाओं को समाज में नए सिरे से खाद-पानी देने का काम किया है। बलात्कारी बाबाओं से लेकर खाप पंचायतों द्वारा स्त्री विरोधी विचारों की उल्टी की जाती रहती है लेकिन इनके मठों और दरबारों में आम स्त्रियों की मौजूदगी बनी रहती है। स्त्री विरोधी अपराधों पर स्त्रियों के कपड़े, मोबाइल इस्तेमाल करने, दोस्त बनाने आदि को ही ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है। जबकि पेशा, पोशाक और जीवनसाथी चुनने जैसे निर्णयों की आज़ादी दुनिया के बहुतेरे देशों में बहुत पहले ही हासिल कर ली गयी थी। बहुत-सी लड़कियाँ घर से कॉलेज तक परिजनों द्वारा जाने देने को ही परिजनों की उदारता या आधुनिकता मानती हैं। स्त्रियों को यह बात समझनी होगी कि जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्हें बराबरी का हक़ ‘देने’ का अधिकार किसी को नहीं है, बल्कि यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है।”
दिशा छात्र संगठन की प्रीति ने कहा कि- “वास्तव में, स्त्रियों को अपनी वास्तविक मुक्ति के लिए अभी एक लम्बी लड़ाई लड़नी है। स्त्री-मुक्ति का रास्ता ‘स्त्री के लिए केवल स्त्री बोलेगी’ या इस पूँजीवादी पितृसत्ता को दुश्मन मानने की जगह ‘पुरुषों को दुश्मन’ मानने की अस्मितावादी राजनीति या इसी पूँजीवादी व्यवस्था में अपने लिए आज़ादी का कोई ‘टापू’ बना लेने की तरफ़ से होकर नहीं जाता। हमें अपने उत्पीड़न के विरुद्ध पूँजीवादी मशीनरी के भरोसे रहने की बजाय तात्कालिक तौर पर गलियों-मुहल्लों, गाँवों-कस्बों-शहरों में अपने संगठन, जुझारू दस्ते बनाने होंगे। हमें यह बात याद रखनी होगी कि पितृसत्ता से मुक्ति बिना पूँजीवाद के ख़ात्मे के बग़ैर उसी तरह सम्भव नहीं है, जिस तरह स्त्री-मुक्ति संघर्ष संगठित किये बग़ैर पूँजीवाद का ख़ात्मा सम्भव नहीं है। इससे बहुत साफ़ है कि स्त्री-मुक्ति आन्दोलन को मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा सभी शोषितों-उत्पीड़ितों के संघर्ष से जोड़ना होगा। यह मानवद्रोही व्यवस्था इन सभी की साझा दुश्मन है। हमें क्रान्तिकारी बदलाव के रणक्षेत्र में उतरना होगा। क्लारा जेटकिन, रोजा लक्ज़ेमबर्ग, सावित्रीबाई फुले-फ़ातिमा शेख, दुर्गा भाभी, प्रीतिलता बाडेदार जैसी बहादुर स्त्रियों से प्रेरणा लेनी होगी।”
Also Read एम्स गोरखपुर द्वारा जन औषधि दिवस सप्ताह समारोह के समापन दिवस पर पैनल चर्चा का हुआ आयोजन
कार्यक्रम का समापन ‘महिलायें गर उठी नहीं तो ज़ुल्म बढ़ता जाएगा’ क्रान्तिकारी गीत से किया गया। कार्यक्रम में दीपक, निधि, दीपांश, रिया, विनय, अनुष्का, प्रीति गुप्ता, मनीष, आकाश, शेषनाथ, आँचल कुमारी, मनीषा पाल, गीतांजलि, प्रिया गौड़, संध्या चौरसिया, अविनाश, रूपेश, पवन, राम आशीष, संदीप, अनूप, रामू आदि शामिल रहे।
देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं