अक्सर पुलिस विभाग में कुछ ना कुछ ऐसा होता रहता है, जो लोगों को आश्चर्य में डाल देता है। मामला ग्वालियर का है, जहां एक डीएसपी जब गरीबों को खाना दे रहे थे, तो उन्हीं लोगों में एक कचरा बीनने वाला डीएसपी का साथी निकला। दरअसल, यह कचरा बटोरने वाली व्यक्ति एक शानदार पुलिसकर्मी ही नहीं, बल्कि शार्प शूटर हुआ करता था। वह ग्वालियर के झांसी रोड इलाके में सालों से सड़कों पर लावारिस घूमता पाया गया। आइए आपको भी बताते हैं क्या है पूरा मामला।
ये है मामला
जानकारी के मुताबिक, 10 नवंबर चुनाव की मतगणना की रात 1:30 बजे जब सुरक्षा व्यवस्था में तैनात डीएसपी रत्नेश तोमर और डीएसपी विजय भदौरिया सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे और कचरे में खाना ढूंढ रहे भिखारी को देखते है तो एक अधिकारी जूते और दूसरा अपनी जैकेट दे देता है। जब दोनों वहां से जाने लगते है तो भिखारी डीएसपी को नाम से आवाज लगाता है। अचंभित होकर जब पलट कर गौर से भिखारी को पहचानते हैं तो वह खुद भी हैरान रह गए क्योंकि भिखारी उनके साथ के बैच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा था।
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मनीष पिछले 10 बरसों से सड़कों पर लावारिस घूम रहे थे। इनकी मानसिक संतुलन भी काफी बिगड़ गया है। सन 1999 बैच के सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा अचूक निशानेबाज थे। वह थानेदार भी रहे। मनीष मिश्रा कभी इस हाल में पहुंच जाएंगे, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। डीएसपी रत्नेश तोमर और डीएसपी विजय भदौरिया ने काफी देर तक मनीष मिश्रा से पुराने दिनों की बातें कीं। अपने साथ ले जाने की जिद की लेकिन वह राजी नहीं हुए। आखिर में एक एनजीओ के जरिए मनीष मिश्रा को आश्रम भिजवा दिया गया।
परिवार में हैं ये लोग
मनीष मिश्रा के परिवार की बात की जाए तो उनके भाई भी टीआई हैं। पिता व चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं। चचेरी बहन दूतावास में पदस्थ है और मनीष मिश्रा ने खुद 2005 तक नौकरी की है। आखिरी समय तक वह दतिया जिले में पदस्थ रहे इसके बाद मानसिक संतुलन खो बैठे। पत्नी से उनका तलाक हो चुका है जो न्यायिक सेवा में पदस्थ है।
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