उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में इंसेफ्लाइटिस से होने वाली मौतों का दशकों पुराना इतिहास रहा है. इस दौरान कई सरकारें आईं लेकिन स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. वर्तमान योगी सरकार इंसेफ्लाइटिस को लेकर विपक्ष के खूब निशाने पर आई लेकिन योगी सरकार ने अपने 18 महीने के कार्यकाल के दौरान अंततः इंसेफ्लाइटिस पर एक बड़ी जीत पायी है.
मौत की संख्या हुई घटकर आधी
आंकड़ो की माने तो इंसेफ्लाइटिस से होने वाली मौतें पिछले एक साल में घट कर आधी और गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में महज 7 फ़ीसदी रह गई हैं, तो यह सब केवल सरकारी अभियानों की बदौलत नहीं हुआ है. इसके पीछे वास्तव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘पेशेंट ऑडिट’ का वह फार्मूला है, जो एक वर्ष में गेमचेंजर बन गया है. दो दशक से बीमारी और इलाज को नजदीक से देख रहे योगी ने इसे सख्ती से लागू किया तो वर्ष भर में नतीजे भी सामने आ गए.
बीआरडी में मरीजों की संख्या 400 से 80 रह गयी
योगी आदित्यनाथ ने सीजन की शुरुआत में ही प्रभावित जिलों के अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि गांवों से सीधे कोई मरीज बीआरडी कॉलेज आया तो यही माना जाएगा कि वहां पीएचसी, सीएचसी या जिला अस्पताल में इलाज नहीं किया गया. मरीजों को बीआरडी कॉलेज रेफर करने वाले डॉक्टरों से भी पेशेंट ऑडिट के तहत मरीज भेजने का कारण पूछने शुरू कर दिए गए. हर मरीज के ऐसे ऑडिट ने नीचे तक पूरे तंत्र को सक्रिय कर दिया. यही वजह रही कि बीते वर्ष अगस्त में बीआरडी कॉलेज गोरखपुर पहुंचे 400 मरीजों की संख्या इस बार घटकर केवल 80 रह गई, जबकि अगस्त में मौतों की संख्या भी एक वर्ष में 86 से घटकर 6 पर आ गई.
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एक साल पहले तक पूर्वांचल के 38 जिलों और पड़ोसी राज्य बिहार से लेकर पड़ोसी देश नेपाल तक के लोगों को इंसेफ्लाइटिस के उपचार के लिए गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के सिवा कोई और ठिकाना नहीं दिखता था. बीआरडी कॉलेज में एक-एक बिस्तर पर चार-चार बच्चे भर्ती किए जाते थे, फिर भी सबको बेड नहीं मिल पाता था. ऐसी हालात की ही वजह से 2016 में बीआरडी कॉलेज में इंसेफ्लाइटिस के 4353 मामलों में जहां 715 मौतें हुई थीं, वहीं पिछले साल 2017 में भर्ती हुए 5400 मरीजों में मौत का आंकड़ा 748 तक पहुंच गया था.
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योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद इंसेफ्लाइटिस के उपचार के लिए उन्होंने जहां अन्य केंद्र तैयार कर वैकल्पिक ढांचा तैयार कराया, वहीं पेशेंट ऑडिट का फार्मूला लागू कर मरीजों को सीधे बीआरडी कॉलेज गोरखपुर आने से रोक दिया गया. बीआरडी कॉलेज से बाहर तैयार किए गए केंद्रों ने भी जिम्मेदारी निभाई. यही वजह रही कि प्रदेश में इस वर्ष सभी मामलों को मिलाकर भी मरीजों और मौत के आंकड़े बीते वर्षो से खासे कम नजर आ रहे हैं.
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टीम वर्क ने का भी रहा योगदान
ऐसा पहली बार हुआ कि जब इंसेफ्लाइटिस के बुखार पर वार के स्लोगन के साथ स्वास्थ्य विभाग के साथ पांच अन्य विभागों की टीम एकजुट थी. चिकित्सा शिक्षा, महिला कल्याण, बाल विकास, पंचायती राज व नगर विकास विभाग की टीमों ने मिलकर पेयजल से लेकर स्वच्छता, टीकाकरण व जागरूकता के ऐसे कार्यक्रम चलाये, जिसका असर अस्पताल से लेकर गांवों की जमीन तक महसूस होने लगा है.
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