दहेज़ की आग में जली एक और ज़िन्दगी, दो साल की मासूम पूछ रही कहाँ हैं माँ

नोएडा। सामज कितने भी बदलाव नए पन का चोला पहन ले लेकिन समय-समय पर उसकी असलियत सामने आ ही जाती है. दहेज़प्रथा समाज के लिए वो अभिशाप है जो आज भी ना जाने कितनी जिंदगियां निगल रही है. आरती कुमारी की दो साल की बच्ची लगातार अपनी मां को पुकारे जा रही है लेकिन आरती के भाई अभिमन्यु या परिवार के किसी भी सदस्य के पास आज उसकी मां का पता नहीं है. 12 दिसंबर 2018 को आरती कुमारी की लाश उसके मायके से मिली।

पांच साल पहले भाई अभिमन्यु ने जब अपनी बहन आरती को वहां ब्याहा था तब उसके परिवार को यह अंदाज़ा नहीं था एक दिन वो अपनी बहन को इस तरह अपने घर ले जाएगा. आरती को दहेज के लिए उनके ससुरालवालों इतना शारीरिक और मानसिक यातना दी की आखिरकार आरती की 12 दिसंबर 2018 को मौत हो गई. आरती के भाई अभिमन्यु ने इस मामले पर सिस्टम द्वारा लापरवाही बरतने को लेकर वह अपनी बहन के लिए इंसाफ़ की मांग करते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखा है.

अभिमन्यु द्वारा लिखा फेसबुक का यह पोस्ट दर्शाता है की समाज में आज भी दहेज़ के नाम पर कितनी जिंदगियां तबाह हो रही है. नीचे आप अभिमन्यु द्वारा लिखा पोस्ट पढ़ सकते है.

 

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’11 जुलाई 2013. देवघर, झारखंड. यानी दीदी की शादी का दिन. और ज़ाहिर तौर पर मेरे, मम्मी पापा के और बाक़ी सभी घर वालों के लिए बेहद ख़ुशी का दिन. 12 दिसम्बर 2018. नोएडा, यूपी. यानी मेरी दीदी की मौत का तारीख़, यानी मेरी प्यारी सी दो साल की भांजी का अपनी माँ को हमेशा के लिए खो देने का दिन, यानी मेरी मां की हमेशा चहकने वाली चहेती बेटी के हमेशा शांत हो जाने का दिन.

 

इन दोनों तारीख़ों के बीच गुज़रे लगभग साढ़े पांच सालों में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसकी वजह से हमें ये दिन भी देखना पड़ रहा है. जिस बहन को मैंने अपने हाथों से शादी के जोड़े में विदा किया था, कल उसके शरीर पर कफ़न देखना किसी भाई के लिए कैसा होगा ये आप समझ सकते हैं. और वह भी तब जब उसी बहन की दो साल की मासूम सी बेटी अपनी मां को अपने क़रीब न पाकर आपको बार बार टूटी बिखरी आवाज़ में ‘मामा’ बोलकर रो रही हो.

 

मैं उसे कैसे समझाऊं कि उसकी मां अब नहीं हैं? कि अब वह कभी उसके पास नहीं आएंगी. न उससे प्यारी प्यारी बातें करेंगी, ना डांटेंगी, न लाड़-प्यार करेंगी? मैं कैसे समझाऊं उसे कि उसकी मां को उसके ही पापा, चाचा और दादा-दादी ने उससे छीन लिया है?

 

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इन साढ़े पांच सालों में दहेज न देने के लिए मेरी दीदी को लगातार डराया धमकाया गया. उसे गालियां दी गयीं. उसका मानसिक उत्पीड़न हुआ, यहां तक कि मेरी दीदी ने कई दफ़ा शारीरिक हिंसा भी झेली. शुरुआत में उसने घर पर मम्मी पापा को कुछ नहीं बताया. पर जब उसके साथ यह सब आम हो गया, उसे जब मन किया तब गालियां दी गयीं, उसके मां-पापा को भला बुरा कहा गया, उसका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न हुआ तो उसने ये सब घर पर बताया.

 

हमने दीदी के घरवालों को पुलिस का डर दिखाकर मामले को संभालने की कोशिश की. मगर उन लोगों ने ऐसा करने पर दीदी को जान से मारने की धमकी तक दे डाली. हम बुरी तरह परेशान थे. और मेरी दीदी को उधर लगातार दुत्कारा जा रहा था. मारा पीटा जा रहा था.

 

और फिर कल उनके घर से कॉल आई कि मेरी दीदी की मौत हो गयी है. ख़बर देने वाले की आवाज़ में कोई दुख या परेशानी नहीं. ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें तो ये सब पहले ही पता था. यह कोई मौत थी ही नहीं. यह हत्या थी जो उसके ससुरालवालों ने उसका लगातार उत्पीड़न करके की. उसे मारने से पहले भी कितनी बार मारा. जब मेरे रिश्तेदार कल इन सब बातों को लेकर पुलिस स्टेशन गए तो वहां हमारी FIR नहीं लिखी गयी. समझना मुश्किल नहीं था कि उसके पति और घरवालों ने पुलिस वालों को पैसे खिला दिए हैं.

पर मैं ये जानता हूं कि जनता में बहुत ताक़त है. हमारे सोशल मीडिया में बहुत ताक़त है. मैं जानता हूं कि बुरे वक़्त में अपनों का साथ देना हम अभी नहीं भूले हैं. मैं बहुत परेशान हूं दोस्तों. मैं अकेला खड़ा होके अपनी बहन को इंसाफ़ नहीं दिला सकता. अपनी भांजी का भविष्य बचाने के लिए उन हत्यारों को सज़ा दिलाना बहुत ज़रूरी है, भाइयों.

 

आपका एक शेयर मेरे लिए बहुत उपयोगी हो सकता है. आप इतना तो करेंगे ना मेरी बहन के लिए? हमारे यहां तो दोस्त क्या, ग़ैरों के घर की लड़कियों को भी बहन बोलते हैं. आपकी एक बहन की हत्या हुई है. उसके लिए इस बात को इतना फ़ैला दीजिए कि पुलिस वालों को ये FIR दर्ज करनी ही पड़े.

साथ ही साथ हम इसी रविवार को दोपहर एक बजे से इंडिया गेट पर हज़ार लोगों के साथ आकर मार्च निकाल रहे हैं. आप लोग प्लीज़ आएं. भले आधे घंटे के लिए ही सही मगर अपने दोस्तों के साथ आकर पुलिस पर कार्यवाही का दबाव बनाने में हमारी मदद करें. और ये केस उत्तरप्रदेश सरकार के संज्ञान में लाने में हमारी मदद करें. मुझे पूरी उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ जी की सरकार इस मामले पर नज़र बनाएगी. हमें इंसाफ़ दिलाने में मदद करेगी. और यूपी की न्याय व्यवस्था मज़बूत करेगी.

 

मुझे बनारस, दिल्ली, नोएडा , लखनऊ आदि जगहों के लेखकों से बहुत उम्मीद है कि वह हमारी मदद ज़रूर करेंगे. और ज़्यादा नहीं तो कम से कम छोटी सी एक पोस्ट लिख कर भी वह अपने फ़ेसबुक पर पोस्ट कर देंगे तो ये बहुत बड़ा सहयोग होगा. प्लीज़ शेयर करें. और रविवार को एक बजे इंडिया गेट पर हमारे साथ इकट्ठा हो कर अपनी बहन को न्याय दिलवाने में एक सार्थक प्रयास में भागीदारी दें.’

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